Sunday, March 10, 2019

भारत एक हिन्दू राष्ट्र कैसे बने ?

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~:
भारत एक हिन्दू राष्ट्र कैसे बने ?
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हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है जो परमात्मा की कृपा से ही साकार हो सकता है| इसके लिए लाखों साधकों को आध्यात्मिक साधना करनी होगी| हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बनें पर आध्यात्म की उपेक्षा नहीं कर सकते| राष्ट्र के लिए भी नित्य साधना करें| हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने के लिए कार्य के साथ-साथ साधना का बल अर्थात ब्रह्म-तेज की भी आवश्यकता है| उसके लिए हिन्दुओं को आध्यात्मिक साधना भी करनी पड़ेगी| हिन्दुओं के पतन का मुख्य कारण उनका धर्मविषयक अज्ञान है| हिन्दुओं को यह ज्ञात नहीं है कि उनके धर्मकर्तव्य कौन से हैं| हिन्दुओं को अब उनके धार्मिक कर्तव्यों का स्मरण करवाने की, अर्थात उन्हें साधना के लिए प्रवृत्त करने की आवश्यकता है| धर्मरक्षा के लिए क्षात्रतेज के साथ-साथ ब्राह्मतेज भी आवश्यक है| यह कार्य केवल बाहुबल से नहीं हो पाएगा| इसके लिए दैवीय सामर्थ्य भी आवश्यक है| केवल शारीरिक, मानसिक अथवा बौद्धिक स्तर पर कार्य करने से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना नहीं हो पाएगी| इसके लिए आध्यात्मिक स्तर पर भी यत्न करने पडेंगे|
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जो जितना अधिक सूक्ष्म है, वह उतना अधिक शक्तिशाली है| प्राचीनकाल में धनुष पर चढाया हुआ बाण मन्त्रोच्चारण के साथ छोडा जाता था| मन्त्रोच्चारण से उस बाण पर शत्रु का नाम सूक्ष्मरूप से अंकित हो जाता था, और वह बाण, तीनों लोकों में कहीं भी छिपे हुए शत्रु को ढूंढकर मार डालता था| हमें उस शक्ति को पुनर्जागृत करने की आवश्यकता है| वह शक्ति ही ब्रह्मतेज है| हम पुराणों में ऋषि-मुनियों के शाप देने की कथाएं पढते हैं| इस शाप में संकल्प की ही शक्ति होती है| ऋषि-मुनियों को यह संकल्पशक्ति साधना से ही प्रप्त होती थी| हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए केवल शारीरिक स्तरपर यत्न करना पर्याप्त नहीं होगा, इसके लिए तो साधना से संकल्पशक्ति प्राप्त कर के कार्य करना होगा|
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कुंभ जैसे मेलों और सन्तों के सत्संग में उनके ब्रह्मतेज के कारण ही लाखों लोग श्रद्धापूर्वक स्वेच्छा से आते हैं| उन्हें बुलाने के लिए राजनीतिक दलों की भांति पैसे नहीं देने पडते अथवा वाहन की निःशुल्क व्यवस्था नहीं करनी पडती है| देश को आवश्यकता किस चीज की है और उसे कैसे साकार किया जा सकता है, इसे आजकल प्रायः सभी समझते हैं| उस दिशा में साकार कार्य करें| कई संस्थाएँ और अनेक व्यक्ति इस कार्य में लगे हुए हैं| पर उनकी संख्या बहुत कम है| देश की क्या समस्याएँ हैं और उनका समाधान क्या है, इसे बहुत लोग समझते हैं पर कार्यरूप में परिवर्तित नहीं कर पा रहे हैं| इस विषय पर मैं कई बार लेख लिख चुका हूँ|
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जो मैं करना चाहता हूँ, सब से पहले तो उसे स्वयं से ही पूर्ण मनोयोग से करने की आवश्यकता है| देश की समस्याओं को मैं बहुत अच्छी तरह समझता हूँ और उनके समाधान को भी| कमी मैं स्वयं में ही पाता हूँ, और समाधान भी स्वयं में ही है| आवश्यकता उस समाधान को और अधिक घनीभूत रूप देने की है| सृष्टिकर्ता परमात्मा की कृपा से ही हम अपनी आकांक्षाओं को साकार कर सकते हैं| हमें चाहिए एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति और ब्रह्मतेज जिसके लिए आध्यात्मिक साधना करनी होगी| वह आध्यात्मिक शक्ति और ब्रह्मतेज ही हमारी अभीप्साओं को घनीभूत रूप दे सकता है|

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