*🌸 "दान का रहस्य" 🌸*
पोस्ट - 01
दान में महत्व है त्याग का, वस्तु के मूल्य या संख्या का नहीं। ऐसी त्याग बुद्धि से जो सुपात्र को यानी जिस वस्तु का जिसके पास अभाव है, उसे वह वस्तु देना और उसमे किसी प्रकार की कामना न रखना उतम दान है। निष्कामभाव से किसी भूखे को भोजन और प्यासे को जल देना सात्विक दान है। संत श्रीएकनाथजी की कथा आती है कि एक समय प्रयाग से काँवर पर जल लेकर श्रीरामेशवरम चढाने के लिये जा रहे थे। रास्ते में जब उन्होंने एक जगह देखा कि एक गधा प्यास के कारण पानी के बिना तड़प रहा है, उसे देखकर उन्हें दया आ गयी और उन्होंने उसे थोड़ा-सा जल पिलाया, इससे उसे कुछ चेत-सा हुआ। फिर उन्होंने थोड़ा-थोड़ा करके सब जल उसे पिला दिया। वह गधा उठकर चला गया। साथियों ने सोचा कि त्रिवेणी का जल व्यर्थ ही गया और यात्रा भी निष्फल हो गयी। तब एकनाथजी ने हँसकर कहा - 'भाइयो, बार-बार सुनते हो, भगवान् सब प्राणियों के अंदर हैं, फिर भी ऐसे बावलेपन की बात सोचते हो ! मेरी पूजा तो यहीं से श्रीरामेश्वरम को पहुँच गयी। श्रीशंकर जी ने मेरे जल को स्वीकार कर लिया।'
एक महाजन की कहानी है कि वह सदैव यज्ञादि कर्मों में लगा रहता था। उसने बहुत दान किया। इतना दान किया कि उसके पास खाने को भी कुछ न रह गया। तब उसकी स्त्री ने कहा - 'पास के गाँव में एक सेठ रहते हैं, वे पुण्यों को मोल खरीदते हैं, अत: आप उनके पास जाकर और अपना कुछ पुण्य बेचकर द्रव्य ले आइये, जिससे अपना कुछ काम चले।' इच्छा न रहते हुए भी स्त्री के बार-बार कहने पर वह जाने की उद्यत हो गया। उसकी स्त्री ने उसके खाने के लिये चार रोटियाँ बनाकर साथ दे दीं। वह चल दिया और उस नगर के कुछ समीप पहुँचा, जिसमे वे सेठ रहते थे। वहाँ एक तालाब था। वहीँ शौच-स्नानादि कर्मों से निवृत होकर वह रोटी खाने के लिये बैठा कि इतने में एक कुतिया आयी। वह वन में ब्यायी थी। उसके बच्चे और वह, सभी तीन दिनों से भूखे थे; भारी वर्षा हो जाने के कारण वह बच्चों को छोड़कर शहर में नहीं जा सकी थी। कुतिया को भूखी देखकर उसने उस कुतिया को एक रोटी दी। उसने उस रोटी को खा लिया। फिर दूसरी दी तो उसको भी खा लिया। इस प्रकार उसने एक-एक करके चारों रोटियाँ कुतिया को दे दीं। कुतिया रोटी खाकर तृप्त हो गयी। फिर वह वहाँ से भूखा ही उठकर उस सेठ के पास चल दिया तथा उस सेठ के पास पहुँचा। सेठ के पास जाकर उसने अपना पुण्य बेचने की बात कही। सेठ ने कहा - 'आप दोपहर के बाद आइये।'
उस सेठ की स्त्री पतिव्रता थी। उसने स्त्री से पूछा - 'एक महाजन आया है और वह अपना पुण्य बेचना चाहता है। अत: तुम बताओ कि उसके पुण्यों में से कौन-सा पुण्य सबसे बढ़कर लेने योग्य है।' स्त्री ने कहा - 'आज जो उसने तालाब पर बैठकर एक भूखी कुतिया को चार रोटियाँ दी हैं, उस पुण्य को खरीदना चाहिये; क्योंकि उसके जीवन में उससे बढ़कर कोई और पुण्य नहीं है।' सेठ 'ठीक है' - ऐसा कहकर बाहर चले आये।
क्रमशः
लेखनी: श्रद्धेय श्रीजयदयाल गोयन्दका जी
पुस्तक: "उपदेशप्रद कहानियाँ" कोड ६८०
प्रकाशक: गीताप्रेस, (गोरखपुर)
*"जय जय श्री राधे"*🙏🏻💫
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