Monday, March 4, 2019

पार्वती का तप:-

पार्वती का तप:-
सप्तर्षि पार्वती के पास गए।भवानी जैसे तपस्या की मूर्ति बनी बैठी है।उठकर उन्हें प्रणाम किया।यह पूछने पर कि इतनी छोटी उम्र में किसकी आराधना कर रही हो, और क्या चाहती हो,तो उमा ने कहा-बाबा छोड़िए यह बात।यदि कहूँ कि मैं तप इसलिए कर रही हूँ तो आप मेरा मजाक उड़ाएंगे।साथ ही मेरे पिता का भी मजाक करेंगे और कहेंगे कि आखिर पहाड़ की बेटी जो ठहरी,उसमे बुद्धि ही कितनी?महाराज, अकल्पनीय और न सधने वाला कार्य मैं साधना चाहती हूँ।बहते पानी में दीवार खड़ी करना कठिन है,संभव ही नहीं है।बिना पंख उड़ना संभव नहीं है।मैं यही चाहती हूँ।मतलब यह कि निष्काम,निर्विकार,अमानी, निर्मोही,अनिकेत,अनीह भगवान चन्द्रशेखर को मैं पति के रूप में पाना चाहती हूँ।
यह सुनकर ऋषिगण हँसने लगे-तुमसे यह किसने कहा कि शिव के लिए इतना तप करो,क्योंकि यदि तुमने शिव को देखा होता तो ऐसा न करतीं।वह तो भिक्षा माँगकर पेट भरते हैं, श्मशान में रहते हैं, योगी हैं, उदासीन हैं, उनको स्त्री की क्या जरूरत?पहले शादी हुई थी।थोड़ी सी चूक हो गई तो बस त्याग दिया और वह दक्ष के यज्ञ में जल मरी।अब तो एकाकी भटक रहे हैं।उनके लिए नारी की क्या जरूरत?सचमुच तूने गलत स्थान पर हाथ डाला है।तुम्हारे लिए हमने बहुत सुंदर वर पसंद किया है।वैकुंठ का अधिपति और सर्वगुण सम्पन्न हैं।शादी ही करना चाहती हो तो हम तुम्हारी शादी विष्णु से करवा दें।शिवजी से शादी करके तुम क्या पाओगी?
पार्वती ने यह सुनकर बहुत सुंदर जबाब दिया-बाबा,ठीक है।ऐ तो आपके बिचार हैं कि महादेव अवगुणों के भवन हैं, विष्णु सकल गुणों की खान हैं-महादेव अवगुन भवन,विष्णु सकल गुन धाम।जेहि कर मन रम जाहि पर,तेहि तेही सन काम।।लेकिन यह तो आपकी बुद्धि का निर्णय है।पहले कम से कम मुझसे पूछ तो लेते कि मेरी रुचि और मेरा निर्णय क्या है?भले ही महादेव अवगुन भवन हों,लेकिन संसार मे जहाँ जिसका मन लग जाता है, वही उसको प्रिय है।महाराज, मेरी बुद्धि में अब इतनी शक्ति कहाँ है कि मैं गुण और दोष का बिचार करूँ?बुद्धि तो संपूर्ण रूप से खतम हो गयी।अबतो मैंने केवल एक ही फैसला कर लिया है कि मेरे चाहे एक नहीं करोड़ जनम क्यों न हों,मैं पति बनाऊंगी तो शिव को ही।जन्म कोटि लगि रगर हमारी।बरउ संभु न त रहउँ कुआरी।तजउँ न नारद कर उपदेसू।आपु कहहिं सत बार महेसू।।अपना फैसला सुना दिया।कितनी प्रबल श्रद्धा है?हिमांचल की बेटी है, कोई दक्ष की नहीं है।इनकी श्रद्धा में दृढ़ता है।सप्तऋषियों को यकीन हो गया कि उनकी श्रद्धा बड़ी बलवती है, उन्हें बहकाना और समझाना कठिन है।परीक्षा हो गयी।अंत मे सप्तर्षि उनसे कहते हैं कि-
तुझ माया भगवान सिव सकल जगत पितु मातु।
नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरसत गात।
💐🙏🙏💐
जय श्री राम
आप सभी को प्रणाम।

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