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*आनापान सति*
🔸मन को वश में करने के लिये, मन को एकाग्र करने के लिये 'आनापान साधना' का सक्रिय अभ्यास अनिवार्य है।
🔸आनापान पाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है - श्वास-प्रश्वाश अर्थात भीतर जाने वाली सांस, बाहर आने वाली सांस।
🔸आनापान साधना में मन को टिकाने के लिये नैसर्गिक सांस का आलम्बन (सहारा) लेते हैं।
🔸मन को टिकाने के लिये सांस का ही आलम्बन लेने के दो प्रमुख कारण हैं -
1. सांस हर प्राणी के साथ हर समय उपलब्ध है तथा हर सम्प्रदाय को मानने वाला इसे स्वीकार कर सकता है।
2. सांस का हमारे विकारों के साथ बड़ा गहरा सम्बन्ध है।
हमारे मन में जैसे ही कोई विकार - क्रोध, ईर्ष्या, भय, वासना जागता है, वैसे ही हमारे सांस की गति अपने आप तेज हो जाती है।
जैसे ही वह विकार दूर होता है, सांस अपने आप धीमी हो जाती है, शान्त और सूक्ष्म हो जाती है।
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