श्री एम ने कहा -
आध्यात्मिक मण्डलों में, हम प्रत्यक्ष रूप को देखने में असमर्थ रहते हैं क्योंकि हमारा मनोरथ ही असाधारण होता है। सुखद समीर, झूमती हुई घास व प्रशान्त पर्वतों के बीच चुप-चाप बैठकर, गिरजे की घंटियों की श्रुति ही आध्यात्म है। यही आध्यात्म का मूल सार है और चित्त के शान्त होने पर, आप पाएंगे कि यही सब आपके भीतर भी चल रहा है।
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