गायत्री मन्त्र के जाप के लिये पहले गुरु से दिक्षा ओर यज्ञोपवित संस्कार करवाना होगा। बिना यज्ञोपवित के कोइ भी मंत्र जपने फायदा नहीं होगा ।
ब्रह्म गायत्री मंत्र :--
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात ।
इस मूल मंत्र के जप से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती ।
विशेष जप ध्यान करना हो तो ब्रह्म गायत्री की 10 माला जप करने के पश्चात नीचे दिए गए 24 देव गायत्री के मन्त्रों में से जिसकी साधना करनी हो, उस देवी देवता का ध्यान करते हुए, उस देव गायत्री मंत्र का जप करना चाहिये।
देव गायत्री मंत्र जपने से लाभ नहीं होगा। पहले ब्रह्मगायत्री का जाप करना होगा।
१. गणेश गायत्री—ॐ एक दंष्ट्राय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।
यह समस्त प्रकार के विघ्नों का निवारण करने में सक्षम है
२. नृसिंह गायत्री—ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।
यह मंत्र पुरषार्थ एवं पराक्रम की बृद्धि होती है।
३. विष्णु गायत्री—ॐ नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
यह पारिवारिक कलह को समाप्त करता है।
४. शिव गायत्री—ॐ पंचवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
यह कल्याण करने में अद्वितीय है।
५. कृष्ण गायत्री—ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।
यह मंत्र कर्म क्षेत्र की सफलता हेतु इसका जप आवश्यक है।
६. राधा गायत्री–ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।
यह मंत्र प्रेम का अभाव दूर होकर, पूर्णता को पहुचता है।
७. लक्ष्मी गायत्री–ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
यह मंत्र पद प्रतिष्ठा, यश ऐश्वर्य और धन Sसम्पति की प्राप्ति होती है।
८. अग्नि गायत्री–ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।
यह मंत्र इंद्रियों की तेजस्विता बढ़ती है।
९. इन्द्र गायत्री–ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।
यह मंत्र दुश्मनों के हमले से बचाता है।
१०. सरस्वती गायत्री–ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।
यह मंत्र ज्ञान बुद्धि की वृद्धि होती है एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है।
११. दुर्गा गायत्री–ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।
यह मंत्र से दुखः और पीड़ानही रहती है।शत्रु नाश, विघ्नों पर विजय मिलती है।
१२. हनुमान गायत्री–ॐ अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।
यह मंत्र कर्म के प्रति निष्ठा की भावना जागृत होती हैं।
१३. पृथ्वी गायत्री–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
यह मंत्र दृढ़ता, धैर्य और सहिष्णुता की वृद्धि होती है।
१४. सूर्य गायत्री–ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
यह मंत्र शरीर के सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
१५. राम गायत्री–ॐ दाशरथयै विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।
यह मंत्र इससे मान प्रतिष्ठा बढती है।
१६. सीता गायत्री–ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।
यह मंत्र तप की शक्ति में वृद्धि होती है।
१७. चन्द्र गायत्री–ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।
यह मंत्र निराशा से मुक्ति मिलती है और मानसिकता प्रवल होती है।
१८. यम गायत्री–ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।
यह मंत्र इससे मृत्यु भय से मुक्ति मिलती है।
१९. ब्रह्मा गायत्री–ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।
यह मंत्र व्यापारिक संकटो को दूर करता है।
२०. वरुण गायत्री–ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।
यह मंत्र प्रेम भावना जागृत होती है, भावनाओ का उदय होता हैं।
२१. नारायण गायत्री–ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।
यह मंत्र प्रशासनिक प्रभाव बढ़ता है।
२२. हयग्रीव गायत्री–ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।
यह मंत्र समस्त भयो का नाश होता है।
२३. हंस गायत्री–ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।
यह मंत्र विवेक शक्ति का विकाश होता है,बुद्धि प्रखर होती है।
२४. तुलसी गायत्री–ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
परमार्थ भावना की उत्त्पति होती है।
गायत्री साधना का प्रभाव तत्काल होता है जिससे साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और मानसिक कष्ट में तुरन्त शान्ति मिलती है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है।
ध्यान देने योग्य बातें
गायत्री जप में आसन का भी विचार किया जाता है। बांस, पत्थर, लकड़ी, वृक्ष के पत्ते, घास-फूस के आसनों पर बैठकर जप करने से सिद्धि प्राप्त नहीं होती, वरन् दरिद्रता आती है।
अतः आसन कुश या कम्बल का ही लेना चाहिए।
गायत्री शक्ति का ध्यान करके चंदन,तुलसी या रुद्राक्ष की 108 दानों की माला से जप करना चाहिए।
जप मानसिक (मन मे ) या उपांशु ( होंठ हिलते रहें पर स्वर बाहर न निकले ) करना चाहिए। सस्वर जप (बोलकर) नहीं किया जाता। मंत्र का सस्वर उच्चारण करते हुए केवल यज्ञ में आहुतियाँ दी जाती हैं।
सनातन धर्म में आदिशक्ति गायत्री को देवमाता कहा गया है अर्थात वही समस्त देवी देवताओं में शक्ति संचार करती है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा, काली, राम, कृष्ण, हनुमान सब उसी के अंश हैं।
अतः जो हिन्दू इन देवी देवताओं को अपना इष्ट मानते हैं वे उन इष्ट देवी-देवताओं का ध्यान करते हुए भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं साथ ही यदि चाहें तो उन देवी देवताओं के अलग अलग गायत्री मंत्र दिए गए हैं, उन मन्त्रों का भी जप-ध्यान, विशेष रूप से कर सकते हैं।
अतः सभी सनातनी हिंदुओं के मार्गदर्शन के लिए , गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से जुड़े 24 प्रमुख देवताओं के गायत्री मंत्र उनका प्रभाव, साधना विधि दी गयी है ताकि आप सब उसका लाभ उठा सकें।
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