सूर्यनारायण विशेष
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सूर्य ग्रह - कैसे हुई उत्पत्ति क्या है कथा
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सूर्यदेव एक ऐसे देवता जिनके साक्षात दर्शन हमें प्रतिदिन नसीब होते हैं। जिनके प्रताप से ही हम समय की खोज कर सके हैं। जिन्हें समस्त ग्रहों का राजा माना जाता है। जिन्हें आदित्य, भास्कर, मार्तण्ड आदि अनेक नामों से जाना जाता है। विज्ञान के अनुसार सूर्य भले ही एक ग्रह मात्र हों जो स्थिर रहते हैं और पृथ्वी के घूमने से वे घूमते दिखाई देते हों लेकिन पौराणिक कहानियों के अनुसार वे सात श्वेताश्व रथ पर सवार रहते हैं और हमेशा गतिमान। इतना ही नहीं प्रकाश स्वरूप भगवान सूर्य के आदित्य या मार्तण्ड कहे जाने के पिछे भी एक कहानी है? आइये जानते हैं सूर्य देव की जन्मकथा।*
सूर्य देव जन्म की पौराणिक कथा
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वैसे तो माना यह जाता है कि सृष्टि आरंभ में अंधेरा ही अंधेरा था, लेकिन भगवान श्री विष्णु के नाभिकमल से जन्मे भगवान ब्रह्मा ने अपने मुखारबिंद से सबसे पहले जो शब्द उच्चरित किया वह था ॐ मान्यता है कि ॐ के उच्चारण के साथ ही एक तेज भी पैदा हुआ जिसने अंधकार को चीरकर रोशनी फैलाई। कहते हैं ॐ सूर्य देव का सूक्ष्म प्रकाश स्वरूप था। इसके पश्चात ब्रह्मा के चार मुखों से वेदों की उत्पत्ति हुई जो इस तेज रूपी ॐ स्वरूप में जा मिले। फिर वेद स्वरूप यह सूर्य ही जगत की उत्पत्ति, पालन व संहार के कारण बने। मान्यता तो यह भी है कि ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर ही सूर्यदेव ने अपने महातेज को समेटा व स्वल्प तेज को धारण कर लिया।
कैसे बने आदित्य?
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सूर्य देव के जन्म की यह कथा सबसे अधिक प्रचलित है। इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र हुए मरिचि और मरिचि के पुत्र हुए महर्षि कश्यप। इनका विवाह हुआ प्रजापति दक्ष की कन्या दीति-अदिति से हुआ। दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति देवमाता बनी। एक बार क्या हुआ कि दैत्य-दानवों ने देवताओं को भयंकर युद्ध में हरा दिया। देवताओं पर भारी संकट आन पड़ा। देवताओं की हार से देवमाता अदिति बहुत दुखी हुई। उन्होंने सूर्य देव की उपासना करने लगीं। उनकी तपस्या से सूर्यदेव प्रसन्न हुए और पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय पश्चात उन्हें गर्भधारण हुआ। गर्भ धारण करने के पश्चात भी अदिति कठोर उपवास रखती जिस कारण उनका स्वास्थ्य काफी दुर्बल रहने लगा। महर्षि कश्यप इससे बहुत चिंतित हुए और उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संतान के लिये उनका ऐसा करना ठीक नहीं है। लेकिन अदिति ने उन्हें समझाया कि हमारी संतान को कुछ नहीं होगा ये स्वयं सूर्य स्वरूप हैं। समय आने पर उनके गर्भ से तेजस्वी बालक ने जन्म लिया जो देवताओं के नायक बने व असुरों का संहार कर देवताओं की रक्षा की।अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें आदित्य कहा जाता है। वहीं कुछ कथाओं में यह भी आता है कि अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया जोकि तेज के कारण मार्तंड कहलाया। सूर्य देव की विस्तृत कथा भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में मिलती है। प्रात:काल सूर्योदय के समय सूर्यदेव की उपासना अवश्य करनी चाहिये। इससे सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं व जातक पर कृपा बनी रहती है।*
सूर्य देव के बारह नाम
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सूर्यपृथ्वी पर हर प्राणी की जीवनी शक्ति है। रविवार सूर्यदेवता का दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करने से प्रतिष्ठा और यश में वृद्धि होती है और शत्रु परास्त होते हैं। सूर्य की पूजा एवं वंदना नित्य कर्म में आती है। शास्त्रों में इसका बहुत महत्व बताया गया है। दूध देने वाली एक लाख गायों के दान का जो फल होता है, उससे भी बढ़कर फल एक दिन की सूर्य पूजा से होता है। प्रतिक्षण इस भूमंडल पर सूर्य ऊर्जा का स्राव होता रहता है। इस सृष्टि में जितने भी जीव हैं, सभी को सूर्य ऊर्जा मिलती है। अत: संपूर्ण प्रकृति भगवान सूर्य से इस प्रकार प्रार्थना करती है।
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।।
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचंडं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम्।
सूर्य पूजा की तरह सूर्य के नमस्कारों का भी महत्व है। सूर्य के बारह नामों द्वारा होने वाले बारह नमस्कारों की विधि यहां दी जा रही है। प्रणामों में साष्टांग प्रणाम का अधिक महत्व माना गया है। यह अधिक उपयोगी है। इससे शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। प्रणाम या नमस्कार करने की सही विधि यह है कि भगवान सूर्य के एक नाम का उच्चारण कर दंडवत करें। फिर उठकर दूसरे नाम का उच्चारण कर फिर दंडवत करें। इस तरह यह बारह नामों के लिए करें।
👇संकल्प मंत्र:👇
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ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य अहं श्री परमात्मप्रीत्यर्थमादिव्यस्य द्वादश नमस्काराख्यं कर्म
संकल्प के बाद अंजलि में या ताम्रपत्र में लाल चंदन, अक्षत व फूल डालकर हाथों को हृदय के पास लाकर निम्नलिखित मंत्रों से सूर्य को अर्घ्य दें-
एहि सूर्य सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्ध्यं दिवाकर।
इसके बाद सूर्यमंडल में स्थित भगवान नारायण का ध्यान करें।
ध्येय: सदा सवितृमंडलमध्यवर्त
नारायण: सरसिजासनसंनिविष्ट:।।
केयूरवान मकरकुंडलवान किरीटी
हारी हिरण्मयवपुर्धृतशंक चक्र:।।
फिर निम्नलिखित नाम मंत्रों से सूर्य को साष्टांग प्रणाम करें:👇
ॐ मित्राय नम:,
ॐ रवये नम:,
ॐ सूर्याय नम:,
ॐ भानवे नम:,
ॐ खगाय नम:,
ॐ पूष्णे नम:,
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:,
ॐ मरीचये नम:,
ॐ आदित्याय नम:,
ॐ सवित्रे नम:,
ॐ अर्काय नम:,
ॐ भास्कराय नम:
इसके बाद सूर्य के सारथि अरुण को अर्घ्य दें और निम्न मंत्र का पाठ करें।.₹👇
सप्ताश्व: सप्तरज्जुश्च अरुणो मे प्रसीद
ॐ कर्मसाक्षिणे अरुणाय नम:।।
आदित्यस्य नमस्कार ये कुर्वन्ति दिने-दिने।
जन्मांतर सहस्रेषु दरिद्र्यं नोपजायते।
अब सूर्य अर्घ्य का जल मस्तक पर लगाएं और चरणामृत पी लें। सूर्य देव को रोज जल चढ़ाना चाहिए पर रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में सूर्य की महादशा या सूर्य की अंतरदशा चल रही हो, उन्हें भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए।📚🖍🙏🙌
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