Wednesday, August 28, 2019

*रसोई में हमेशा आटे का एक थैला (आटा) रखना चाहिए और सभी को यह पता होना चाहिए कि वह कहाँ है

*रसोई में हमेशा आटे का एक थैला (आटा) रखना चाहिए और सभी को यह पता होना चाहिए कि वह कहाँ है।*

 *कृपया अंत तक पूरा पढ़े*

यह एक महिला का सच्चा अनुभव है, जो गलती से जल गई थी।

 कुछ समय पहले, मैं मक्की उबाल रही थी और उबलते पानी में कुछ ठंडा पानी डालना था । गलती से मैंने अपना हाथ उबलते पानी में डुबो दिया .... !!

 मेरा एक दोस्त जो वियतनामी पशु चिकित्सक था, घर आया था।  जैसा कि मैं दर्द से कराह रही थी,उसने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास घर पर (गेहूं) के आटे का एक पाउच है।

मैंने थोड़ा सा आटा निकाला और उसने मुझे आटे में हाथ डालने का कहा और मुझे लगभग 10 मिनट तक इंतजार करने को कहा।

 उन्होंने मुझे बताया कि वियतनाम में एक लड़का था जो एक बार जल गया था। किसी ने आग बुझाने की कोशिश में उसके शरीर पर आटे की एक बोरी डाल दी थी.....वह न केवल बुझ गया बल्कि उस पर  जलने का कोई निशान नहीं था !!!!

 अपने स्वयं के मामले में, मैंने 10 मिनट के लिए आटा के बैग में अपना हाथ रखा, और फिर इसे हटा दिया और मुझे उसके बाद जलने के लाल निशान नहीं दिखाई दिया।  इसके अलावा, बिल्कुल कोई दर्द नहीं।

 आज मैं आटे का एक बैग फ्रिज में रखती हूं और हर बार जब मैं जलती हूं, तो मैं आटे का उपयोग करती हूं।  वास्तव में ठंडा आटा कमरे के तापमान की तुलना मे ज्यादा असरदार व बेहतर है।

 मैं आटे का उपयोग करती हूं और मेरे पास जले का कोई निशान नहीं है!

 मैंने भी अपनी जीभ एक बार जला दी थी और लगभग 10 मिनट के लिए उस पर आटा लगा दिया .... दर्द बंद हो गया।
*इसलिए हमेशा अपने फ्रिज में कम से कम आटे का एक पाउच रखें।*

 👌😊😊😊👍😊😊😊✌
*आटा में गर्मी को अवशोषित करने की क्षमता होती है और इसमें मजबूत एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं।  इस प्रकार, यह 15 मिनट के भीतर लागू होने पर जले हुए रोगी की मदद करता है।*

ये एक अनमोल अनुभव है।।
आजमाया हुआ नुस्खा है।।

आप भी ये काम करें तथा अपने जानकारों को भी बताये।।

कल्याणमस्तू

आपली अडचण...हे करून तर पहा. सोप्या टिप्स ....कल्याणमस्तू

१. घराच्या मुख्य (सिंह) दरवाजापेक्षा घराचे आतील (उप) दरवाजे हे कधीही उंच अथवा मोठे असू नयेत.
२. घराची पुनर्बांधणी (Re-Construction) करतांना जुन्या घराचे लाकूड, विटा, माती तत्सम साहित्य नवीन घरासाठी वापरू नये ते घरासाठी कलहकारक ठरते.
३. कोणत्याही आजारी माणसाने अथवा आजारी माणसास उत्तरेस/पूर्वेस तोंड करुन/बसवून औषध दिल्यास त्याचा आजार लवकर बरा होतो. (सार्थचरक संहितेमध्ये या संबधीचा उल्लेख आढळतो)
४. घरात लावलेली काटेरी रोपटी अथवा कॅक्ट्स Negative Energy अथवा उद्विग्नता तयार करतात, यामुळे अशी झाडे घरात असू नये
५. जास्तीत जास्त अन्नदान करावे त्या योगे अनेक दोष नष्ट होतात.
६. आठवड्यातून एकदा मुख्य दरवाजा आतून बाहेरून खडे मिठाच्या पाण्याने पुसून घ्यावा.
७. लहान मुलांकडून काही नित्य स्तोत्रे रोज म्हणून घ्यावीत (मारुती स्तोत्र, शुभं करोति) व आपणही म्हणावीत. यामुळे घरात संस्कार वाढतात व चांगली पिढी घडण्यास उपयोग होतो.
८. काही लोक भंगलेल्या/तुटलेल्या मूर्ती तुळशीत ठेवतात ते चुकीचे आहे, त्यांना वाहत्या पाण्यात विसर्जित करावे.
९. मुख्य दरवाज्यास लाकडाचा उंबरठा असणे आवश्यक असते.
१०. "ज्याचे मन किंवा विचार मोठे त्याचे भाग्यही मोठे" असे श्री व्यासांनी आपल्या ग्रंथात लिहून ठेवले आहे व तेच आजचे मानासशास्रही सांगते, म्हणून नेहमी संकुचित विचार न करता मोठे, उदार विचार करावे, त्याने आपले भाग्यही मोठे होते.

११. घरात नंदादीप (म्हणजेच मोठा दिवा नाही, छोटाही चालतो) सतत तेवत ठेवल्याने अशुभ ऊर्जा घरात राहत नाहीत. (तिळीच्या तेलाचा किंवा गाईच्या तुपाचा दिवा असावा, कापूरदिवा असल्यास effective आहे).
१२. शिकार केलेल्या प्राण्यांचे मुखवटे किंवा जंगली ओबडधोबड लाकडाचे सिरॅमिक्स घरात ठेवू नयेत.
१३. आपल्या घरामध्ये आपली पती/पत्नी, मुले किंवा कोणालाही अपशब्द वापरू नयेत. कारण वास्तू नेहमी तथास्तु म्हणत असते.
१४. उत्तर दिशेत fishtank (मत्सालय) ठेवावे, व माशांची काळजी घ्यावी.
१५. घराचा मुख्य दरवाजा तुटलेला, कुजलेला, भंगलेला नको, त्यावर तोरण, स्वस्तिक असे मंगलयमय चिन्ह असावे.
१६. रोज घर पुसताना त्यात थोडे खडे मीठ व गोमूत्र घाला आणि घरातील सर्व कोपरे पुसून घ्या, याने घरातील मरगळ जाऊन आर्थिक वृद्धीही होते (हा अनुभव सिद्ध आणि effective उपाय आह, आपणही अनुभव घ्यावा).
१७. हवेने हलणाऱ्या छोट्या घंट्या वायव्य दिशेत लावाव्यात.
१८. श्री गणेश हि बुद्धीची आराध्य देवता, गणेश रुद्राक्ष धारण केल्याने अभ्यासात फायदा होऊन स्मरणशक्ती वाढते. छोट्या मुलांसाठी उपयोगी.(याचबरोबर रोज ओम गं गणपतये नमः या मंत्राचा पाच मिनिटे जप करावा).
१९. आवाजाचा उपयोग करून आपण आपली वास्तू शुद्ध करू शकतो त्यालाच ध्वनी कर्म असे म्हणतात, यात ग्रंथ पठण, मंत्र पठण, शॊल्क पठण, मंजुळ घंट्यांची आवाज, पडद्याच्या खाली लावलेले घुंगरू, artificial धबधबा, कर्ण मधुर संगीत, windchime यांचा समावेश होतो, यामुळे घरातील वातावरणात प्रसन्नता निर्माण होते व उत्साहवर्धक वाटते.
२०. वरील सांगितल्यानुसार आपल्या घरातील door बेलचा आवाज, टीव्हीचा आवाज, बोलणे अती कर्कश व मोठ्याने असू नये.

२१. जोम उत्साहाचे प्रतीक म्हणून सरळ उंच वाढणारा हिरवागार बांबू पूर्व दिशेस लावावा. दीर्घायु व स्वास्थ्याचा लाभ होतो
२२. स्वयंपाकघर पूर्वेस (त्यातही शक्यतो आग्नेयेस) असावे. सर्वसाधारण स्वयंपाकाची वेळ व सूर्योदयाची वेळ एकच असते (पूर्वी असे होत होते आता कालानुरूप त्याचे स्वरूप पालटले आहे) तेव्हा उजेड व निरोगी सूर्यप्रकाशात काम करण्याचे फायदे व्हावेत हा संकेत असावा.
२३. कोणत्याही महत्त्वाच्या कामासाठी घराबाहेर पडताना चमचाभर गोड दही खाणे अत्यंत शुभ व लोभदायक. (मध्यंतरी, या संमधीचा एक वैज्ञानिक लेख मी वाचला होता मिळाल्यास पोस्ट करेल)
२४. 'यमघंट' योगावर नवीन गृहप्रवेश कधीही करू नये.
२५. रोज सकाळी उंबरठा स्वच्छ करावा. त्याची हळद कुंकू वाहून पुजा करावी.
२६. घरात रोज अग्निहोत्र चालत असेल तर उत्तम असते. अन्यथा निदान आठवडयातून किंवा महिन्यातून एकदा तरी कर्पुर होम करावा.
२७ धनदायी नक्षत्र मृग , पृष्य , मघा , मूळ ह्या नक्षत्रात तुम्ही तुमची कामे/व्यापार/व्यवसाय सुरू करू शकता याने खूप फायदा होतो.
२८ घरात रोज हनुमान वडवनाल स्तोत्र म्हणावे त्याने घरात शांतता नांदते.
२९. रोज रामरक्षा स्तोत्र म्हटल्याने स्वप्नातून दचकून उठणे, बारीक सारीक आजार होणे याल पासून रक्षण होते
३०. श्रीयंत्र व कुबेर यंत्राची एकाचवेळी एकत्र घरात किंवा व्यवसायाच्या ठिकाणी उत्तरेत विधिवत स्थापना करावी, याने आर्थिक लाभ होतो.
।।शुभम भवतू ।।

ज्योतिष मे चंद्र ग्रह का महत्व।

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) 
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ज्योतिष मे चंद्र ग्रह का महत्व।

सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है। 

जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है। 

चन्द्रमा माता का सूचक और मन का कारक है। कुंडली में चन्द्र के अशुभ होने पर मन और माता पर प्रभाव पड़ता है। 

कैसे होता चन्द्र खराब? :

* घर का वायव्य कोण दूषित होने पर भी चन्द्र खराब हो जाता है।
* घर में जल का स्थान-दिशा यदि दूषित है तो भी चन्द्र मंदा फल देता है। 
* पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।
* माता का अपमान करने या उससे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।
* शरीर में जल यदि दूषित हो गया है तो भी चन्द्र का अशुभ प्रभाव पड़ने लगता है।
* गृह कलह करने और पारिवारिक सदस्य को धोखा देने से भी चन्द्र मंदा फल देता है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र खराब फल देने लगता है।

शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

कैसे जानें कि चन्द्र खराब है...

* दूध देने वाला जानवर मर जाए।
* यदि घोड़ा पाल रखा हो तो उसकी मृत्यु भी तय है, किंतु आमतौर पर अब लोगों के यहां ये जानवर नहीं होते।
* माता का बीमार होना या घर के जलस्रोतों का सूख जाना भी चन्द्र के अशुभ होने की निशानी है।
* महसूस करने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र अशुभ हो जाता है।
* मानसिक रोगों का कारण भी चन्द्र को माना गया है।

चंद्र ग्रह से होती ये बीमारी: 

* चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
* मिर्गी का रोग।
* पागलपन।
* बेहोशी।
* फेफड़े संबंधी रोग।
* मासिक धर्म गड़बड़ाना।
* स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। 
* मानसिक तनाव और मन में घबराहट।
* तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
* सर्दी-जुकाम बना रहता है।
* व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।

कुंडली के 12 घरों में चंद्रमा देता है शुभ और अशुभ फल

 1. पहले लग्न में चंद्रमा हो तो जातक बलवान, ऐश्वर्यशाली, सुखी, व्यवसायी, गायन वाद्य प्रिय एवं स्थूल शरीर का होता है।  
 
2. दूसरे भाव में चंद्रमा हो तो जातक मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, परदेशवासी, सहनशील एवं शांति प्रिय होता है।  
 
3. तीसरे भाव में अगर चंद्रमा हो तो जातक पराक्रम से धन प्राप्ति, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्न, आस्तिक एवं मधुरभाषी होता है। 

4. चौथे भाव में हो तो जातक दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील होता है।  
 
5. लग्न के पांचवें भाव में चंद्र हो तो जातक शुद्ध बुद्धि, चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है। 

 6. लग्न के छठे भाव में चंद्रमा होने से जातक कफ रोगी, नेत्र रोगी, अल्पायु, आसक्त, व्ययी होता है। 

7. चंद्रमा सातवें स्थान में होने से जातक सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, अभिमानी, व्यापारी, वकील एवं स्फूर्तिवान होता है। 
 
8. आठवें भाव में चंद्रमा होने से जातक विकारग्रस्त, कामी, व्यापार से लाभ वाला, वाचाल, स्वाभिमानी, बंधन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यालु होता है। 
 
9. नौंवे भाव में चंद्रमा होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है। 
 
10. दसवें भाव में चंद्रमा होने से जातक कार्यकुशल, दयालु, निर्मल बुद्धि, व्यापारी, यशस्वी, संतोषी एवं लोकहितैषी होता है। 

11. लग्न के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होता है।  
 
12. लग्न के बारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक नेत्र रोगी, कफ रोगी, क्रोधी, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है।

अष्टम भाव में शनि के फल

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) 
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अष्टम भाव में शनि के फल।

जन्मकुंडली में फलादेश करते हुए कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कुंडली में अष्टम भाव को आयु का स्थान माना जाता है (कुछ विद्वान इसे मत्यु का स्थान समझते हैं, जो कि गलत है, वा‌स्तव में मृत्यु का स्थान 7वां है।) आठवें भाव जैसा प्रभाव शनि ग्रह का भी है, इसी लिए शनि को इस स्थान का कारक कहा गया है। आठवां स्थान और शनि दोनों ही अचानक आने वाली मुसीबत, प्राकृतिक आपदा, अग्नि, जल, वायु या किसी भी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना, कारागार, यानी जेल, बड़े संकट, शरीर कष्ट की सूचना देते हैं। आठवें स्थान को दुःख भाव या पाप भाव के रूप में देखा जाता है 

शनि ग्रह जहां – कर्म, आजीविका, जनता, सेवक, नौकरी, अनुशाशन, दूरदृष्टि, प्राचीन वस्तु, लोहा, स्टील, कोयला, पेट्रोल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीन, औजार, तपस्या और अध्यात्म का कारक माना गया है। वहीं यह ग्रह हमारे पाचन–तंत्र, शिरा नाड़ी, हड्डियों के जोड़, बाल, नाखून,और दांतों को भी  नियंत्रित करता है। और वातरोग, शरीर कष्ट, दु:ख का भी कारक है। जन्मकुंडली का अष्टम भाव पाप या दुःख का भाव होने से अष्टम भाव में किसी भी शुभ ग्रह का होना अच्छा नहीं माना गया है। कुंडली में कोई भी ग्रह अष्टम भाव में होने से वह ग्रह पीड़ित और कमजोर स्थिति में आ जाता है, साथ ही स्वास्थ की दृष्टि से भी बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, अब विशेष रूप से शनि की बात करें तो, शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना निश्चित रूप से अच्छा नहीं है, इससे जीवन में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, शनि के अष्टम भाव में होने को लेकर एक सकारात्मक बात यह है की कुंडली में अष्टम का शनि व्यक्ति को दीर्घायु देता है, यदि कुंडली में बहुत नकारात्मक योग न बने हुए हों तो, अष्टम भाव में स्थित शनि व्यक्ति की आयु को दीर्घ कर देता है, पर इसके अलावा शनि अष्टम में होने से बहुत सी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। 

यदि शनि कुंडली के आठवे भाव में स्थित हो तो ऐसे में व्यक्ति को पाचन तन्त्र और पेट से जुडी समस्याएं लगी ही रहती हैं, इसके अतिरिक्त जोड़ो का दर्द, दाँतों तथा नाखूनों से जुडी समस्याएं भी अक्सर परेशान करती हैं, शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना व्यक्ति की आजीविका या करियर को भी अक्सर बाधित करता है, करियर को लेकर कभी-कभी संघर्ष की स्थिति बनी रहती है 

करियर में स्थिरता नहीं आ पाती और मेहनत करने पर भी व्यक्ति को अपनी प्रोफेशनल लाइफ में इच्छित परिणाम नहीं मिलते, जो लोग राजनैतिक क्षेत्र में आगे जान चाहते हैं, उनके लिए भी अष्टम भाव का शनि संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करता है, वैसे तो राजनीति और सत्ता का सीधा कारक सूर्य को माना गया है, परंतु शनि जनता और जनसमर्थन का कारक होता है, इस लिए राजनैतिक सफलता में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है, कुंडली में शनि अष्टम भाव में होने से व्यक्ति को जनता का अच्छा सहयोग और जनसमर्थन नहीं मिल पाता जिससे व्यक्ति सीधे चुनावी राजनीती में सफल नहीं हो पाता, अथवा बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ता है, शनि अष्टम में होने से व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए अच्छे कर्मचारी या सर्वेंट नहीं मिल पाते, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बिजनेस या व्यापार में सफलता के अच्छे योग तो हैं, पर शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो, ऐसे में लोहा, स्टील, काँच, पुर्जे, पेंट्स, केमिकल प्रोडक्ट्स, पेट्रोल आदि का कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये सभी वस्तुएं शनि के ही अंतर्गत आती हैं, और अष्टम में शनि होने पर इन कार्यक्षेत्रों में किया गया इन्वेस्टमेंट लाभदायक नहीं होता, हानि की अधिक संभावनाएं रहती हैं, यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो, ऐसे में शनि दशा स्वास्थ कष्ट और संघर्ष उत्पन्न करने वाली होती है। अष्टम में शनि होना किसी भी स्थिति में शुभ तो नहीं है, पर यदि यहाँ स्व उच्च राशि में शनि हो, या बृहस्पति से दृष्ट शनि हो तो, समस्याएं बड़ा रूप नहीं लेती, और उनका समाधान होता रहता है। यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में होने से ये समस्याएं उत्पन्न हो रही हों तो यह उपाय करना लाभदायक होगा :-

1. शनिवार से आरंभ करके "ॐ शं शनैश्चराय नमः।" जप किया करें।

2. शनिवार साबुत उड़द का दान किया करें।

3. शनिवार को सांय पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलायें।

4.  श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।

                 किसी भी जातक की कुंडली का आठवां भाव उसकी आयु का प्रतिनिधित्व करता है, इसके अलावा आठवें भाव का अष्टम होने से तीसरा भाव भी आयु को ही दर्शाता है, आयु निर्धारण के लिए लग्नेश का महत्व बहुत अधिक होता है। यदि किसी जातक का लग्नेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में विराजमान है तो, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से नकारात्मक प्रभाव डालता है।

पिठोरी अमावास्या २९ व *अमावास्या (पोळा) ३० आॕगस्ट रोजीच*

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📕 *पिठोरी अमावास्या २९ व दर्श*
   *अमावास्या (पोळा) ३० आॕगस्ट रोजीच*

📘 *पिठोरी अमावास्या - शास्त्रार्थ : -  "जास्त" मानाने "प्रदोष" व्यापिनी ( सूर्यास्तानंतरच्या ६ घटिका=२ तास २४ मिनिटे.) श्रावण अमावास्येस "पिठोरी अमावास्या" म्हणतात.* 📘
⛔ *खुलासा : -  "१०४ वर्षांची अखंडित परंपरा असलेले जगप्रसिध्द दाते पंचांग" नुसार दि. २९ आॕगस्ट रोजी गुरुवारी "अमावास्या १९-५६ नं. ( रात्री ०७-५६ नं.) प्रारंभ" होत आहे. ही अमावास्या "गुरुवारी"च "प्रदोष" व्यापिनी आहे. म्हणून पंचांगात ठळक अक्षरात "पिठोरी अमावास्या" असा "उल्लेख" केलेला आहे.* ⛔
📙 *दर्श अमावास्या - शास्त्रार्थ : - "जास्त" मानाने "अपराण्ह" व्यापिनी ( दिनमानाच्या एकूण "५ समान" भागांपैकी  "४ थ्या" भागाचा कालावधि : सामान्यत: "मध्यम" मानाने  दुपारी १|| ते ४ दरम्यानचा कालावधि.) अमावास्येला "दर्श" अमावास्या म्हणतात. ह्याच दिवशी "पोळा" सण, "वृषभ पूजन" करावयाचे असते. म्हणून पंचांगात "दर्श अमावास्या" लगतच "पोळा" ह्याचा कंसात ठळक अक्षरात उल्लेख केलेला आहे.* 📙
⛔ *खुलासा : - दि. ३० आॕगस्ट रोजी शुक्रवारी "अमावास्या १६-०७ ला ( दु. ०४-०७ ला) समाप्त होत आहे. ही अमावास्या "शुक्रवारी"च "अपराण्ह" व्यापिनी आहे. म्हणून पंचांगात ठळक अक्षरात "दर्श अमावास्या (पोळा)" असा उल्लेख केलेला आहे.* ⛔ 
🏀 *विशेष सूचना : - "घरचा ज्योतिषी, रुईकर पंचांग, ह्यात "पिठोरी अमावास्या दि. ३० आॕगस्ट रोजी शुक्रवारी" दिलेली आहे.* 🏀

🛑 *प्रेषक : - दिलीपकुमार अनंत*
       *रेवणकर, उल्हासनगर, जि.- ठाणें.*
       *9175434799,  9156614483.*
*e - mail :*
*🌹||अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ||🌹*

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व्हेरिकोस व्हेन्सचा त्रास होतो? हे आहेत उपाय!*

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   *🌿🌹🙏आरोग्य प्रभात🙏🌹🌿*

*व्हेरिकोस व्हेन्सचा त्रास होतो? हे आहेत उपाय!*

*व्हेरिकोस व्हेन म्हणजे फुगलेली, वाकडीतिकडी आणि मूळ लांबीपेक्षा वाढलेली नस. हृदयाकडील रक्तप्रवाह सुरळीत ठेवणाऱ्या झडपा त्यांचे कार्य योग्यरीतीने करू शकल्या नाहीत, तर पायांतील नसा फुगतात व रक्ताचा पुरवठा वेडावाकडा होऊ लागतो. या व्याधीला व्हेरिकोस व्हेन्स असे म्हणतात. याचे लक्षण म्हणजे गुडघ्यांच्या मागे किंवा मांडीवर अशा फुगलेल्या नसांचे जाळे दिसू लागते. कुठलीही नस ही व्हेरिकोस व्हेन्सच्या व्याधीने ग्रासली जाऊ शकते, परंतु सर्वाधिक धोका पायाच्या नसांना असतो. दीर्घकाळ उभे राहणे किंवा चालल्यामुळे शरीराच्या खालील बाजूच्या नसांमधील दाब वाढतो. सुरवातीला फारसा त्रास झाला नाही, तरी कालांतराने घोट्याजवळ सूज येणे, घोट्याजवळ जखम होणे, पाय दुखणे, नस गोठणे असे त्रास संभवतात. रक्ताभिसरणाबरोबर गोठलेल्या रक्ताच्या गुठळ्या फुफ्फुसात जाऊन गुंतागुंत वाढण्याचा धोका असतो.*

*व्हेरिकोस व्हेन्सच्या निदानासाठी वैद्यकीय तपासणी करावी लागते. काही रुग्णांना अल्ट्रासाऊंड या छोट्या स्वरूपातील चाचणीही करावी लागते. नसांमधील व्हॉल्वचे कार्य व्यवस्थितपणे सुरू आहे की नाही आणि रक्ताच्या गाठी निर्माण झाल्या आहेत का, याबाबत खातरजमा करण्यासाठी ही चाचणी केली जाते. व्हेरिकोस व्हेन्सवर वेळीच योग्य उपचार न झाल्यास हा आजार गंभीर स्वरूप धारण करतो. व्हेरिकोस व्हेन्सवर फक्त शस्त्रक्रियेद्वारे उपचार होऊ शकतात, असा गैरसमज लोकांमध्ये आहे. प्राथमिक टप्प्यातील व्हेरिकोस व्हेन्सवर सोप्या उपायांद्वारे मात करता येते. व्यायाम, वजन घटविणे, घट्ट कपडे न घालणे, पाय उंचावणे आणि दीर्घकाळ उभे राहणे किंवा बसणे टाळल्यास व्हेरिकोस व्हेन्समुळे होणारा त्रास कमी होऊ शकतो.*

*या सोप्या उपायांनी फरक न पडल्यास बाजारात विशिष्ट प्रकारचे स्टॉकिंग्ज उपलब्ध आहेत. या स्टॉकिंग्जमुळे पायांना आराम मिळतो. त्याला कॉम्प्रेशन स्टॉकिंग्ज असे म्हणतात. हे स्टॉकिंग्ज दिवसभर घातल्यास नसा आणि स्नायूंना आराम मिळतो व परिणामी रक्तप्रवाह व्यवस्थित राहतो. मात्र, त्यासाठी योग्य मापाचे स्टॉकिंग्ज घालणे आवश्‍यक आहे. त्यासाठी डॉक्‍टरांचा सल्ला घ्यावा. व्हेरिकोस व्हेन्सने गंभीर स्वरूप धारण केल्यास शस्त्रक्रियेचा पर्याय उपलब्ध असतोच. शस्त्रक्रियांमध्ये स्क्‍लेरोथेरपी, कॅथेटर-एसिस्टेड पद्धत, व्हेन स्ट्रिपिंग, अँब्युलेटरी फ्लेबेक्‍टोमी, एन्डोस्कोपिक व्हेन सर्जरी असे विविध प्रकार आहेत.*
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एकादशी व्रताचे माहात्म्य काय ? हे व्रत कोणी करावे ?*

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*🌹🍀🔥शास्त्र असे सांगते 🔥🍀🌹*

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*संकलन - सदानंद पाटील, रत्नागिरी.*
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*🏵एकादशी व्रताचे माहात्म्य काय ? हे व्रत कोणी करावे ?*

           *"एकादशी" हे एकच व्रत असे आहे की, जे नेहमीप्रमाणे संकल्प वगैरे करून विधीपूर्वक घेण्याची आवश्यक नसते. कारण हे व्रत जन्मतःच लागू होते. ते आमरण घडणे इष्ट आहे. 'एकादशी व्रत' हे इतर सर्व व्रतास पायाभूत असल्यामुळे किमान पात्रता प्राप्त करून घेण्याची इच्छा असणाऱ्यांनी एकादशी व्रत केलेच पाहिजे. एकादशी न करता इतर व्रते केल्यास ती फलित होण्यास विलंब लागतो, असे दृष्टोत्पत्तीस येते. विशेषतः सोळा सोमवार, संकष्ट चतुर्थी, प्रदोष, शिवरात्री, अष्टमी, वटसावित्री इत्यादी अनेक व्रते शीघ्रफलदायी होण्याची इच्छा असणाऱ्यांनी एकादशी व्रत अवश्य करावे. मॅट्रिक झाल्याखेरीज पुढच्या टप्प्याचे काॅलेज शिक्षण करता येत नाही. त्याप्रमाणे एकादशी न करता कुठल्याच व्रतास अधिकार प्राप्त होत नाही. एकादशीला एवढे महत्त्व प्राप्त होण्याचे कारण म्हणजे त्या तिथीला सर्व प्राणिमात्रांची गती ऊर्ध्वदिशेस विशेष प्राबल्याने असते. चंद्रावर जाणारी याने पृथ्वीवरून सोडण्याच्या तारखा पाहिल्या तर त्यातील बऱ्याच तारखा एकादशीला किंवा एकादशीच्या अलिकडे पलिकडे पडलेल्या दिसून येतात. आपल्या देहातील चैतन्यही त्या दिवशी ऊर्ध्व दिशेस अधिक वेगाने झेपावते. अशावेळी अल्पाहार केल्यास अंगी पारमार्थिक उत्क्रांती होण्याची पात्रता येऊन सत्संकल्प पूर्ण होण्यास मदत होते. एकादशीस निराहार करून फक्त पाणी व सुंठ-साखर खाल्ल्यास तो उत्तम पक्ष संभवतो. त्या दिवशी पोटातील सर्व आवयवांना उत्कृष्ट विश्रांती मिळाल्यामुळे ते अधिक कार्यक्षम होतात व मनाची शक्तीही वाढते. पण ते शक्य नसल्यास अल्प हविष्यान्न खाणे हा मध्यम पक्ष होय. तेही अशक्य झाल्यास किमान गव्हासारखे एकधान्य खाऊन एकादशी करावी. एखाद्या हट्टी व्यक्तीला वरील कोणतीच गोष्ट शक्य नाही, पण आध्यात्मिक उंची वाढविण्यासाठी व धर्मपालन करण्याची इच्छा आहे, अशाने निदान एकादशीच्या दिवशी 'माझी एकादशी आहे, माझी एकादशी आहे' असे म्हणत रहावे. त्या निमित्ताने आपोआपच त्याच्याकडून सामिष आहार, अभक्ष्यभक्षण बंद होऊन हळुहळू खरी 'एकादशी' घडण्यास मदत होईल.*

           *शास्त्राने महिन्यातील दोन्हीही एकादशा कराव्यात. पण गृहस्थधर्माचे पालन करणाऱ्याने निदान शुध्द एकादशी अवश्य करावी. एकादशी व्रताची सांगता व्रतोद्यापन करून करता येते. पण व्रतोद्यापन झाल्यावरही एकादशी उपवास चालू राहणे इष्ट आहे. एकादशी व्रत करताना हविष्यान्न वा फलाहार भक्षणाबरोबरच ब्रम्हचर्यपालन, देवपूजन, हरिहरास तुलसीबिल्व अर्पण, सत्यभाषण, परनिंदात्याग, दान या गोष्टी अगदी अगत्यपणे कराव्यात. त्यामुळे एकादशी व्रताचे पुरेपुर फल मिळण्यास मदत होते. काही लोक एकादशी दिवशी विष्णुसहस्त्रनाम, शिवसहस्त्रनाम, रुद्रपठन, गीतापठन, शिवलीलावाचन या गोष्टी करतात. ही अत्यंत चांगली गोष्ट असून, त्यामुळे त्यांची आध्यात्मिक प्रगती अत्यंत वेगाने होण्यास मदत होते. एकादशीच्या आदल्या दिवशी रात्री उपवास करावा व स्त्रीस्पर्श वर्ज्य करावा. उपवास शक्य नसेल तर रात्रीच्या पहिल्या प्रहरापूर्वी अल्पाहार करावा.*

*संदर्भ : वेदवाणी प्रकाशन.*
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हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है*

*हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है*
✍🏻मान्यतानुसार अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए, तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। इसलिए पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्धपक्ष का बेहद महत्व है। जानें संपूर्ण जानकारी... ✍🏻पितृ पक्ष का महत्व - *ब्रह्म वैवर्त पुराण* के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें... *श्राद्ध क्या है* - ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है.......!!
*"कुंडली, वास्तु, अनुष्ठान, पूजा-पाठ के लिए संपर्क करें:-*
*✍🏻"पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री मो. नॉ.- 9993652408, 7828289428 कुंडली परामर्श शुल्क 151/-रु. Phone Pe, Google Pay, Paytm No.- 9993652408*

पितरों की तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या उपाय करें?

*पितरों की तृप्ति और मुक्ति के लिए क्या उपाय करें? पितरों को जीवन पर्यन्त याद रखने का तरीका क्या है?*
✍🏻समाधान:- १.-मृतात्मा की शांति और सदगति के लिए, पितरों के नाम से ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगवाएं, २.-किसी पास के सरकारी गरीब स्कूल में बिस्किट के पैकेट, खाने की सामग्री और सत्साहित्य बंटवा दें। बच्चे 12 वर्ष के कम उम्र के निष्पाप होते है और इन पर किया दान पुण्य फलित होगा।
✍🏻वृक्ष प्रतिक्षण ऑक्सीज़न छोड़ेंगे, वो श्वांस लोगों को मिलेगी। तो यह ऑटोमेटिक दान जीवन भर चलेगा और मृतात्मा को पुण्य इसका सदैव मिलता रहेगा, कितने सारे पशु पक्षियों को भोजन एवं छाया इसके आश्रय मे मिलेगी। प्रत्येक पितर की तृप्ति और मुक्ति के लिए कम से कम ५ पेड़- १.-बरगद, २.-पीपल, ३.-नीम, ४.-बेलपत्र और ५.-अशोक  के ये पांच वृक्ष जरूर लगाएं।
✍🏻जो ज्ञान साहित्य आप बांटेगे, जो लोग पढ़ेंगे तो उनका कल्याण होगा। वो आगे भी बांटेंगे तो यह भी ऑटोमैटिक कई गुणा हमेशा पुण्य देता रहेगा।
🙏🏻वृक्षों के माध्यम से जीवन पर्यन्त पूर्वजों को याद रखने का सबसे उत्तम तरीका है। वृक्ष पूर्वजो का सबसे खूबसूरत व उपयोगी स्मारक है। जब चाहो वृक्ष को गले लगाकर अपने पूर्वजों से मिलने की अनुभूति होगी। उस वृक्ष की छाया आपको उनका आशीर्वाद अनुभव होगा.....!!
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कर्ज के योग: —

कर्ज के योग: —
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं  बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है| इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं|
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है| जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है| 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है| अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं|

— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।
—- कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
—– षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है|
—छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो|
—-अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
—- अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के     प्रति अनिच्छुक होते हैं|
— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है|
— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है|

कर्ज और वार का संबंध —-
-सोमवार- सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।
-मंगलवार- मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।
-बुधवार- बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।
– गुरुवार- गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।
-शुक्रवार- शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।
-शनिवार- शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।
– रविवार- रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।
कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार 'ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र' का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।
धनहीनता के ज्योतिष योग—

ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं।धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं। कुछ योग इस प्रकार हैं-

-धनेश  छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात्‌ दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है।
– जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है।
– जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है।
-किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है।
-षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है।
-धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो।
-किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्राी संबंधी पीड़ा जातक को होती है।
– यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं।
-यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है।
-यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है।
– किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है।
– यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है।
-यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है।

मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है।
उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।

जीरे के आयुर्वेदिक गुण और उपचार

जीरे के आयुर्वेदिक गुण और उपचार___________

जीरा पाचक और सुगंधित मसाला है। यह पेट के विकारों को दूर करने में बहुत ही उपयोगी है। जीरा गर्म प्रकृति का होता है। भोजन में अरुचि, पेट फूलना, अपच आदि को दूर करने में जीरा एक उपयोगी औषधि की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। जीरा पेट के कीड़े खत्म करने व बुखार उतारने में भी सहायक है।
आइए, जानें कि जीरे को हम किस तरह इस्तेमाल कर स्वस्थ रह सकते हैं। - भुने हुए जीरे को सूंघने से जुकाम से छीकें आना बंद हो जाता है।
- एक गिलास ताजी छाछ में सेंधा नमक और भुना हुआ जीरा मिलाकर भोजन के साथ लें, इससे अजीर्ण और अपच से छुटकारा मिलेगा।
- बच्चों को दस्त होने पर बबूल की कोमल पत्ती, अनार की कली व जीरा मिलाकर दें, लाभ होगा।
- आंवले को भूनकर गुठली निकालकर पीसकर धीमे भूनें। फिर उसमें स्वादानुसार जीरा, अजवाइन, सेंधा नमक और थोड़ी सी भुनी हुई हींग मिलाकर गोलियां बना लें। इन्हें खाने से भूख बढ़ती है। इतना ही नहीं, इससे डकार, चक्कर और दस्त में लाभ होता है।
- पानी में जीरा डालकर उबालें और छानकर ठंडा करें। इस पानी से मुंह धोने से आपका चेहरा साफ और चमकदार होता है।
- जीरा और सेंधा नमक महीन पीसकर मंजन करने से दांतों तथा मसूड़ों के दर्द में आराम मिलेगा और मुंह की दरुगंध नष्ट होगी।
- हिस्टीरिया के रोगी को गर्म पानी में भुनी हींग, जीरा, पुदीना, नींबू और नमक मिलाकर पिलाने से रोगी को तत्काल लाभ होता है।
- थायराइड (गले की गांठ) में एक कप पालक के रस के साथ एक चम्मच शहद और चौथाई चम्मच जीरा पाउडर मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
- मेंथी, अजवाइन, जीरा और सौंफ 50-50 ग्राम और स्वादानुसार काला नमक मिलाकर पीस लें। एक चम्मच रोज सुबह सेवन करने से शुगर, जोड़ों के दर्द और पेट के विकारों से आराम मिलेगा। गैस की समस्या में इससे तत्काल लाभ मिलेगा। 
- प्रसूति के पश्चात जीरे के सेवन से गर्भाशय की सफाई हो जाती है।
- जीरे को पानी में उबाल लें, फिर उस पानी से स्नान करने से खुजली मिटती है।
- जीरा, अजवाइन, सोंठ, कालीमिर्च, और काला नमक अंदाज से लेकर चूर्ण कर लें। इसमें थोड़ी सी घी में भूनी हींग मिलाकर खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
- जीरा, अजवाइन और काला नमक का चूर्ण रोजाना एक चम्मच खाने से तेज भूख लगती है और पेट की गैस शांत होती है।
- 3 ग्राम जीरा और 125 मि.ग्रा. फिटकरी पोटली में बांधकर गुलाब जल में या उबाल कर ठंडा किए हुए 10 ग्राम जल में भिगो दें। आंख में दर्द होने पर या लाल होने पर इस रस को टपकाने से आराम मिलता है।
- दही में भूरे जीरे का चूर्ण मिलाकर खाने से डायरिया मिटता है।
- जीरे को नींबू के रस में भिगोकर नमक मिलाकर गर्भवती स्त्री को देने उसका जी मचलाना बंद हो जाता है।
- सिरके के साथ जीरा देने से हिचकी बंद हो जाती है।
- जीरे को गुड़ के साथ खाने से मलेरिया में लाभ पहुंचता है।
- जीरा आयरन का सबसे अच्छा स्त्रोत है, जिसे नियमित रूप से खाने से खून की कमी दूर होती है।
- एसीडिटी से तुरंत राहत पाने के लिए, एक चुटकी कच्चा जीरा खाने से फायदा मिलता है।
- ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए छोटा चम्मच पिसा जीरा दिन में दो बार पानी के साथ लें।

नवीन कपडे खरेदी आणि परिधान करणे

नवीन कपडे खरेदी आणि परिधान करणे सर्वांना आवडते. यामुळे आपल्याला आनंद होतो, यासोबतच मूडही फ्रेश राहतो नवीन कपडे खरेदी आणि परिधान करताना काही गोष्टींकडे लक्ष दिल्यास यामुळे आपले गुडलकही वाढू शकते. याउलट जुने (फाटलेले) कपडे घातल्याने दुर्भाग्य वाढते. ज्योतिष ग्रंथ बृहतजातकम् यामध्ये कपड्यांशी संबंधित विविध गोष्टी सांगण्यात आल्या आहेत. 
1. नवीन कपडे खरेदी करण्यासाठी शुक्रवार सर्वात चांगला दिवस आहे. शनिवारी नवीन कपडे खरेदी करू नयेत.
2. ज्योतिष शास्त्रानुसार, शुभ नक्षत्र (अश्विनी, चित्रा, रोहिणी)मध्ये नवीन कपडे खरेदी आणि परिधान केल्याने गुडलक वाढते.
3. फाटलेले, जळालेले कपडे कधीही घालू नयेत आणि सांभाळूनही ठेवू नयेत. असे केल्याने राहूचा अशुभ प्रभाव आयुष्यावर पडतो.
4. तुम्ही खूप जास्त निगेटिव्ह विचार करत असाल तर पिंक किंवा लाल रंगाचे कपडे परिधान करणे शुभ राहते.
5. एखाद्या कामामध्ये यश प्राप्त करण्याची इच्छा असल्यास पिवळ्या रंगाचे कपडे परिधान करावेत.
6. लाल रंगाच्या कपड्यांचा संबंध शुक्र आणि पिवळ्या रंगाचा संबंध गुरु ग्रहाशी आहे.

7. जुने झालेले कपडे कधीही फेकून देऊ नयेत, हे एखाद्या गरीब व्यक्तीला दान करावेत. यामुळे शनीशी संबंधित दोष दूर होतात.

8. मनुस्मृतीनुसार, जो व्यक्ती अस्वच्छ कपडे परिधान करतो तो नेहमी गरीब राहतो. देवी लक्ष्मी अशा लोकांच्या घरात कधीही
 प्रवेश करत नाही. यामुळे नेहमी स्वच्छ वस्त्र परिधान करावेत.

डिटाँक्सीफिकेशन आँफ बाँडी.

डिटाँक्सीफिकेशन आँफ बाँडी.
 आज सकाळी एक प्रश्न आला बाँडी डिटाँक्स करण्या संदर्भात या विषयावर आज आपण चर्चा करणार आहोत आपल्या आयुर्वेदात या विषयावर छान माहिती आहे. किंबहुना शरीर दोष विरहित रहावं ते वेळच्या वेळेवर डिटाँक्स होत जाऊन शरीर निरोगी राहवं म्हणून त्रिफळाच्या रुपाने मनुष्याला शरिराचं डिटाँक्सी फिकेशन करुन निरोगी राहण्याचे एक वरदान दिलं आहे.पण मनुष्य देह या आलेल्या संधी आणि वरदानांना नेहमीच नाकारत आला आहे.खरंतर वेळच्या वेळी याच सेवन केलं तर शरिरातील त्रिदोषां वर नियंत्रण मनुष्य करु शकतो व वाढलेल्या दोषाचं निर्मुलन करून बाँडी डिटाँक्स करु शकतो व तो दोष दुर करु शकतो.खरतरं बाँडी डिटाँक्स करण्याचं त्रिफळा चुर्ण बेस्ट साधन आहे.
त्रिफळाचुर्णाने होणारे फायदे.
माणसाला वात,पित्त, कफ याचे संतुलन बिघडले की ९०टक्के आजार होतात.त्रिफळा चुर्ण ही एक अशी गोष्ट आहे या सर्वांना नियंत्रणात ठेवते.आणि हे त्रिदोष एकदा नियंत्रित राहीले की माणूस कुठल्याही आजारांना बळीच पडत नाही. आपल्या निसर्गाने व आयुर्वेदानं  दिलेली ही मोठी देणगी आहे. रोज रात्री गरमपाण्यात घेतल्यास तो रेचक बनून शरीरातील दोष कमी करतो.व सकाळी दूधात घेतल्यास तो पुरक होऊन शरीरात बल,पुष्टी, उर्जा प्रदान करून  आयुष्य निरोगी ठेवण्यास मदत करत असतो.तरीही काही दोष हे शरीरात राहतात म्हणून संपूर्ण बाँडी डिटाँक्स करण्यासाठी आयुर्वेदात एक काल मर्यादा निश्चित केली असून संपूर्ण शरीर शुध्दी कशी कधी करावी या संबंधित भाष्य करताना महर्षी वागभट्ट आपल्या आष्टांगह्रदयम या ग्रंथातील चौथ्या अध्यायातील ३५वा श्लोका तून हे सुत्र मांडलय ते पाहूया म्हणजे आपल्याला हा प्रश्न समजणं सोपे आणि सुलभ होईल.
शीतोदभवं दोषचयं वसंन्ते विशोधयन्  ग्रीष्मजम अभ्रकाले।
धनात्यये वार्षिकमाशु सम्यक प्राप्नोति रोगानृतुजान्न जातु।।
यात महर्षी म्हणतात जर तुमच्या शरीरात ऋतू नुसार दोष येऊ नये वाटत असेल तर संपुर्ण बाँडी प्रत्येक ऋतूच्या नंतर एकदा दोषरहीत करून घ्यावी म्हणजे शरीर शुध्दी होऊ शकेल. या श्लोकाचा आपण आता अर्थ समजून घेऊया म्हणजे मुद्दा अधिक स्पष्टपणे समजेल
 ते म्हणतात हेमंत आणि शिशिर ऋतूत जेव्हा वातावरण थंड असते.तेव्हा शरीरात जमा झालेले दोष काढण्यासाठी योग्य वातावरण वसंत ऋतू योग्य आहे. तेव्हा शरीरात साचलेला मल,कफ व इतर दोष काढून टाकावेत नाहीतर ऋतू नुसार होणार्या आजाराचे तुम्ही शिकार व्हाल.यासाठी ते म्हणतात थंडीत साचलेले दोष वसंत ऋतूत शरीरातून काढून टाका. नाहीतरते गर्मीच्या उन्हाळ्याच्या वातावरणात तुम्हाला नाकात साचून सायनस, अँलर्जी,शितपित्त होऊन,अथवा रँशेस बनून अथवा त्वचा रोग बनून उन्हाळ्यात तुमच्या समोर उभा ठाकतील.तसेच गर्मी अथवा उन्हाळ्यात साचलेले शरीरातील रोग वर्षा ऋतूच्या प्रारंभी शरीरातून काढून टाकावेत.व पावसाळ्यात साचलेले दोष शरद ऋतूत शरीरातून बाहेर काढून मोकळे व्हा .आता हे दोष अथवा टाँक्सीन काढण्यासाठी ते पुढील श्लोकात पंचकर्मातील  वमन ,व विरेचन,व बस्ती करण्याचा सल्ला देतात.अशा प्रकारे तुम्ही तुमचे शरीर निरोगी ठेऊन शरीरातील टाँक्सीन बाहेर काढून निरामय जीवन जगू शकता असे महर्षी म्हणतात. पण आपण आधी मी म्हंटल्या प्रमाणे .रोज त्रिफळा चुर्ण व पंधरा दिवसातून एकदा वमन केलंत तर कधीच व्याधी जवळपास ही फिरकणार नाहीत. व बाँडी डिटाँक्स होईल.
वैद्य गजानन.
७७१५९९४०६०

आनंदापासून दूर करते ती माया

*।।  श्री  राम  जय  राम  जय  जय  राम  ।।*

*🚩श्री  ब्रह्मचैतन्य  महाराज  गोंदवलेकर🚩*

🌸  प्रवचने  ::  २८ ऑगस्ट  🌸*

 *आनंदापासून  दूर  करते  ती  माया .*

वस्तू आहे तशी न दिसता विपरीत दिसणे म्हणजे माया होय.
 माया म्हणजे जी असल्याशिवाय राहात नाही, पण नसली तरी चालते; उदाहरणार्थ, छाया. 
माया ही नासणारी आहे. ती जगते आणि मरते. मला विषयापासून आनंद होतो; पण तो आनंद भंग पावणारा आहे. 

आनंदापासून मला जी दूर करते ती माया. आपल्याला विषयापासून शेवटी दुःखच येते. हा आपला अनुभव आहे. माया आपल्याला विषयात लोटते; विषयांचे आमिष दाखवून चटकन निघून जाते. 

आहे त्या परिस्थितीत चैन पडू न देणे, हेच तर मुळी मायेचे लक्षण आहे. पैसा हे मायेचे अस्त्र आहे. 

मायेचे थोडक्यात वर्णन करायचे म्हणजे, भगवंतापासून मला जी दूर करते ती माया.

भगवंताची शक्ती जेव्हा त्याच्याच आड येते, तेव्हा आपल्याला ती माया बनते, आणि तिचे कौतुक जेव्हा आपल्याला वाटते तेव्हा ती लीला बनते. 
एक भगवंत माझा आणि मी भगवंताचा, असे म्हटले म्हणजे मायेचे निरसन झाले. मायेचा अनर्थ माहीत असूनही तो आपण पत्करतो, याला काय करावे ?

जगाचा प्रवाह हा भगवंताच्या उलट आहे. आपण त्याला बळी पडू नये.जो प्रवाहाबरोबर जाऊ लागला तो खडकावर आपटेल, भोवर्यात सापडेल, आणि कुठे वाहात जाईल याचा पत्ता लागणार नाही. आपण प्रवाहात पडावे पण प्रवाहपतित होऊ नये. आपण प्रवाहाच्या उलट पोहत जावे; यालाच अनुसंधान टिकवणे असे म्हणतात. 

भुताची बाधा ज्या माणसाला आहे त्याला जसे ते जवळ आहे असे सारखे वाटते, तसे आपल्याला भगवंताच्या बाबतीत झाले पाहिजे. परंतु बाधा ही भितीने होते; त्याच्या उलट, भगवंत हा आधार म्हणून आपल्याजवळ आहे असे वाटले पाहिजे. मनात वाईट विचार येतात, पण त्यांच्यामागे आपण जाऊ नये, मग वाईट संकल्प-विकल्प येणार नाहीत. 

सर्वांना मी 'माझे' असे म्हणतो, मात्र भगवंताला मी 'माझा' असे म्हणत नाही; याला कारण म्हणजे माया. 

वकील हा लोकांचे भांडण 'माझे' म्हणून भांडतो, पण त्याच्या परिणामाचे सुखदुःख मानत नाही, त्याचप्रमाणे, प्रपंच 'माझा' म्हणून करावा, पण त्यामधल्या सुखदुःखाचे धनी आपण न व्हावे. खटल्याच्या निकाल कसाही झाला तरी वकिलाला फी तेवढीच मिळते. तसे, प्रपंचात प्रारब्धाने ठरवलेलेच भोग आपल्याला येत असतात. आपले कर्तव्य म्हणून वकील जसा भांडतो, त्याप्रमाणे कर्तव्य म्हणूनच आपण प्रामाणिकपणे प्रपंच करावा. त्यामध्ये भगवंताला विसरू नये, अनुसंधान कमी होऊ देऊ नये, कर्तव्य केल्यावर काळजी करू नये, म्हणजे सुखदुःखाचा परिणाम आपल्यावर होणार नाही. हे ज्याला साधले त्यालाच खरा परमार्थ साधला.

*२४१ .  दुःखाचे  मूळ  कारण ।  जगत  सत्य  मानले  आपण ॥*

*।।  श्री  राम  जय  राम  जय  जय  राम  ।।*

Tuesday, August 27, 2019

कोरफड

"कोरफड "

 कोरफड ही सगळ्यांच्या परिचयाची अशी आहे,  बरेच जण थोड्या प्रमाणात त्याची लागवडही करतात. वेगवेगळे मेसेज हे सोशल मीडियातून लोकापर्यंत पोहोचत असतात,  असे मेसेज वाचून काहीजण स्वतःवर प्रयोग देखील करतात,  "दररोज दोन तुमचे कोरफड रस  प्या,  तुमचे शरीर निरोगी राहील" असे मेसेज वाचून लोक त से चालू करतात,  वास्तविकता ते खूप चुकीचे आहे. कोरफड बाबतीत एक चांगला मेसेज सगळीकडे जावा, त्याची शास्त्रीय माहितीही लोकांना व्हावी, असा आग्रह आमच्या एक जवळच्या वैद्य मित्रानी केला,  म्हणून आजचा कोरफड चा लेख लिहीत आहे, तो सर्वांच्या उपयोगी पडेल याची मला खात्री आहे. कुमारीचे बरेचसें पाळीचे आजार याने बरे होतात म्हणून यास" कुमारी" असेही म्हणतात,  दक्षिणेकडे हे  खूप प्रमाणात येते, कदाचित "कन्याकुमारी "हे नाव त्यामुळे ही पडले असावे, कोरफडीच्या पानावर प्रक्रिया करून "काळा बोळ "तयार करतात तो खूप औषधे आहे,  कोरफड कुठेही  येते, तिला जास्त पाणी चालत नाही, कडक ऊन असेल तर ती सुकते,  मात्र हवेतील ओलावा शोषून ती जगते. भारताच्या काही भागात, तर कोरफडीपासून लोणचे व लाडूही तयार करतात. कोरफडीचा छान वापरऔषधम्हणून  करून घेता येतो, आम्हाला तर खुप छान असे अनुभव आले आहेत.

1) बाह्य उपचार:-

 शरीरावर कुठेही सूज,  ठणका असल्यास कोरफडीच्या ग रात हळद टाकून,  ती गरम करून ती त्या जागेवर बांधावी. शरीरावर कुठेही भाजल्यास त्या ठिकाणी गर लावावा,  लगेच गार वाटते. मुळव्याध मध्ये, आग ठणका सुज  या ठिकाणी असते. तिथेही गर लावावा,  सूज कमी होईल. काळाबोळ चा,  आम्ही छान वापर करून घेतो. ज्या मुलांना लघवी,  संडास होत नाही,  त्यांना काळाबोळ,  बेंबीखाली उगाळून लावायला सांगतो. थोड्याच वेळामध्ये,  लघवी व पोट चांगल्या पद्धतीने साफ होते. चालताना,  पळताना लहान मूल किंवा वृद्ध व्यक्ती ही पडतात, मग त्या ठिकाणी ठे चाळून, सूज येऊन रक्ताची गाठ होते,  आंबेहळद उगाळून काहीजण लावतात,  तसेच काळा बोळ लावल्यास चांगला आराम पडतो, डोळे आल्यावर गर  फडक्यात गुंडाळून ते डोळ्यावर फिरवावे,  एका आजीबाईंनी हा उपाय आम्हाला सांगितला,  दोन-चार रुग्णावर त्याचा प्रयोगही करून बघितला,  चांगला आराम पडलेला दिसून आला. केसांच्या विकारावर कोरफड रस तेलात टाकून  ती  डोक्याला लावायला आम्ही सांगतो.

2)रक्त शुद्धी :-

 लोक हे खाण्यापिण्यातील दोषामुळे" रक्‍तधातू" बिघडवतात, मग बरीच लक्षणेही जाणवतात, कारखानदारीमुळे बरीच, उत्तरेकडील लोक हे आमच्या भागात कामास आहेत, रात्र पाळ्या, अंडी,  बटाटा, लोणचं, तिखट, वडापाव, फरसाण,  शीतपेय, त्यांच्या आहारात याचा जास्त भरणा असतो, त्यांना मग रक्तात दोष होऊन, बरेच विकार होतात,  जसे अंगात पुळ्या येणे,  खाज सुटणे,  छोटे मोठे फोड येणे,  अंगावर बारीक खरका  येणे,  त्यांना मग रक्तदुष्टी घालवण्यासाठी काdha  योजना करावे लागते,  त्यात कोरफड,  हळद,  मंजिष्ठा,  पटोल ध माशा,  गुळवेल अशा बऱ्याच औषधांचा वापर करावा लागतो काही दिवस प्रयोग केल्यास,  बऱ्याच जनावर छान आराम हा पडलेला दिसून येतो.

3)खोकला  -दमा :-

 लहान मुलांच्या खोकल्यावर, हे खूप छान पद्धतीने चालते,  लहान मुलांच्या वयोमानाप्रमाणे एक कणभर मीठ टाकून तो दिल्यास पोट साफ होऊन,  खोकलाही कमी होते. दम्यावर ही खूप छान काम करते,  एका शेतकऱ्याने कोरफडची लागवडही केली होती त्याच्या मोठ्या मुलीस, नुकतीच दम्याची सुरुवात झाली होती, तिला लगेच कोरफडीचा गर हा मध,  तुपातून घ्यायला सांगितला. व बाकीचे औषधेही दिली, तिचा बराचसा दम  कमी झाला, असे प्रयोग करायचे झाल्यास,  जवळच्या वैद्याच्या सल्ल्याने करावे.

4)पोटाचे विकार :-

 बऱ्याच जणांना भूक लागत नाही तोंडात कशी चव येतच नसते, जेवणानंतर दोन तीन तासांनी पोट दुखते,  बऱ्याच जणांना पित्ताचे खडे असतात,  मग भरपूर प्रमाणात पोट दुखते,  यकृताचे काम बिघडले की,  काही जणांना कोरडा खोकला येतो. केवळ खोकल्याचे औषध देऊन,  एक रुपया फायदा होत नाही. मग अशांना कोरफड, कुमारी आ स व  दिल्यास छान आराम पडतो, मुळव्याधाचा रुग्णांनाही मी कुमारी असव देतो पोटातील आम नावाचे विष हे कमी होऊन,  पोटही चांगले साफ राहते, मोड  नरम पडतात.

5)पाळी चे विकार :-

 प्रत्येक आई वडीलाचे हे एक काम असते, मुलीची पाळी नीट येते की नाही, तिच्या अंगावरून जाते की नाही,  विशेष ता,  आईने त्याकडे जास्त लक्ष द्यावे. पाळीचे विकार हे पुढे मुले बाळे व्हायला अडचणीचे ठरतात,  हे मनात आणून,  मुलीच्या लग्नाअगोदरच मुलींचा पाळी चा प्रॉब्लेम दूर  करून घ्यावा, आजकाल pcod  सारखे बरेचसे आजार मुलींना होत आहेत. माझ्याकडे अशा केसेस येतात, त्यातील एका मुलीला,  सोळा वर्षे चालू झाले तरी पाळी आली नव्हती, मग तिला कुमार्यासव,  बाकीचे औषधे पथ्य,  पाणी बस्ती चे उपचार केल्याचे,  या लेखाच्या निमित्ताने आठवले. तीन महिन्यांच्या उपचारांनंतर तिला पहिल्यांदा पाळी चालू झाली. आई-वडिलांचे टेन्शन दूर झाले.

6)खबरदारी :-

 आयुर्वेदिक औषधांचा,  साईड इफेक्ट होत नाही,  त्याचा काही त्रास होत नाही, असा भला मोठा गैरसमज हा सर्वत्र पसरलेला आहे "दररोज कोरफड ग र दोन चमचे प्या "असे  सांगणाऱ्यांना,  शास्त्रीय ज्ञान हे किती असते?  आयुर्वेदिक औषधेही तज्ञांच्या सल्ल्यानेच घ्यावी त,  कोरफड किंवा कुमार्यासव हे सतत कधीही देऊ नये,  ते पुष्कळ प्रमाणात ही देऊ नये,  ते जर दिले तर रक्ती मूळव्याध होऊ शकते, शौचाच्या ठिकाणी रक्तवाहिन्यांत दोष निर्माण होऊन रक्त हे पडते, तुमच्या किडनीला ही त्रास होऊ शकतो, कोरफडीचा वापर हा जास्त दिवस हा कधीच करू नये, 

 कोरफड र साची भावना देऊन,  आमच्याकडे बऱ्याच गोळ्या तयार होतात,  वयात आलेल्या मुलींच्या विकारावर ते हे एक नंबरचे औषध आहे, कोरफडीपासून तयार केलेल्या काळा बो ळाचा वापर आम्ही रुग्णात करून घेतो, एका रुग्णाची पाठदुखी ही कशाने जात नव्हती,  बऱ्याच जणांकडून ती केस आमच्याकडे आली होती, चर्चेनंतर,  आम् विषापासून निर्माण झालेली पाठ दुखी हे नेमके निदान करून,  त्यांना कुमारी असं व, व काही औषधे दिले, थोड्याच दिवसात, दोन वर्षाची पाठदुखी ही कुठल्या कुठे पळून गेली. 

राम -कृष्ण -हरी, 

आपला, 

डॉ :- विलास जगन्नाथ शिंदे, 

 जिजा ई आयुर्वेद चिकित्सालय, 
खालापूर, रायगड. 

फोन :-7758806466

##-- केळिच्या सालिचे फायदे

##-- केळिच्या सालिचे फायदे..🍌

  १) केळ्याच्या सालिचा आतिल भाग चेहरा व मानेवर रगडा व अर्ध्या तासाने कोमट पाण्याने धुवा. नियमित केल्याने त्वचेवरिल सुरकुत्या कमि होतात.

२)  पिकलेल्या केळिचि साल दातांना लावलि तर दातांचा पिवळेपणा जाऊन मोत्यासारखे चमकतात.

३)  केळ्याचि साल हळूवार चेहर्यावर चोळल्यास चेहर्यावरिल मुरूमे, पुटकूळ्या नाहिश्या होण्यास मदत 
 होते. सालित अँटि आँक्सिडंटस् असल्याने
  त्वचेवरचे  पिगमेटेशन, वांग, डाग, दूर होतात , जर केळिचि साल नियमितपणे घासलि तर चेहर्यावर..

४)  केळिच्या सालितले सफेद धागे काढून त्यात अँलोव्हेरा जेल मिसळून डोळ्याखालि लावल्यास
 काळे वर्तुळ नाहिसे होतात.

५)  एखाद्या मधमाशिने डंख, दंश, केला तर त्याठिकाणी केळिचि साल बारिक करून लावल्यास आराम पडतो.

६)  शरिरात एखाद्या ठिकाणि वेदना होत असेल तर. त्याठिकाणि ३० मिनिटांपर्यंत केळिचि साल लावावि, आराम पडतो.

७) चेहर्यावरिल सुरकुत्यांमूळे त्रस्त असाल तर, केळिचि साल मिसळून चेहर्यावर लावल्यास सुरकुत्या नष्ट होतात. हि पेस्ट ५ मिनिटे चेहर्यावर लावून ठेवावि. व नंतर धूवा.

८)  त्वचेवर कुठेहि मस किंवा चामखिळ असल्यास केळिचि साल तिथे चोळावि. काहि दिवसातच मस, किंवा चामखिळ  निघून जाते.

९)  प्रदूषणामुळे किंवा संगणकावर जास्त वेळ काम केल्याने  डोळ्यांवर ताण येतो. अश्यावेळि  केळिची साल डोळ्यावर ठेवावि,  थंडावा मिळतो. व त्यात असलेले
 विटामिनस् ,   डोळ्यांना मिळतात, डोळे रिलँक्स होतात.
 
१०). एका संशोधनातून सिद्ध झाले कि,  केळ्याच्या सालिचा   antidepressant म्हणून वापर करता येतो.
  तुम्हि केळिचि साल पाण्यात उकळवून ते पाणि प्यालात तर त्याचा प्रभाव  एखाद्या    antidepressant.  असतो..
                  #*#...

*प्रभु श्रीरामांची वंशावळ

*प्रभु श्रीरामांची वंशावळ*

०० - ब्रह्मा

०१ - ब्रह्माचा पुत्र मरीची.

०२ - मरीची चा पुत्र कश्यप.

०३ - कश्यप चा पुत्र विवस्वान.

०४ - विवस्वान चा पुत्र वैवस्वत मनु.
       (याच्याच काळात जलप्रलय झाला)

०५ - वैवस्वत मनुचा तिसरा पुत्र इक्ष्वाकु,
       १० पैकी. (याने अयोध्याला राजधानी 
       व इक्ष्वाकु कुळाची स्थापना केली)

०६ - इक्ष्वाकुचा पुत्र कुक्षी.

०७ - कुक्षीचा पुत्र विकुक्षी.

०८ - विकुक्षीचा पुत्र बाण.

०९ - बाणचा पुत्र अनरण्य.

१० - अनरण्यचा पुत्र पृथु.

११ - पृथुचा पुत्र त्रिशंकु.

१२ - त्रिशंकुचा पुत्र धुंधुमार.

१३ - धुंधुमारचा पुत्र युवनाश्व.

१४ - युवनाश्वचा पुत्र मान्धाता.

१५ - मान्धाताचा पुत्र सुसंधी.

१६ - सुसंधीचे २: ध्रुवसंधी व प्रसेनजित.

१७ - ध्रुवसंधी चा पुत्र भरत.

१८ - भरतचा पुत्र असित.

१९ - असितचा पुत्र सगर.

२० - सगरचा पुत्र असमंज.

२१ - असमंजचा पुत्र अंशुमान.

२२ - अंशुमानचा पुत्र दिलीप.

२३ - दिलीपचा पुत्र भगीरथ.
       (यानेच गंगा पृथ्वीवर आणली)

२४ - भागीरथचा पुत्र ककुत्स्थ.

२५ - ककुत्स्थचा पुत्र रघु.
       (अत्यंत तेजस्वी, न्यायनिपुण, पृथ्वीवरचा
       पहिला ज्ञात चक्रवर्ती. म्हणूनच इक्ष्वाकू
       कुळ हे *रघुकुळ* म्हणुन प्रसिद्ध झाले)

२६ - रघुचा पुत्र प्रवृद्ध.

२७ - प्रवृद्धचा पुत्र शंखण.

२८ - शंखणचा पुत्र सुदर्शन.

२९ - सुदर्शनचा पुत्र अग्निवर्ण.

३० - अग्निवर्णचा पुत्र शीघ्रग.

३१ - शीघ्रगचा पुत्र मरु.
        (याच्या सत्तेने आताचे अरबस्तान #
         मारुधर, मरुस्थान किंवा मरूभूमी
         म्हणून ओळखले जायचे)

३२ - मरुचा पुत्र प्रशुश्रुक.

३३ - प्रशुश्रुकचा पुत्र अम्बरीष.
       (राजाने कायम संन्यस्त असावे
        याचा परिपाठ यांनीच घातला)

३४ - अम्बरीषचा पुत्र नहुष.
       (यांच्यापासुन कुरुवंश सुरु होतो)

३५ - नहुषचा पुत्र ययाति.

३६ - ययातिचा पुत्र नाभाग.

३७ - नाभागचा पुत्र अज.

३८ - अजचा पुत्र दशरथ.

३९ - दशरथचे चार पुत्र
      *राम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न.*

ब्रह्माच्या *४०व्या पीढ़ीत* श्रीराम जन्मले.

*चाळीस पिढ्यात*
*असं झालं नाही, अस केलं नाही,*
👆चाळीस पिढ्या 
हे वाक् प्रचार यातुन जन्माला आले. अतिषय दुर्मिळ माहीती शेअर करित आहे 

जय श्री राम
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

लग्न जमण्यासाठी खटाटोप करण्यापेक्षा हे करून बघा

लग्न जमण्यासाठी खटाटोप करण्यापेक्षा हे करून बघा

● लग्न न जमणा-या मुलीवरुन तिला दाखवण्याच्या आदल्या दिवशी किंवा शनिवारी तुरटी ओवाळून विस्तवावर टाकावी 
असे तीन शनिवार करावेत
याने दुष्ट नजरेने जर विवाहात अडथळे येत असतील तर नाहिसे होतात व विवाह चांगल्या ठिकाणी जमतो.

● काही उपयुक्त मंत्र / स्तोत्र

" देवकीनन्दन गोपाल वासुदेव जगत्पते !
देहि मे तनयं , कृष्ण त्वां अहम् शरणं गतः !!

" देवन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय भामिनी !
विवाह , सौख्य , आरोग्यं , पुत्र लाभं च देहि मे !!

● मंगळ दोषामुळे विवाह जमण्यास अडथळा येत असल्यास 'मंगलचंडिका स्तोत्र ' नित्य पठण करावे

● उमामहेश्वर स्तोत्र / पार्वती स्तुती - अविवाहीत मुलींसाठी 

● अविवाहीत मुला मुलींनी त्रिपुरारी पोर्णीमेला श्री कार्तिकस्वामींचे दर्शन घेणे. यावर्षी बुधवार २५ नोव्हेंबरला सकाळी ७:३८ पासून ऊत्तर रात्री  म्हणजे गुरूवारी पहाटे ४:१४ पर्य॓त कृतिका नक्षत्र आहे. 
या वेळेच्या आत दर्शन घेणे चांगले.

● विवाह उत्सुक मुलींनी शुक्रवारी देवीला वेणी किंवा गजरा अर्पण करणे. असे ५ शुक्रवार करणे

● विवाह उत्सुक मुलांनी पुढील मंत्र नेहमी जपत रहावा 

"ॐ पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीं
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम् "

मुलींनी पार्वती मंत्र नेहमी म्हणावा

" ॐ हे गौरी शंकरार्धांगी यथात्वं शंकरप्रिया 
तथा मां करु कल्याणी कान्तकान्ता सुदुर्लभाम "

प्रभावी मंत्र ||

|| प्रभावी मंत्र ||
काम कुठलेही असो, उदाः- शिक्षणातील अडचणी,विवाह समस्या ,संतती प्राप्ती, संततीसुख,कोर्ट कचेरीची कामे,लोकांकडून आपले येणे (पैसे), विविध समस्या व संकट कुठल्याही प्रकारचे असो, या सर्वांसाठी एकच जालीम उपाय आहे तो मी येथे देत आहे. जो विश्वासाने , श्रद्धेने , खंडनकरता नित्य जप करेल त्याला निश्चितच अनुभव येईल व मनोकामना पूर्ण होईल.
*मंत्र ः-|| मंगलमूर्ते विघ्नहरा दुरित नाशना कृपा करा*||
या ठिकाणी हे लक्षात घ्यायचे आहे की जप मंगलमूर्ती नसुन मंगलमूर्ते आहे.
१)जपाला सुरुवात मंगळवारी किंवा चतुर्थीच्या दिवशी करावी.
२) प्रथम दिवशी जपाला सुरुवात करण्यापूर्वी एखाद्या गणपतीच्या मंदिरात स्नान करुन जावे.
३) गणपतीला नारळ१, विडा सुपारी त्यावर एक नाणे, एक फळ ( डाळिंब) , २१ दुर्वा, एक लाल रंगाचे फूल , खोबरे वाटी व गुळाचा खडा. हे सर्व गणपतीला समर्पण करावे.
४) आपली जी मनोकामना असेल ती गणपतीला सांगावी. व मी आज पासून या कामा करता जप करणार आहे , तो माझ्या कडुन करुन घ्या अशी प्रार्थना करावी.
५) दररोज न चुकता १२१ वेळेस वरिल मंत्राचा जप करावा.
६) महिलांनी मासिक पाळीत पाच दिवस जप करु नये.

राशिनुसार भाग्य नामाक्षर

• राशिनुसार भाग्य नामाक्षर..... कोणताही कार्य  करण्यासाठी प्रथम आपले जन्म नांव व त्याचे स्पंदन आपल्या ला भाग्याच्या बुलंदिवर नेण्यासाठी मदतगार ठरते.......
1) मेष......... या राशिच्या भाग्याची अक्षरे  म.. ध.. अ.. ल.. असून ती नामकरणास योग्य ठरतात.....
2) वृषभ..... प.. ज.. व.. ड.. ह.. अक्षर भाग्यशाली आहेत नाकरणासाठी....
3)  मिथुन..... या राशिला को.. क.. र.. स.. ही भाग्यशाली आहे त.....
4)  कर्क..... या राशीचे ह.. न.. ह.. ज.. द.. ही आहेत… 
5) सिंह..... या राशीचे म.. ध.. ट.. अ.. अशी भाग्यशाली आहेत......
6) कन्या...... या राशिला  प. ज.. द.. व.. अक्षर भाग्यशाली आहेत......
7) तूळ ....... को. र.. स.. क.. त.. शुभ परिणाम कारक अक्षर आहेत.....
8) वृश्चिक........ द.. ह.. न.. य.. ही परिणाम कारक अक्षर आहेत.....
9) धनु.... अ.. म.. क..भ..  नामाक्षर शूभ आहेत..
10) मकर...... प.. व.. र.. य...व..   ह..  शूभ परिणाम कारक अक्षर आहेत.....
11) कुंभ....... यात र.. ग.. क..स ये.. अक्षर शुभकारक ठरतात.....
12) मीन.......द.. ह.. न.. प.. ह परम शुभकारक अक्षर ठरतात.......
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हिंदुधर्मामध्ये स्नान केल्याबरोबर कपाळी गंधा विषयी माहिती

हिंदुधर्मामध्ये स्नान केल्याबरोबर कपाळी गंधा विषयी माहिती 

आम्हा अलंकार मुद्रांचे शृंगार । तुळसीचे हार वाहू कंठी ॥
गोपीचंदन मुद्रा धारणे । आम्हा लेणे वैष्णवा ॥
शरीराच्या प्रत्येक अवयवावर देवतांचे किंवा भगवंताचेच अधिष्ठान आहे. पुराणांतरी कोणत्या अवयवाच्या ठिकाणी नामस्मरण करून गंध लावावे, हे सांगितले आहे. -

ललाटे केशवं विद्यात्कंठे श्रीपुरुषोत्तमम् ।
नाभी नारायणं देवं वैकुठं हृदये तथा|
दामोदरं वाम पार्श्वे दक्षिणे च त्रिविक्रमम् ।
मूर्ध्नि चैव हृषीकेशं पद्मनाभं च पृष्ठत: ।
कर्णयोर्यमुना गंगे बाव्हो कृष्णं हरिं तथा ।
यथा स्थानेषु तुष्यन्ति देवता द्वादशा: स्मृता: ।
द्वादशौतानि नामानि कर्तव्ये तिलके पठेत् ।
सर्वपापनिशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ।

अर्थ  - कपाळाच्या जागेवर केशव, कंठाच्या ठिकाणी पुरुषोत्तम, नाभीच्या ठिकाणी नारायण, हृदयाच्या ठिकाणी वैकुंठ, डाव्या हाताच्या मुळाशी दामोदर, उजव्या हाताच्या मुळाशी त्रिविक्रम, मस्तकावर हृषिकेश, पाठीच्या ठिकाणी पद्मनाभ, उभय कानांच्या ठिकाणी यमुना व गंगा, उभय बाहुस्थळी कृष्ण - हरी, असा क्रम श्रुतिकारांनी सांगितला आहेअ. गंध लावताना त्या त्या नावाचा जप करावा, म्हणजे निष्पाप होऊन विष्णुलोकी वास्तव्य घडते. फ़ल - हिंदुधर्मातील चारी वर्णीयांनी गंध लावले असता व गोपीचंदनाने शरीर युक्त असा तो ब्रह्महत्येच्या पातकापासून मुक्त होतो.
कलियुगात गोपीचंदनाचा टिळा धारण करणारा पुरुष श्रेष्ठ होय. तो चुकूनही दुर्गतीला जात नाही. गोपीचंदन म्हणजे पुष्करतीर्थातील मृत्तिका होय. ही पवित्र असल्याने देहाला पवित्र करणारी आहे. ज्याच्या घरात गोपीचंदन आहे, त्याच्या घरात श्रीविठ्ठलाचे वास्तव्य खात्रीने असते.

ज्याच्या कपाळी गंध नसेल त्याचे सुतकी तोंड पाहू नये. चुकून दृष्टीस पडल्यास सूर्यदर्शन अवश्य करावे. त्यामुळे पाप नाहीसे होते.

देवास गंध कसे लावावे ?

देवतांना विशेषत: ' गंधाष्टक ' वाहतात. सर्वसाधारण लोक केवळ चंदनच वाहतात. १ चंदन, २ केशर, ३ वाळस, ४ कापूर, ५ धूप, ६ र्‍हीबेर, ७ कोष्ट, ८ जटामांसी ही द्रव्ये एकत्र उगाळून ' गंधाष्टक ' तयार होते. सर्व देवांना लागू असे गंध म्हणजे सुगंधी द्रव्य, चंदन, धूप, कृष्णागारू धूप व केशर हे क्रमाने एकापेक्षा एक श्रेष्ठ आहेत. विष्णूला तुळशीकाष्ठाचे गंध विशेष प्रिय आहे. तुळशीच्या पानाला गंध लावून ते विष्णूला वाहिले असता त्याला अत्यंत प्रिय आहे. गंध शिंपल्यात ठेवावे. हातावर किंवा तांब्याच्या पात्रात ते कधीही ठेवू नये. देवाला पातळ गंध न वाहता त्याच्या गोळ्या करून वाहाव्यात.

आपली संस्कृती.

मुख्य चार यात्रा(वार्‍या

मुख्य चार यात्रा(वार्‍या)
१) चैत्री यात्रा

चैत्र महिना हा नवीन वर्षातील पहिला महिना आहे. पंढरपुरात चैत्र शुद्ध एकादशीस म्हणजेच कामदा एकादशीस यात्रा भरते. सारे भाविक चंद्रभागा स्नान, विठ्ठल-रुक्मिणी दर्शन, पंढरी प्रदक्षिणा, भजन-कीर्तन करुन ही यात्रा साजरी करतात.

२) आषाढी यात्रा

आषाढी यात्रा ही पंढरीतील महायात्रा म्हणून ओळखली जाते. आषाढ महिन्यातील शुद्ध एकादशीस ही यात्रा भरते. या एकादशीस देवशयनी एकादशी म्हणतात. भगवंत या एकादशीपासुन शयन करतात. आषाढी एकादशीपासुन चातुर्मास चालु होतो. चातुर्मासात अधिकाधिक विठ्ठल गुणांचे रुपाचे श्रवण कीर्तन करुन भक्त विठ्ठल प्राप्तीसाठी प्रयत्न करतात. "आषाढी कार्तिकी विसरु नका मज । सांगतसे गुज पांडुरंग ॥ " आषाढी कार्तिकीला श्रीविठ्ठल-रुक्मिणीचे दर्शन २४ तास चालु असते. संत ज्ञानेश्वर महाराज आणि संत तुकाराम महाराज यांच्या दिंड्यांसह असंख्य दिंड्या महाराष्ट्रातील तसेच इतर राज्यातील कानाकोपर्‍यातुन पंढरीकडे श्रीविठ्ठल दर्शनासाठी येतात. वाखरी येथील संतनगर येथे सर्व संतांच्या पालख्या एकत्र होतात. आषाढ शुद्ध दशमीला सर्व पालख्या आणि दिंड्या एकमेकांना भेटतात. इथुन आषाढ शुद्ध दशमीला सकाळी सर्व पालख्या हळुहळु पंढरीकडे जायला निघतात. आषाढीला सारे वारकरी पवित्र चंद्रभागेत स्नान करुन संतांच्या पालख्यांसोबत पंढरी प्रदक्षिणा करतात."पुंडलिक वरदा हरी विठ्ठल" आणि "जय जय राम कृष्ण हरी" या नामघोषाने सारे वातावरण भारून जाते. एकादशीच्या दिवशी दुपारी एक वाजता सरदार खाजगीवाले यांच्या वाडयातील श्रीविठ्ठल-रुक्मिणी आणि श्रीमती राधाराणी यांची सजवलेल्या रथातुन प्रदक्षिणा मार्गाने मिरवणुक निघते. आषाढ शुद्ध पोर्णिमेला गोपालकाला होऊन यात्रेची सांगता होते. गोपाळपुर येथे सार्‍या दिंड्या आणि पालख्या एकत्र होतात. काल्याच्या कीर्तनानंतर सार्‍यांना गोपालकाला वाटला जातो.

३) कार्तिकी यात्रा
कार्तिकी यात्रा ही कार्तिक महिन्यातील शुद्ध एकादशीस पंढरपुरात साजरी केली जाते. शयनी एकादशीला झोपी गेलेले भगवंत या दिवशी उठतात. या उत्सवात चंद्रभागेच्या वाळवंटात ठिकठिकाणी कीर्तन प्रवचन चालू असते. संध्याकाळपासुन संपुर्ण वाळवंट भाविकांनी फुलुन जाते. एकादशीच्या दिवशी रात्रभर जागरही केला जातो. पोर्णिमेच्या दिवशी गोपाळपुरात गोपालकाला होतो भाविकांना प्रसाद वाटला जातो.

४) माघी यात्रा

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माघी यात्रा माघ महिन्यातील शुद्ध एकादशीस भरते. या एकादशीस जया एकादशी म्हणतात. ठिकठिकाणी कीर्तन प्रवचन चालु असते. वारकरी विठ्ठल नाम गजरात तल्लीन होतात.

ज्योतिष शास्त्रामधील गण

ज्योतिष शास्त्रामधील गण.

ज्योतिष शास्त्रानुसार मनुष्य योनीची तीन गणांमध्ये विभागणी केली गेली आहे. 
 मनुष्य गण, देव गण आणि राक्षस गण. गणांचा संबंध स्वभावाशी जोडला गेला आहे. वधू-वरांचे गण कोणते आहेत त्यानुसार त्यांना गुणमिलन करताना गुण दिले जातात. या गणांबाबत थोडक्यात जाणून घेउया.

देव गण : 

सुंदरों दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा। अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।। 
अर्थात : दानी, बुद्धिमान, सरळ हृदयी, अल्पाहारी व विचाराने श्रेष्ठ अश्या व्यक्तीचा देवगण असतो.

मनुष्य गण : 

मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:। गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।
अर्थात : मनुष्य गणामध्ये उत्पन्न  व्यक्ती मानी, धनवान, विशाल नेत्र असलेली, धनुर्विद्या जाणणारी, उत्तम नेम असलेली, गौर वर्ण, नगरवासियाना वश करणारी असते.

राक्षस गण : 

उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:। पुरुषो दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।
अर्थात : राक्षस गण मध्ये उत्पन्न झालेले बालक उन्मादयुक्त, भयंकर स्वरूप, भांडखोर, प्रमेह रोगाने पीड़ि‍त कटु वचन बोलणारा असे म्हटले जाते.

ज्योतिष शास्त्रानुसार देव गण आणि मनुष्य गणातील लोक सामान्य असतात. तर राक्षस गणाच्या व्यक्तींमध्ये काही विशिष्ट नैसर्गिक गुण असतात. त्यामुळे राक्षस गणाच्या व्यक्तींना वातावरणातील नकारात्मक शक्तींची ताबडतोब आणि प्रखर जाणीव होते. या शक्तींचा वातावरणातील प्रभाव राक्षस गणाच्या व्यक्तींवर जास्त पडत असल्यामुळेच त्यांना भूत किंवा आत्म्यांचं दर्शन घडतं. मात्र या वातावरणामुळेच राक्षस गणाच्या व्यक्तींमध्ये काही क्षमता विकसित होतात, ज्यामुळे या व्यक्तींना अमानवी गोष्टींची भीती वाटत नाही. राक्षस गणाचे लोक साहसीदेखील असतात. कुठल्याही विपरीत परिस्थितीत ते घाबरून जात नाहीत. या व्यक्तींना त्यामुळेच भूत किंवा आत्म्यांकडून त्रास होत नाही. केवळ अनुभव येतो.

वास्तुशास्त्रात उंबरठ्याचे महत्व.

वास्तुशास्त्रात उंबरठ्याचे महत्व.
वड, पिंपळ काय किंवा उंबर काय, या सर्व झाडांना
आपण पवित्र मानतोच. बहुतेक गावात एक पूर्ण
वाढलेले वडाचे नाहीतर पिंपळाचे झाड असतेच.
उंबराचे झाडही आपण पवित्र मानतो.
नृसिंहानी हिरण्यकश्यपुचा वध केला तेंव्हा नृसिंह
अत्यंत क्रोधीत झाले होते, काहि केल्या त्यांच्या
शरीराचा दाह कमी होत नव्हता, उंबराच्या
फळामध्ये नखे रोवल्यानंतरच त्यांचा क्रोध हळू हळू
कमी होऊन नृसिंहस्वामी शांत झाले.
उंबराच्या फळामधील शांतरसाच्या गुणधर्मामुळेच
उंबरठ्याची संकल्पना आली. घरातील प्रत्येक
व्यक्तीने घरात प्रवेश करताना, उंबरठा ओलांडल्याने
त्याचे मन शांत व्हावे , घरात शांतता प्रस्थापित
व्हावी, सकारात्मक उर्जा प्रस्थापित व्हावी हि
खरी या मागील संकल्पना आहे.
उंबराच्या पूर्ण वाढलेल्या झाडाच्या मूळाशी
पाण्याचा वाहता झरा असतो, असे आढळल्यामूळे,
नवीन विहिर खोदताना, हा निकष लावला जातो.
उंबराच्या झाडाखालून जाताना, एकतरी उंबर
खाल्ल्याशिवाय पुढे जाऊ नये, असा संकेत आहे.
गडकिल्ले भटकताना, कुठेही उंबराचे झाड दिसले, तर
आवर्जून उंबराची फळे खावीत. हे फळ खाल्यास
बराच वेळ तहान वा भूक लागत नाही.
उंबराचे लाकूड मजबूत असते. ते लवकर कूजत नाही.
पुर्वी घराच्या दारात आवर्जून उंबराची फळी
ठोकली जात असे. म्हणून तर त्याला उंबरठा म्हणायचे.
सध्या उंबरठ्याच्या नावाखाली कोणत्याही
प्रकारचे लाकूड वापरण्यात येते. काहि जण लाकडा
ऐवजी फरशी बसवितात, हे काही योग्य नाही.

केश शास्त्रानुसार केव्हा कापावेत माहीती

केश शास्त्रानुसार केव्हा कापावेत माहीती 

नोटः पुत्रवंतनी(ज्यांना मुलगा आहे)सोमवारी केस कापु नये

प्राचीन काळापासून दाढी करण्यासाठी आणि केस कापण्यासाठी काही दिवस वर्ज्य सांगण्यात आले आहेत. या संदर्भात मान्यता आहे की, वर्ज्य दिवसांमध्ये करण्यात आलेल्या या कामांमुळे विविध प्रकारचे अशुभ फळ प्राप्त होतात. शास्त्रानुसार दैनंदिन जीवनात शुभफळ प्राप्त करण्यासाठी काही प्रथा तयार करण्यात आल्या असून यांचे पालन आजही केले जाते. यातीलच एक प्रथा दाढी करणे आणि केस कापण्यासंदर्भात आहे. येथे जाणून घ्या, या कामाशी संबंधित प्रथा, केव्हा दाढी करावी केव्हा करू नये, केव्हा केस कापावेत आणि केव्हा कापू नयेत...

या दिवसांमध्ये करू नये हे काम
शास्त्रानुसार मंगळवार, गुरुवार आणि शनिवारी केस कापू नयेत. हा अपशकून मानला जातो. आजही घरातील वृद्ध मंडळी शनिवार, मंगळवार आणि गुरुवारी केस न कापण्याचा सल्ला देतात.

पुढे जाणून घ्या, या दिवसांमध्ये हे काम का करू नये....

शास्त्रातील मान्यता -
- शास्त्रानुसार मंगळवारी व अमवस्याला केस कापल्यास आपले आयुष्य आठ महिन्यांनी कमी होते.

- गुरुवार सर्व देवतांचे गुरु बृहस्पतीचा वार मानला गेला आहे. या दिवशी केश कापल्यास अशुभफळ प्राप्त होतात.

- शनिवारी केस कापल्यास आयुष्य सात महिन्यांनी कमी होते.

- इतर  दिवस बुधवार, शुक्रवार आणि रविवारी हे काम करू शकता. या दिवसांमध्ये हे काम केल्यास दोष लागत नाही.

पुढे जाणून घ्या, ज्योतिष शास्त्रानुसार या दिवशी केस कापल्यास कोणते फळ प्राप्त होते...
ज्योतिष शास्त्रातील मान्यता -
शास्त्रानुसार मंगळवार मंगळ देवाचा दिवस आहे. शरीरात मंगळ देवाचा निवास रक्तामध्ये असती आणि रक्तापासून केसांची उत्पत्ती होते. अशाचप्रकारे शनिवार शनि ग्रहाचा दिवस असून शनीचा आपल्या त्वचेशी संबंध आहे. यामुळे मंगळवार आणि शनिवारी केस कापल्याने मंगळ आणि शनि ग्रहसंबंधित अशुभ प्रभावांचा सामना करावा लागू शकतो. यामुळे या दिवसांमध्ये केस न कापण्याचा सल्ला दिला जातो.

आजकाल या गोष्टींना अंधश्रद्धा मानले जाते, परंतु शास्त्रीय मान्यतेनुसार प्राचीन काळापासून ऋषीमुनींनी बनवलेल्या या प्रथांचा आपल्या जीवनावर खोलवर प्रभाव पडत असतो.

पुढे जाणून घ्या, या संदर्भातील आणखी एक प्रचलित कारण...
हे आहे प्रचलित कारण
असे मानले जाते की, आठवड्यातील काही दिवशी ग्रहांमधून निघणारे किरणं आपल्या आरोग्यासाठी हानिकारक असतात. शनिवार, मंगळवार आणि गुरुवार या दिवसांशी संबंधित ग्रहांच्या किरणांचा प्रभाव आपल्या डोक्यावर पडतो. आपया शरीरातील महत्त्वाचा भाग डोक असून त्यामधील मेंदू अतिसंवेदनशील आणि खूप नाजूक असतो. याचे रक्षण केसांमुळे होते. याच कारणामुळे या दिवसांमध्ये केस कापू नयेत.

आयुष्य वाढण्यासाठी केश कापल्यानंतर स्नान करने 

ज्योतिष आकाश पुराणिक

अजपा जप

अजपा हा श्रेष्ठ भक्तीचा प्रकार आहे. जिथे जीवाची चेतना आणि अचेतनाही बाधत नाही. जसे धनुर्धर अर्जून झोपेत असतानाही रोमारोमातून हरे कृष्ण ऐकायला येत असे. महान संत जनाबाई मुखाने शेजारनीशी भांडतानाही श्वास विठ्ठल विठ्ठल गायचे आणि संत चोखोबांच्या हाडातून विठ्ठल विठ्ठल गजर झाला. अर्थात अजपा भक्तीला ना जिभेची गरज ना श्वासाची.. जड-जीवात, चराचरात तो आणि तोच परमात्मा आहे ही जाणीव आणि अहं ब्रम्हास्मि ही भावना पुरेशी आहे.
वारंवार मुखाने जप जरी करत असाल तरी मी प्रत्येक क्षणी सर्वस्वी फक्त तुझाच आहे, मी तुझाच अंश आहे मी मलाच तुझ्या चरणी वाहत आहे ही भावना असेल तर आपल्याकडून कसा जप करुन घ्यायचा ती जबाबदारीही त्याची असणारच आहे.

शनीची साडेसाती व मारुतीची पूजा :

शनीची साडेसाती व मारुतीची पूजा : 
शनीची साडेसाती असतांना तिचा त्रास कमी व्हावा म्हणून मारुतीची पूजा करतात. त्याचा विधी असा : एका वाटीत तेल घ्यायचे. त्यात चौदा काळे उडीद टाकून त्या तेलात स्वत:चा चेहरा पहायचा. मग ते तेल मारुतीला वाहायचे. एखादी आजारी व्यक्तीत जरी मारुतीच्या देवळात जाऊ शकत नसली, तरीही याच पद्धतीने तिला मारुतीची पूजा करता येते. तेलात चेहर्या चे प्रतिबिंब पडते तेव्हा वाईट शक्ती चेही प्रतिबिंब पडते. ते तेल मारुतीला वाहिल्यावर त्यातील वाईट शक्ती चा नाश होतो.

स्वामीनी आपल्याला चार रत्न दिली आहेत

स्वामीनी आपल्याला चार रत्न दिली आहेत..
1) पहिले रत्न आहे...माफी 
तुमच्या साठी कोणीही काही बोलुदया ते अपल्या मनावर घेऊ नका आणि त्या साठी प्रतिकार ही करु नका व ती भावनाही मनात ठेवू नका. उलट त्यांना माफ करा.
2) दुसरे रत्न..विसरून जाणे
आपण केलेले उपकार नेहमी विसरून जा. कधीही त्या केलेल्या उपकाराचा प्रतिलाभ, लोभ ठेवू नका.
3) तिसरे रत्न...विश्वास
नेहमी आपल्या मेहनतीवर आणि स्वामीचे अटुट विश्वास ठेवा. हेच खरे सफलतेचे सूत्र आहे...
4) चौथे रत्न...वैराग्य
हे नेहमी लक्षात ठेवा की जेव्हा आपला जन्म झाला आहे. तसेच एक दिवस मृत्यू ही आहे म्हणून त्यात लीन होऊन आनंद घ्या व वर्तमानात जगा.........

पादुकांना नमस्कार कसा करावा

पादुकांना नमस्कार कसा करावा ?

पादुका हे शिव आणि शक्ति यांचे प्रतीक असतात अन् नमस्कार करतांना त्रास होऊ नये; म्हणून पादुकांच्या खूंटयांवर डोके न ठेवता पादुकांच्या पुढच्या भागावर डोके ठेवून नमस्कार करणे.

'डावी पादुका ही शिवस्वरुप आणि उजवी पादुका ही शक्तिस्वरुप असते. डावी पादुका म्हणजे ईश्वराची अप्रकट तारक शक्ति आणि उजवी पादुका म्हणजे ईश्वराची अप्रकट मारक शक्ति होय. पादुकांच्या अंगठयातून (पादुकांच्या खूंट्या) आवश्यकते प्रमाणे ईश्वराची तारक आणि मारक शक्ति बाहेर पडत असते. ज्या वेळी आपण पादुकांच्या अंगठयावर डोके टेकवून नमस्कार करतो, त्या वेळी काही जणांना त्यातील प्रकट शक्ति न पेलवल्याने त्रास होऊ शकतो यासाठी पादुकांना नमस्कार करताना शक्यतो डोके पादुकांच्या अंगठयावर न टेकवता पादुकांच्या पुढच्या भागावर (जेथे संतांच्या पायांची बोटे येतात), तेथे टेकवावे.

श्री दत्तात्रेयांच्या उपासनेत अनेक ठिकाणी पादुका पूजनास महत्व आहे. 

श्री दत्तात्रेय हे गुरु स्वरूपात सर्वत्र आढळत असल्यामुळे त्यांच्या चरणपूजेचा महिमा वाढलेला आहे. दत्त संप्रदायात गुरूपेक्षा गुरु चरणांनाच महत्वाचे स्थान आहे. म्हणून दत्त पंथीयात श्रीगुरु व त्यांच्या चरण पादुका यांना फार महत्व आहे. श्रीगुरूंच्या वा इष्ट देवतेच्या पादुका पूजण्याचा प्रकार फार पूर्वीपासूनचा आहे. श्रीराम वनवासात असताना भरताने त्यांच्या पादुका सिंहासनावर ठेवून आदर भाव दर्शविला होता.

अतिशय प्रिय व्यक्तीविषयी, थोर व्यक्ती विषयी आदर दाखविणे म्हणजे त्यांच्या पायावर डोके ठेवणे. यातील आणखी एक रहस्य असे की, श्रेष्ठ सत्पुरुषांची सर्व दैवी शक्ती त्यांच्या चरणात एकवटलेली असते. त्यांच्या चरण-स्पर्शाने कंपनाद्वारा ती शक्ती भक्तांत संचारत असल्याचा अनेकांना अनुभव आलेला आहे. म्हणूनच अनेक दत्तस्थानांत दत्त मूर्तीपेक्षा दत्तपादुकांना महत्वाचे स्थान मिळाले आहे.

गिरनार शिखरावर दत्तात्रेयांच्या पादुकाच आहेत. गाणगापूर येथे श्री नृसिंह सरस्वती यांनी निर्गुण पादुकाच मागे ठेवल्याची कथा आहे. नृसिंहवाडीलाही दत्त पादुकांचीच पूजा केली जाते. देवगिरीवर जनार्दनस्वामींच्या समाधी स्थानी पादुकाच आहेत.

विष्णूचा जसा शाळीग्राम तसे दत्तोपासनेत दत्तांच्या पादुकांना महत्वाचे स्थान आहे. या दत्त पादुकांची पूजा सगुण व निर्गुण स्वरूपात केली जाते. म्हणूनच 'मी ठेवितो मस्तक ज्या ठिकाणी । तेथे तुझे सद्गुरु पाय दोन्ही ॥' असे नम्रपणे नतमस्तक होऊन म्हटले जाते.

#रेकी - वैश्विक प्राणशक्ती

#रेकी - वैश्विक प्राणशक्ती
#प्रा. दयानंद सोरटे
अनेक वाचक मित्रांच्या आग्रहावरून मी आज या ठिकाणी रेकी आणि त्यामुळे मला आलेले काही अनुभव या ठिकाणी कथन करणार आहे. खरे तर रेकी हा जपानी भाषेतील शब्द आहे. रेकी या शब्दाचे स्पष्टीकरण करायचे म्हटले तर रे - म्हणजे वैश्विक आणि की - म्हणजे ऊर्जा किंवा प्राणशक्ती होय. ज्या शक्तीला  आपण हिंदू धर्मामध्ये कुंडलिनी शक्ती या नावाने देखील ओळखतो. पूर्वीच्या काळी योगाभ्यासाचा सहाय्याने किंवा गुरु मार्फत शक्तिपात करून आपल्या शरीरातील षटचक्र जागृत करून कुंडलिनी शक्ती जागृत केली जात असे. परंतु त्याकाळी केवळ क्षत्रिय आणि ब्राह्मण या केवळ दोनच वर्णांना योगाभ्यास शिकण्याचा धार्मिक अधिकार होता. त्यामुळे सर्वसामान्य जण या विद्येपासून अलिप्त राहिले. त्यांना या शक्तीचा परिचय झाला नाही.याच शक्तीच्या बळावर पूर्वीचे ऋषीमुनी निरोगी दीर्घायुष्य जगत असत. वैदिक पूर्व काळामध्ये तर स्रियांना देखील योगाभ्यास करण्याचा अधिकार होता. देवी संध्या यानी ऋषीमुनींच्या सानिध्यात राहून योगाभ्यास करून अनेक दुर्मिळ विद्या अवगत केल्या होत्या. रामायण काळामध्ये देखील वशिष्ठ ऋषींनी प्रभू रामचंद्रांना कुंडलिनी जागृत करण्याकरिता योगाभ्यास शिकवल्याचा दाखला आहे. याच शक्तीच्या सहाय्याने नवनाथ आपले शरीर वज्राहून कठीण आणि कापसापेक्षा हलके करू शकत होते. याच शक्तीचा वापर करून हनुमानाने एका हातावर द्रोणागिरी पर्वत उचलला होता. पुराणात असे अनेक दाखले आहेत. अलीकडच्या काळात म्हटले तर संत ज्ञानेश्वरांनी याच शक्तीच्या सहाय्याने आपल्या पाठीवर मांडे भाजले होते आणि याच शक्तीच्या सहाय्याने चांगदेव १४०० वर्ष जगला होता. पण जसजसा काळ बदलला तशी हि विद्या लुप्त होऊ लागली. आणि काही लोकांनी ती आपल्यापुरतीच मर्यादित ठेवली. याचे कारण , या विद्येचा कुणी दुरुपयोग करू नये हे देखील होते.
प्रत्येक जीवात्मा हा त्या परमात्म्याचा अंश आहे. जो प्रत्येक जीवांमध्ये अदृश्य स्वरूपात वास करतो. ज्याप्रमाणे फुलाचा सुगंध दिसत नाही तो केवळ अनुभवता येतो त्याचप्रमाणे परमेश्वराच्या अस्तित्वाची केवळ अनुभूती करता येते. ज्यावेळी मुलाचा जन्म होतो. म्हणजे जेव्हा मूल मातेच्या उदरातून बाहेर येते. त्यावेळी हि तेजस्वी शक्ती आकाशमार्गाने येऊन मुलाचे टाळू भेदन करून सहस्त्रार चक्राद्वारे प्रवेश करून शेवटच्या म्हणजे मूलाधारचक्रामध्ये ( कमरेच्या माकड हाडाजवळ ) स्थिरावते. ती सापाप्रमाणे तीन वेटोळे घालून त्या ठिकाणी साधारणपणे सुमारे साडेतीन वर्ष स्थिर अवस्थेत असते. आणि साडेतीन वर्षानंतर ती ऊर्ध्व दिशेने म्हणजे वर सरकायला सुरवात करते. म्हणजे ती मूलाधार चक्रातून स्वाधिष्ठान चक्राकडे सरकण्याचा प्रयत्न करते. म्हणून तीन वर्षापर्यंत मुलाला जेवढे चांगले संस्कार करता येतील तेवढे करावेत. कारण तेव्हा त्याला षड्रिपूंनी ग्रासलेले नसते. त्याला तुझे - माझे कळत नसते. या दरम्यान त्याच्यावर केवळ चांगले संस्कार झाले तर हि शक्ती नैसर्गिकरित्या सहजतेने स्वाधिष्ठान चक्रामध्ये येते. पण या दरम्यान मुलावर चुकीचे संस्कार झाल्यास ती शक्ती मूलाधार चक्रामध्येच स्थिर होते. तिची गती स्थगित होते.
म्हणूनच लहान मुलाची टाळू कमजोर असते. ती शक्ती त्या टाळूचे भेदन करून आत गेल्याने लहान मुलाच्या टाळूचा भाग कमजोर असतो. काही लोकं पायाळू असतात. म्हणजे त्यांचा जन्म पायाकडून झालेला असतॊ . अशा लोकांच्या पायाच्या तळव्यातून ती शक्ती आत शिरते. आणि मूलाधार चक्रात जाऊन स्थिरावते. त्यामुळे अशा लोकांच्या पायामधे एक प्रकारची दैवी शक्ती आलेली असते. तुम्ही अनेकदा ऐकले किंवा पाहिले असेल. कि मानेमध्ये किंवा पाठीमध्ये चमक भरल्यास पायाळू लोकांकडून पाय उतरून घेतल्यास चमक लगेच उतरते. याच्या मागे शास्त्रीय कारण काय आहे हे मला ठाऊक नाही पण अध्यात्मिक कारण सांगण्याचा मी प्रयत्न केला आहे. आता काही मित्र म्हणतील कि अशा मुलांची देखील टाळू उडत असते. पण हि शक्ती त्यांच्या टाळूतून देखील आत शिरते पण ती अंशतः असते. कारण अशा मुलांचा जन्म पायाकडून झाल्यामुळे त्या शक्तीचा आघात त्यांच्या तळपायावर जास्त होतो त्यामुले त्याचा लाभ त्यांच्या पायाला जास्त होतो. याचाच अर्थ असा होतो कि जन्मताच हि शक्ती तुमच्या - माझ्या किंवा सर्वांच्याच शरीरामध्ये स्थित असते. केवळ आपल्यावर होणाऱ्या चांगल्या किंवा वाईट संस्कारांमुळे तिची गती मंदावलेली असते. स्वामी समर्थ, साई बाबा , गौतम बुद्ध , येशू ख्रिस्त यांच्या अगोदरपासूनच हि शक्ती त्यांच्या आज्ञाचक्रामध्ये स्थिरावलेली असल्यामुळे हे महात्मे कोणताही चमत्कार करू शकत होते. हि झाली रेकी किंवा कुंडलिनी शक्तीची ओळख . आपण पुढच्या भागामध्ये या शक्तीचा नव्याने शोध कसा लागला आणि तो शोध कुणी लावला हे जाणून घेऊ पुढील भागात. तोपर्यंत नमस्कार !

संत की पहचान कैसे करें?

संत की पहचान कैसे करें? 
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ये प्रश्न नारदजी ने प्रभु श्रीराम से पूछा था। पढ़े प्रभु श्रीराम का उत्तर 

* संतन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भंजन भीरा॥
सुनु मुनि संतन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥

भावार्थ:- हे रघुवीर! हे भव-भय (जन्म-मरण के भय) का नाश करने वाले मेरे नाथ! अब कृपा कर संतों के लक्षण कहिए! (श्री रामजी ने कहा-) हे मुनि! सुनो, मैं संतों के गुणों को कहता हूँ, जिनके कारण मैं उनके वश में रहता हूँ॥

* षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥
अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥

भावार्थ:- वे संत (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर- इन) छह विकारों (दोषों) को जीते हुए, पापरहित, कामनारहित, निश्चल (स्थिरबुद्धि), अकिंचन (सर्वत्यागी), बाहर-भीतर से पवित्र, सुख के धाम, असीम ज्ञानवान्‌, इच्छारहित, मिताहारी, सत्यनिष्ठ, कवि, विद्वान, योगी,॥

* सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना॥

भावार्थ:- सावधान, दूसरों को मान देने वाले, अभिमानरहित, धैर्यवान, धर्म के ज्ञान और आचरण में अत्यंत निपुण,॥

* गुनागार संसार दुख रहित बिगत संदेह।
तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥

भावार्थ:- गुणों के घर, संसार के दुःखों से रहित और संदेहों से सर्वथा छूटे हुए होते हैं। मेरे चरण कमलों को छोड़कर उनको न देह ही प्रिय होती है, न घर ही॥

* निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं। पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं॥
सम सीतल नहिं त्यागहिं नीती। सरल सुभाउ सबहि सन प्रीति॥

भावार्थ:- कानों से अपने गुण सुनने में सकुचाते हैं, दूसरों के गुण सुनने से विशेष हर्षित होते हैं। सम और शीतल हैं, न्याय का कभी त्याग नहीं करते। सरल स्वभाव होते हैं और सभी से प्रेम रखते हैं॥

* जप तप ब्रत दम संजम नेमा। गुरु गोबिंद बिप्र पद प्रेमा॥
श्रद्धा छमा मयत्री दाया। मुदिता मम पद प्रीति अमाया॥

भावार्थ:- वे जप, तप, व्रत, दम, संयम और नियम में रत रहते हैं और गुरु, गोविंद तथा ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम रखते हैं। उनमें श्रद्धा, क्षमा, मैत्री, दया, मुदिता (प्रसन्नता) और मेरे चरणों में निष्कपट प्रेम होता है॥

* बिरति बिबेक बिनय बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना॥
दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग पाऊ॥

भावार्थ:- तथा वैराग्य, विवेक, विनय, विज्ञान (परमात्मा के तत्व का ज्ञान) और वेद-पुराण का यथार्थ ज्ञान रहता है। वे दम्भ, अभिमान और मद कभी नहीं करते और भूलकर भी कुमार्ग पर पैर नहीं रखते॥

* गावहिं सुनहिं सदा मम लीला। हेतु रहित परहित रत सीला॥
मुनि सुनु साधुन्ह के गुन जेते। कहि न सकहिं सादर श्रुति तेते॥

भावार्थ:- सदा मेरी लीलाओं को गाते-सुनते हैं और बिना ही कारण दूसरों के हित में लगे रहने वाले होते हैं। हे मुनि! सुनो, संतों के जितने गुण हैं, उनको सरस्वती और वेद भी नहीं कह सकते॥

* कहि सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे।
अस दीनबंधु कृपाल अपने भगत गुन निज मुख कहे॥
सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि ब्रह्मपुर नारद गए।
ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग गए॥

भावार्थ:- 'शेष और शारदा भी नहीं कह सकते' यह सुनते ही नारदजी ने श्री रामजी के चरणकमल पकड़ लिए। दीनबंधु कृपालु प्रभु ने इस प्रकार अपने श्रीमुख से अपने भक्तों के गुण कहे। भगवान्‌ के चरणों में बार-बार सिर नवाकर नारदजी ब्रह्मलोक को चले गए। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे पुरुष धन्य हैं, जो सब आशा छोड़कर केवल श्री हरि के रंग में रँग गए हैं।

* रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥

भावार्थ:- जो लोग रावण के शत्रु श्री रामजी का पवित्र यश गावेंगे और सुनेंगे, वे वैराग्य, जप और योग के बिना ही श्री रामजी की दृढ़ भक्ति पावेंगे॥
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भाजलेले चणे... फुटाणे...

##... भाजलेले चणे... फुटाणे...

.. फुटाणे म्हणजेच भाजलेले चणे अतिशय पौष्टिक , बल दायि असतात. फुटाण्यात,  मोठ्या प्रमाणात कार्बोहायड्रेट, प्रोटिन, कँलशिअम, आर्यन, व विटामिन  सी असतं याचे आरोग्याचे विपुल असे फायदे आहेत.
        दररोज नाश्त्यात अथवा जेवणात आधि  ५० ग्रँम फुटाणे खाल्याने रोगप्रतिकार क्षमता वाढते. आणि त्यामुळे अनेक आजारापासून रक्षण होते.

##लठ्ठपणा #ओबिसिटिः।  जर तुम्ही लठ्ठपणामूळे ग्रस्त असाल तर भाजलेले चणे खाणे फायद्याचे ठरते रोज एक वाटाभर फुटाणे खाल्याने वजन कमी होते. आणि हलके वाटते,  शरिरातिल अतिरिक्त चरबि निघून जाते.

##युरिनबद्दलसमस्याः  ज्यांना सतत युरिनला जावे लागत असेल, जळजळ होत असेल,  त्यांनि चणे व गूळ खावे एकत्रित काहि दिवसातच आराम पडतो.

##पाचनशक्तिवाढवतेः  पचनसंस्था  मजबूत होण्याकरता रोज चण्याचे सेवन करावे . बद्धकोष्ठ दूर होते कारण यात फायबर मुबल आहे, फुटाणे खाल्याने
   रक्त शुद्ध होते त्वचा निकोप राहते  चण्यात फाँस्फरस असतं ज्यामुळे हिमोग्लोबिनचि पातळी वाढते.

##मधूमेहावर गुणकारीः।  भाजलेले चणे डायबिटिजच्या रूग्णांना लाभदायि आहेत. फुटाणे ग्लुकोजचि मात्रा कमि
 करतात. व रक्तातलि साखर नियंत्रित ठेवतात.
          हिवाळ्यात , थंडित, हरभर्याच्या पिठाचा हलवा थोडे दिवस नियमित खाल्यास  संधिवात, गुडघेदुखि, सांधेदुखि असे सर्व वाताचे त्रास कमी होतात.
        गर्भवतिला मळमळ होऊन उलटि होत असेल तर फुटाण्याचे सार, सूप करून पाजावे त्वरित आराम पडतो.

##   ५० ग्रँम फुटाणे उकळून घ्या आणि त्याच उकळलेल्या पाण्यात बारिक करा,  हे  कोमट करून पिल्यास  जलोदर, लिव्हर बद्दलचे सर्व आजार दूर होतात. असे एक महिनाभर करावे.
          भाजलेले चणे रात्रि चावून खावेत आणि त्यानंतर गरम दूध प्यावे. या उपायाने श्वासाशि संबंधित रोग , कफ, दमा, अस्थमा, खोकला दूर होतो., बरा होतो.

## अनेक जण कँलशिअम वाढावे म्हणून तर्हैतर्हैच्या विटामिनच्या गोळ्या खातात, पण रोज तुम्हि मुठभर फुटाणे दररोज खाल्ले तर  शरिराचि कँलशिअमचि कमतरता भरून निघते.
        हाडे मजबूत होतात,   शारिरिक श्रमामूळे किंवा मानसिक तणावामूळे मनुष्य वयाआधिच म्हातारा दिसतो , तेव्हा शारिरिक थकवा, व मानसिक थकवा, तणाव कमी करणारी तत्वे फुटाण्यात आहे. याचे
    नियमित सेवन करावे., याने अनिद्रा दूर होते.

## पूर्वि पाहुण्याचे स्वागत गूळ फुटाणे देउनच करत. त्यामागचे कारण हेच कि, प्रवासाचा  थकवा, दगदग, दूर होउन, तो शीण निघावा.  गुळ फुटाणे हे अतिशय उत्तम 
  काँबिनेशन आहे, हे खाल्यास  सर्वच  विटमिन, मिनरल मिळतात.
        गूळ फूटाणे दातांना सुरक्षित ठेवतात, यातिल फाँस्फरस दातांसाठि उपयोगि आहे. गर्भावस्थेनंतर स्रियांनि दररोज गूळ फुटाणे खावेत.

## गुळ फुटाणे खाल्याने बुद्धि तीक्ष्ण होते. यातील विटामिन बी स्मरणशक्ति वाढवते. यातिल पोटँशिअम हार्ट अटँकपासून रक्षण करते. ह्रुदय संबंधित समस्यांसाठी गूळ- फुटाणे उपयोगि आहेत.
...... अगदी माफक किंमतित  उत्तम आरोग्य आपल्याला
 सहज मिळू शकतं फुटाण्याचे दररोज सेवन केल्यास हे नक्कि....#*#*#*#...

मूतखडाः✍️

मूतखडाः✍️
१) कडूलिंबाच्या पानाचि राख  २ ग्रँम पाण्याबरोबर नियमित खाल्याने मूतखडा विरघळतो.
२)  जर खडा लहान असेल तर मेहंदिचे साल वाटुन चूर्ण करावे व सकाळि अर्धा चमचा नियमित घेतल्यास मूतखडा विरघळतो.
३)  पुनर्नवासव, दोन चमचे जेवणानंतर घ्या सोबत, गोक्षुरादि वटि, मूत्रनाशक वटि, व चंद्रप्रभा वटि एक एक घ्यावि सकाळ संध्याकाळ.
३)  पाषाणभेद वनस्पति व गोखरू काटे यांचे समप्रमाणात मिसळलेले चूर्ण दोन ग्रँम, रोज एक वेळ( रिकाम्या पोटी) पाण्याबरोबर घ्यावे नंतर ४-५ ता स काहिच खायचे नाहि. मूतखडा लवकर विरघळतो.
५) द्राक्षाच्या वाळलेल्या वेलि आणून त्या जाळुन त्याची राख करावि व ति रोज अर्धा चमचा मधात कालवून खावि.
६) पानफुटि वनस्पतिचा रस रोज घ्यावा..

.श्री दत्त - नाथ संप्रदाय

.श्री दत्त - नाथ संप्रदाय
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 श्रीदत्तप्रभूंची कृपा नवनाथांचे स्मरण करणाऱ्यांवर अपार असते.
नाथपंथीयांची वेशभूषा 
१) भस्म- भस्माला विभूती असेही म्हणतात. काही ठीकाणी .क्षार असाही उल्लेख आढळतो. भस्म हे योग्याच्या वेशभूषेचे एक आवश्यक अंग आहे. ते काही असले तरी नाथपंथीयाने भस्म हे लावले पाहीजे. सर्व देहाचे अखेर भस्मच होणार आहे. यासाठी देहावरील प्रेम कमी करून आत्माकडे मन केंद्रित करा असा संदेशच जणू काही भस्म देत आहे. शिवाय भस्मधारणेमुळे त्या त्या ठिकाणची शक्तिकेंद्रेही जागृत होतात. भस्माचे असे महात्म्य असल्यानेच नाथपंथीयांनी त्याचा अगत्याने स्वीकार केल्याचे दिसते.
२) रूद्राक्ष- हे एका झाडाचे फळ असून त्यास रूद्र अक्ष म्हणतात. शिवाचा नेत्र असा शब्दाचा अर्थ आहे. जपासाठी रूद्राक्ष माळ वापरतात. लक्ष्मी स्थिरावणे, शस्त्राघात न होणे अशा काही हेतूंसाठीही रूद्राक्षांच्या माळा विशेष करून वापरल्या जातात. शिवाय रूद्राक्षांचे औषधी गुणधर्मही अनेक आहेत.
३) मुद्रा- मुद्रा हे नाथपंथातील एक महत्वाचे साधन आहे. ही मुद्रा कानाच्या पाळीस छिद्र पाडून त्यात घातली जाते. ही बहूदा वसंत पंचमीच्या शुभ दिवशीच धारण केली जाते. अशा मुद्राधारक योग्यांनाच कानफाटे योगी असेही म्हणतात.कारण ते कानात छिद्र पाडून ती धारण केलेली असते.
४) कंथा- कंथा हे भगव्या रंगाचे वस्त्र. यालाच गोधडी अथवा गुदरी असेही नाव आहे, आपल्या वाकळेसारखे चिंध्यांचे हे बनविलेले असते.
५) मेखला- सूमारे २२ ते २७ हात लांबीची ही लोकरीची बारीक दोरखंडासारखी दोरी असून, नाथ योगी ही कमरेपासून छातीपर्यंत विशिष्ट पद्धतीने गुंडाळतात. ही कटिबंधिनी मोळ्याच्या दोरीची करतात. कधी ही मेंढीच्या लोकरीचीही असते. मेखला दुहेरी पदरात असून तिच्या शेवटच्या टोकाला घुंगरू लावलेले असते.
६) हस्तभूषण मेखली- बारीक सुतळीएवढ्या जाडीची ही लोकरीची दोरी असून ती मनगटावर बांधतात. चार फुटांच्या या मेखलीवर रूद्रमाळ बांधलेली असते.
७) शैली- ही सुद्धा लोकरीची असून दुपदरी शैली जानव्यासारखी घातली जाते. शैलीच्या टोकाला लोकरीचा गोंडा असतो.
८) शृंगी- जानव्याच्या शेवटी अडकवलेली हरणाच्या शिंगाची बनवलेली ही एक प्रकारची शिट्टीच होय. शृंगी बांधलेले जानवे ''शिंगीनाथ जानवे'' म्हणून ओळखले जाते. शृंगीची वा शिंगीची लांबी साधारणपणे एक इंच असते. भिक्षेचा स्वीकार केला, की शिंगी वाजविण्याचा प्रघात आहे.
९) पुंगी- ही सुद्धा हरणाच्या शिंगाची बनविलेली असते. साधु दारासमोर भिक्षेसाठी आला, की पुंगी वाजवितो. पुंगी शृंगीपेक्षा बरीच मोठी म्हणजे ७ ते ८ इंच लांबीची असते पुंगी डाव्या खांद्यात अडकवून ठेवलेली असते.
१०) जानवे- नाथपंथीयांचे जानवे हा एक विशेष प्रकार आहे. ते लोकरीच्या पाच -सात पदरांचे असून त्यात शंखाची चकती अडकवलेली असते चकतिच्या छिद्रात तांब्याच्या तारेने एक रूद्राक्ष बसविलेला असतो.त्याच्या खालीच शृंगी अडकवलेली असते. हा गोफ म्हणजेच नाथपंथी जानवे होय.
११) दंडा- दिड हात लांबीची ही एक काठी असते.हीस गोरक्षनाथ दंडा असे नांव आहे. नाथपंथी साधूच्या हातात ती असते.
१२) त्रिशूळ- साधनेत विशेष अधिकार प्राप्त झाला, त्रिशूळ वापरतात.नवनाथश्रेष्ठी त्रिशूळधारी होते सामरस्यसिद्धी ज्यांनी प्राप्त केली ते केवळ त्रिशूळधारी होत.
१३) चिमटा- अग्निदीक्षा घेतलेला साधक चिमटा बाळगतो. याची लांबी साधरणतः २७, ३२, ५४, इंच अशी असते. चिमट्याच्या टोकाला गोल कडे असते. त्यात पुन्हा नऊ लहान कड्या असतात. नाथपंथीयांची चाल या विशिष्ट नादावर व धुंदीत असते. अग्निचे उपासक नाथपंथी धुनी सारखी करण्यासाठी चिमट्याचा उपयोग करतात.
१४) शंख- शंखास फार पुरातन काळापासून महत्व आहे. भगवान विष्णूंच्या हातातील शंख हेच दर्शवितो. भिक्षेच्या अथवा शिवाच्या दर्शनाच्या वेळी नाथपंथीय साधू शंख वाजवितात. शंखनाद हा ओंकाराचा प्रतिक मानला आहे.
१५) खापडी (खापरी)- नाथपंथी साधू फुटक्या मडक्याच्या तुकड्यावर भिक्षा घेतात. हा तुकडा म्हणजेच खापडी किंवा खापरी. कधी खापरी नारळाच्या कवटीची अथवा कांशाची बनवितात.
१६) अधारी- लाकडी दांडक्याला खालीवर पाटासारख्या फळ्या बसवून हे एक आसनपीठ तयार केलेले असते. कोठेही बसण्यासाठी योगी याचा उपयोग करतात.
१७) किंगारी- हे एक सारंगीसारखे वाद्य असून भिक्षेच्या वेळी नाथपंथी याच्यावर नवनाथांची गाणी म्हणतात.
१८) धंधारी- हे एक लोखंडी वा लाकडी पटट्यांचे चक्र असून त्याच्या छीद्रातून मालाकार असा मंत्रयुक्त दोरा ओवलेला असतो. याचा गुंता सोडविणे अतिशय अवघड असल्याने त्याला "गोरखधंधा" असेही नांव आहे. गुरूकृपेने हा गुंता सुटला तर संसारचक्रातून सुटका होईल अशी कल्पना आहे.
१९) कर्णकुंडले - जो कानफाट्या नावाचा संबंध नाथपंथाशी आहे. तो कानांस छिद्रे पाडून त्यात कुंडले अडकवितात. कुंडल धातुचे किंवा हरणाच्या शिंगाचे किंवा सुवर्ण गुंफित असते.

माहिती संकलनः श्री दीपक कुळकर्णी.

श्री दत्त - नाथ संप्रदाय

श्री दत्त - नाथ  संप्रदाय
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उज्जयिनी येथील दत्तनाथ ही मध्य प्रदेशातील श्रीदत्त परंपरा आहे. निरंजन-विष्णू-हसकमलासन-अत्री-दत्तगोपाळ-वेडा नागनाथ-निबंजनाथ- जनार्दन – एकनाथ-दत्तभाऊ -केशवबुवा-अंतोबादादा-दत्तनाथ अशी ही परंपरा आहे. याचे मूळ नाथसंप्रदायातील महिपतीनाथांकडे जाते. या परंपरेचे उपास्य दैवत श्रीदत्तात्रेय असून त्यांनी मध्य भारतामध्ये दत्तभक्तीचा प्रचार-प्रसार केला आहे.

दत्तसंप्रदाय- नवनाथ संप्रदाय

श्री नवनाथ संप्रदाय

नाथसंप्रदायिकांच्या श्रद्धेनुसार श्रीदत्तात्रेय ही योगसिद्धी प्राप्त करून देणारी देवता आहे. उपास्य दैवत म्हणून नव्हे, तर सिद्धिदाता गुरू आणि अवधूतावस्थेचा आदर्श म्हणून नाथसंप्रदायात दत्तांचे महिमान गायलेले आहे. नाथपंथाचा महनीय वारसा घेऊन वारकरी संप्रदायाचे संजीवन करणारे श्रीज्ञानेश्वर हे नाथ परंपरेतील संत होत. ज्ञानेश्वरांच्या अभंग गाथेत 'ज्ञानदेवांच्या अंतरी दत्तात्रेय योगिया' असा दत्तविषयक एक अभंग आहे. नाथसंप्रदायामध्ये दत्तात्रेयांना फार मोठे स्थान आहे. योगविद्या, मंत्रसिद्धी, सिद्धिसामथ्र्य, वैराग्य, तपश्चर्या आणि अध्यात्मज्ञान यांमध्ये नाथसंप्रदायातील लोक पूर्ण समर्थ होते. या संप्रदायाचा उगम मध्ययुगीन काळात सामान्यत: इसवी सनाच्या आसपास झालेला आहे. नाथसंप्रदायाचे उगमस्थान आदिनाथ भगवान शंकर हेच आहेत. नाथसंप्रदायाच्या उत्तरकालीन ग्रंथात दत्तगोरक्षाच्या अद्भुत कथांचे वर्णन आहे. दत्तप्रबोध या ग्रंथात मत्स्येंद्र व गोरक्षांना दत्तात्रेयाने गिरनार पर्वतावर उपदेश केल्याचा वृत्तांत पाहावयास मिळतो. नवनाथ भक्तिसार या ग्रंथात नागनाथ आदि नाथांना दत्तदर्शनाचा लाभ झालेला दिसून येतो. सुमारे सातशे वर्षांपूर्वी दत्त उपासनेचा प्रचार या संप्रदायाने नेपाळपर्यंत पोहोचवला असे इतिहास सांगतो. नवनाथ या नावाने प्रसिद्ध असलेले सर्व सिद्धयोगी हे श्रीदत्तप्रभूंचे अंशावतार आहेत. मत्स्येंद्रनाथ, गोरक्षनाथ, जालंधरनाथ, कानिफनाथ, चर्पटनाथ, नागनाथ, भर्तरिनाथ, रेवणसिद्ध व गहनीनाथ हे नवनाथ आहेत. त्यांच्या स्मरणमात्रानेच शुभफळ सिद्ध होते. श्रीदत्तप्रभूंची कृपा नवनाथांचे स्मरण करणाऱ्यांवर अपार असते.

माहिती संकलनः श्री दीपक कुळकर्णी.