||काली-सहस्रनाम||
श्मशान-कालिका काली भद्रकाली कपालिनी ।
गुह्य-काली महाकाली कुरु-कुल्ला विरोधिनी ।।१।।
कालिका काल-रात्रिश्च महा-काल-नितम्बिनी ।
काल-भैरव-भार्या च कुल-वत्र्म-प्रकाशिनी ।।२।।
कामदा कामिनीया कन्या कमनीय-स्वरूपिणी ।
कस्तूरी-रस-लिप्ताङ्गी कुञ्जरेश्वर-गामिनी।।३।।
ककार-वर्ण-सर्वाङ्गी कामिनी काम-सुन्दरी ।
कामात्र्ता काम-रूपा च काम-धेनुु: कलावती ।।४।।
कान्ता काम-स्वरूपा च कामाख्या कुल-कामिनी ।
कुलीना कुल-वत्यम्बा दुर्गा दुर्गति-नाशिनी ।।५।।
कौमारी कुलजा कृष्णा कृष्ण-देहा कृशोदरी ।
कृशाङ्गी कुलाशाङ्गी च क्रीज्ररी कमला कला ।।६।।
करालास्य कराली च कुल-कांतापराजिता ।
उग्रा उग्र-प्रभा दीप्ता विप्र-चित्ता महा-बला ।।७।।
नीला घना मेघ-नाद्रा मात्रा मुद्रा मिताऽमिता ।
ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा भक्त-वत्सला ।।८।।
माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही नारसिंहिका ।
वङ्कांगी वङ्का-कंकाली नृ-मुण्ड-स्रग्विणी शिवा ।।९।।
मालिनी नर-मुण्डाली-गलद्रक्त-विभूषणा ।
रक्त-चन्दन-सिक्ताङ्गी सिंदूरारुण-मस्तका ।।१०।।
घोर-रूपा घोर-दंष्ट्रा घोरा घोर-तरा शुभा ।
महा-दंष्ट्रा महा-माया सुदन्ती युग-दन्तुरा ।।११।।
सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना ।
शारदेन्दु-प्रसन्नस्या स्पुâरत्-स्मेराम्बुजेक्षणा ।।१२।।
अट्टहासा प्रफुल्लास्या स्मेर-वक्त्रा सुभाषिणी ।
प्रफुल्ल-पद्म-वदना स्मितास्या प्रिय-भाषिणी ।।१३।।
कोटराक्षी कुल-श्रेष्ठा महती बहु-भाषिणी ।
सुमति: मतिश्चण्डा चण्ड-मुण्डाति-वेगिनी ।।१४।।
प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका चण्ड-वेगिनी ।
सुकेशी मुक्त-केशी च दीर्घ-केशी महा-कचा ।।१५।।
पे्रत-देही-कर्ण-पूरा प्रेत-पाणि-सुमेखला ।
प्रेतासना प्रिय-प्रेता प्रेत-भूमि-कृतालया ।।१६।।
श्मशान-वासिनी पुण्या पुण्यदा कुल-पण्डिता ।
पुण्यालया पुण्य-देहा पुण्य-श्लोका च पावनी ।।१७।।
पूता पवित्रा परमा परा पुण्य-विभूषणा ।
पुण्य-नाम्नी भीति-हरा वरदा खङ्ग-पाशिनी ।।१८।।
नृ-मुण्ड-हस्ता शस्त्रा च छिन्नमस्ता सुनासिका ।
दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नत-स्तनी ।।१९।।
दिगम्बरा घोर-रावा सृक्कान्ता-रक्त-वाहिनी ।
महा-रावा शिवा संज्ञा नि:संगा मदनातुरा ।।२०।।
मत्ता प्रमत्ता मदना सुधा-सिन्धु-निवासिनी ।
अति-मत्ता महा-मत्ता सर्वाकर्षण-कारिणी ।।२१।।
गीत-प्रिया वाद्य-रता प्रेत-नृत्य-परायणा ।
चतुर्भुजा दश-भुजा अष्टादश-भुजा तथा ।।२२।।
कात्यायनी जगन्माता जगती-परमेश्वरी ।
जगद्-बन्धुर्जगद्धात्री जगदानन्द-कारिणी ।।२३।।
जगज्जीव-मयी हेम-वती महामाया महा-लया ।
नाग-यज्ञोपवीताङ्गी नागिनी नाग-शायनी ।।२४।।
नाग-कन्या देव-कन्या गान्धारी किन्नरेश्वरी ।
मोह-रात्री महा-रात्री दरुणाभा सुरासुरी ।।२५।।
विद्या-धरी वसु-मती यक्षिणी योगिनी जरा ।
राक्षसी डाकिनी वेद-मयी वेद-विभूषणा ।।२६।।
श्रुति-स्मृतिर्महा-विद्या गुह्य-विद्या पुरातनी ।
चिंताऽचिंता स्वधा स्वाहा निद्रा तन्द्रा च पार्वती ।।२७।।
अर्पणा निश्चला लीला सर्व-विद्या-तपस्विनी ।
गङ्गा काशी शची सीता सती सत्य-परायणा ।।२८।।
नीति: सुनीति: सुरुचिस्तुष्टि: पुष्टिर्धृति: क्षमा ।
वाणी बुद्धिर्महा-लक्ष्मी लक्ष्मीर्नील-सरस्वती ।।२९।।
स्रोतस्वती स्रोत-वती मातङ्गी विजया जया ।
नदी सिन्धु: सर्व-मयी तारा शून्य निवासिनी ।।३०।।
शुद्धा तरंगिणी मेधा शाकिनी बहु-रूपिणी ।
सदानन्द-मयी सत्या सर्वानन्द-स्वरूपणि ।।३१।।
स्थूला सूक्ष्मा सूक्ष्म-तरा भगवत्यनुरूपिणी ।
परमार्थ-स्वरूपा च चिदानन्द-स्वरूपिणी ।।३२।।
सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या स्तवनीया स्वभाविनी ।
रंकिणी टंकिणी चित्रा विचित्रा चित्र-रूपिणी ।।३३।।
पद्मा पद्मालया पद्म-मुखी पद्म-विभूषणा ।
शाकिनी हाकिनी क्षान्ता राकिणी रुधिर-प्रिया ।।३४।।
भ्रान्तिर्भवानी रुद्राणी मृडानी शत्रु-मर्दिनी ।
उपेन्द्राणी महेशानी ज्योत्स्ना चन्द्र-स्वरूपिणी ।।३५।।
सूय्र्यात्मिका रुद्र-पत्नी रौद्री स्त्री प्रकृति: पुमान् ।
शक्ति: सूक्तिर्मति-मती भक्तिर्मुक्ति: पति-व्रता ।।३६।।
सर्वेश्वरी सर्व-माता सर्वाणी हर-वल्लभा ।
सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भाव्या भव्या भयापहा ।।३७।।
कर्त्री हर्त्री पालयित्री शर्वरी तामसी दया ।
तमिस्रा यामिनीस्था न स्थिरा धीरा तपस्विनी ।।३८।।
चार्वङ्गी चंचला लोल-जिह्वा चारु-चरित्रिणी ।
त्रपा त्रपा-वती लज्जा निर्लज्जा ह्नीं रजोवती ।।३९।।
सत्व-वती धर्म-निष्ठा श्रेष्ठा निष्ठुर-वादिनी ।
गरिष्ठा दुष्ट-संहत्री विशिष्टा श्रेयसी घृणा ।।४०।।
भीमा भयानका भीमा-नादिनी भी: प्रभावती ।
वागीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञ-कत्र्री यजु:-प्रिया ।।४१।।
ऋक्-सामाथर्व-निलया रागिणी शोभन-स्वरा ।
कल-कण्ठी कम्बु-कण्ठी वेणु-वीणा-परायणा ।।४२।।
वशिनी वैष्णवी स्वच्छा धात्री त्रि-जगदीश्वरी ।
मधुमती कुण्डलिनी शक्ति: ऋद्धि: सिद्धि: शुचि-स्मिता ।।४३।।
रम्भोवैशी रती रामा रोहिणी रेवती मघा ।
शङ्खिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी पद्मनी तथा ।।४४।।
शूलिनी परिघास्त्रा च पाशिनी शाङ्र्ग-पाणिनी ।
पिनाक-धारिणी धूम्रा सुरभि वन-मालिनी ।।४५।।
रथिनी समर-प्रीता च वेगिनी रण-पण्डिता ।
जटिनी वङ्किाणी नीला लावण्याम्बुधि-चन्द्रिका ।।४६।।
बलि-प्रिया महा-पूज्या पूर्णा दैत्येन्द्र-मन्थिनी ।
महिषासुर-संहन्त्री वासिनी रक्त-दन्तिका ।।४७।।
रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी रक्त-खर्पर-हस्तिनी ।
रक्त-प्रिया माँस - रुधिरासवासक्त-मानसा ।।४८।।
गलच्छोेणित-मुण्डालि-कण्ठ-माला-विभूषणा ।
शवासना चितान्त:स्था माहेशी वृष-वाहिनी ।।४९।।
व्याघ्र-त्वगम्बरा चीर-चेलिनी सिंह-वाहिनी ।
वाम-देवी महा-देवी गौरी सर्वज्ञ-भाविनी ।।५०।।
बालिका तरुणी वृद्धा वृद्ध-माता जरातुरा ।
सुभ्रुर्विलासिनी ब्रह्म-वादिनि ब्रह्माणी मही ।।५१।।
स्वप्नावती चित्र-लेखा लोपा-मुद्रा सुरेश्वरी ।
अमोघाऽरुन्धती तीक्ष्णा भोगवत्यनुवादिनी ।।५२।।
मन्दाकिनी मन्द-हासा ज्वालामुख्यसुरान्तका ।
मानदा मानिनी मान्या माननीया मदोद्धता ।।५३।।
मदिरा मदिरोन्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी ।
सुमध्यानन्त-गुणिनी सर्व-लोकोत्तमोत्तमा ।।५४।।
जयदा जित्वरा जेत्री जयश्रीर्जय-शालिनी ।
सुखदा शुभदा सत्या सभा-संक्षोभ-कारिणी ।।५५।।
शिव-दूती भूति-मती विभूतिर्भीषणानना ।
कौमारी कुलजा कुन्ती कुल-स्त्री कुल-पालिका ।।५६।।
कीर्तिर्यशस्विनी भूषां भूष्या भूत-पति-प्रिया ।
सगुणा-निर्गुणा धृष्ठा कला-काष्ठा प्रतिष्ठिता ।।५७।।
धनिष्ठा धनदा धन्या वसुधा स्व-प्रकाशिनी ।
उर्वी गुर्वी गुरु-श्रेष्ठा सगुणा त्रिगुणात्मिका ।।५८।।
महा-कुलीना निष्कामा सकामा काम-जीवना ।
काम-देव-कला रामाभिरामा शिव-नर्तकी ।।५९।।
चिन्तामणि: कल्पलता जाग्रती दीन-वत्सला ।
कार्तिकी कृत्तिका कृत्या अयोेध्या विषमा समा ।।६०।।
सुमंत्रा मंत्रिणी घूर्णा ह्लादिनी क्लेश-नाशिनी ।
त्रैलोक्य-जननी हृष्टा निर्मांसा मनोरूपिणी ।।६१।।
तडाग-निम्न-जठरा शुष्क-मांसास्थि-मालिनी ।
अवन्ती मथुरा माया त्रैलोक्य-पावनीश्वरी ।।६२।।
व्यक्ताव्यक्तानेक-मूर्ति: शर्वरी भीम-नादिनी ।
क्षेमज्र्री शंकरी च सर्व- सम्मोह-कारिणी ।।६३।।
ऊध्र्व-तेजस्विनी क्लिन्न महा-तेजस्विनी तथा ।
अद्वैत भोगिनी पूज्या युवती सर्व-मङ्गला ।।६४।।
सर्व-प्रियंकरी भोग्या धरणी पिशिताशना ।
भयंकरी पाप-हरा निष्कलंका वशंकरी ।।६५।।
आशा तृष्णा चन्द्र-कला निद्रिका वायु-वेगिनी ।
सहस्र-सूर्य संकाशा चन्द्र-कोटि-सम-प्रभा ।।६६।।
वह्नि-मण्डल-मध्यस्था सर्व-तत्त्व-प्रतिष्ठिता ।
सर्वाचार-वती सर्व-देव - कन्याधिदेवता ।।६७।।
दक्ष-कन्या दक्ष-यज्ञ नाशिनी दुर्ग तारिणी ।
इज्या पूज्या विभीर्भूति: सत्कीर्तिब्र्रह्म-रूपिणी ।।६८।।
रम्भीश्चतुरा राका जयन्ती करुणा कुहु: ।
मनस्विनी देव-माता यशस्या ब्रह्म-चारिणी ।।६९।।
ऋद्धिदा वृद्धिदा वृद्धि: सर्वाद्या सर्व-दायिनी ।
आधार-रूपिणी ध्येया मूलाधार-निवासिनी ।।७०।।
आज्ञा प्रज्ञा-पूर्ण-मनाश्चन्द्र-मुख्यानुवूâलिनी ।
वावदूका निम्न-नाभि: सत्या सन्ध्या दृढ़-व्रता ।।७१।।
आन्वीक्षिकी दंड-नीतिस्त्रयी त्रि-दिव-सुन्दरी ।
ज्वलिनी ज्वालिनी शैल-तनया विन्ध्य-वासिनी ।।७२।।
अमेया खेचरी धैर्या तुरीया विमलातुरा ।
प्रगल्भा वारुणीच्छाया शशिनी विस्पुâलिङ्गिनी ।।७३।।
भुक्ति सिद्धि सदा प्राप्ति: प्राकम्या महिमाणिमा ।
इच्छा-सिद्धिर्विसिद्धा च वशित्वीध्र्व-निवासिनी ।।७४।।
लघिमा चैव गायित्री सावित्री भुवनेश्वरी ।
मनोहरा चिता दिव्या देव्युदारा मनोरमा ।।७५।।
पिंगला कपिला जिह्वा-रसज्ञा रसिका रसा ।
सुषुम्नेडा भोगवती गान्धारी नरकान्तका ।।७६।।
पाञ्चाली रुक्मिणी राधाराध्या भीमाधिराधिका ।
अमृता तुलसी वृन्दा वैâटभी कपटेश्वरी ।।७७।।
उग्र-चण्डेश्वरी वीर-जननी वीर-सुन्दरी ।
उग्र-तारा यशोदाख्या देवकी देव-मानिता ।।७८।।
निरन्जना चित्र-देवी क्रोधिनी कुल-दीपिका ।
कुल-वागीश्वरी वाणी मातृका द्राविणी द्रवा ।।७९।।
योगेश्वरी-महा-मारी भ्रामरी विन्दु-रूपिणी ।
दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला चामरी-प्रभा ।।८०।।
कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा भुशुंडी प्रकटा तिथि: ।
द्रविणी गोपिनी माया काम-बीजेश्वरी क्रिया ।।८१।।
शांभवी केकरा मेना मूषलास्त्रा तिलोत्तमा ।
अमेय-विक्रमा व्रूâरा सम्पत्-शाला त्रिलोचना ।।८२।।
सुस्थी हव्य-वहा प्रीतिरुष्मा धूम्रार्चिरङ्गदा ।
तपिनी तापिनी विश्वा भोगदा धारिणी धरा ।।८३।।
त्रिखंडा बोधिनी वश्या सकला शब्द-रूपिणी ।
बीज-रूपा महा-मुद्रा योगिनी योनि-रूपिणी ।।८४।।
अनङ्ग - मदनानङ्ग - लेखनङ्ग - कुशेश्वरी ।
अनङ्ग-मालिनि-कामेशी देवि सर्वार्थ-साधिका ।।८५।।
सर्व-मन्त्र-मयी मोहिन्यरुणानङ्ग-मोहिनी ।
अनङ्ग-कुसुमानङ्ग-मेखलानङ्ग - रूपिणी ।।८६।।
वङ्कोश्वरी च जयिनी सर्व-द्वन्द्व-क्षयज्र्री ।
षडङ्ग-युवती योग-युक्ता ज्वालांशु-मालिनी ।।८७।।
दुराशया दुराधारा दुर्जया दुर्ग-रूपिणी ।
दुरन्ता दुष्कृति-हरा दुध्र्येया दुरतिक्रमा ।।८८।।
हंसेश्वरी त्रिकोणस्था शाकम्भर्यनुकम्पिनी ।
त्रिकोण-निलया नित्या परमामृत-रञ्जिता ।।८९।।
महा-विद्येश्वरी श्वेता भेरुण्डा कुल-सुन्दरी ।
त्वरिता भक्त-संसक्ता भक्ति-वश्या सनातनी ।।९०।।
भक्तानन्द-मयी भक्ति-भाविका भक्ति-शज्र्री ।
सर्व-सौन्दर्य-निलया सर्व-सौभाग्य-शालिनी ।।९१।।
सर्व-सौभाग्य-भवना सर्व सौख्य-निरूपिणी ।
कुमारी-पूजन-रता कुमारी-व्रत-चारिणी ।।९२।।
कुमारी-भक्ति-सुखिनी कुमारी-रूप-धारिणी ।
कुमारी-पूजक-प्रीता कुमारी प्रीतिदा प्रिया ।।९३।।
कुमारी-सेवकासंगा कुमारी-सेवकालया ।
आनन्द-भैरवी बाला भैरवी वटुक-भैरवी ।।९४।।
श्मशान-भैरवी काल-भैरवी पुर-भैरवी ।
महा-भैरव-पत्नी च परमानन्द-भैरवी ।।९५।।
सुधानन्द-भैरवी च उन्मादानन्द-भैरवी ।
मुक्तानन्द-भैरवी च तथा तरुण-भैरवी ।।९६।।
ज्ञानानन्द-भैरवी च अमृतानन्द-भैरवी ।
महा-भयज्र्री तीव्रा तीव्र-वेगा तपस्विनी ।।९७।।
त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी पुर-सुन्दरी ।
त्रिपुरेशी पञ्च-दशी पञ्चमी पुर-वासिनी ।।९८।।
महा-सप्त-दशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी ।
महांकुश-स्वरूपा च महा-चव्रेâश्वरी तथा ।।९९।।
नव-चव्रेâश्वरी चक्र-ईश्वरी त्रिपुर-मालिनी ।
राज-राजेश्वरी धीरा महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।१००।।
सिन्दूर-पूर-रुचिरा श्रीमत्त्रिपुर-सुन्दरी ।
सर्वांग-सुन्दरी रक्ता रक्त-वस्त्रोत्तरीयिणी ।।१०१।।
जवा-यावक-सिन्दूर -रक्त-चन्दन-धारिणी ।
त्रिकूटस्था पञ्च-कूटा सर्व-वूâट-शरीरिणी ।।१०२।।
चामरी बाल-कुटिल-निर्मल-श्याम-केशिनी ।
वङ्का-मौक्तिक-रत्नाढ्या-किरीट-मुकुटोज्ज्वला ।।१०३।।
रत्न-कुण्डल-संसक्त-स्फुरद्-गण्ड-मनोरमा ।
कुञ्जरेश्वर-कुम्भोत्थ-मुक्ता-रञ्जित-नासिका ।।१०४।।
मुक्ता-विद्रुम-माणिक्य-हाराढ्य-स्तन-मण्डला ।
सूर्य-कान्तेन्दु-कान्ताढ्य-कान्ता-कण्ठ-भूषणा ।।१०५।।
वीजपूर-स्फुरद्-वीज -दन्त - पंक्तिरनुत्तमा ।
काम-कोदण्डकाभुग्न-भ्रू-कटाक्ष-प्रवर्षिणी ।।१०६।।
मातंग-कुम्भ-वक्षोजा लसत्कोक-नदेक्षणा ।
मनोज्ञ-शुष्कुली-कर्णा हंसी-गति-विडम्बिनी ।।१०७।।
पद्म-रागांगदा-ज्योतिर्दोश्चतुष्क-प्रकाशिनी ।
नाना-मणि-परिस्फूर्जच्दृद्ध-कांचन-वंâकणा ।।१०८।।
नागेन्द्र-दन्त-निर्माण-वलयांचित-पाणिनी ।
अंगुरीयक-चित्रांगी विचित्र-क्षुद्र-घण्टिका ।।१०९।।
पट्टाम्बर-परीधाना कल-मञ्जीर-शिंजिनी ।
कर्पूरागरु-कस्तूरी-कुंकुम-द्रव-लेपिता ।।११०।।
विचित्र-रत्न-पृथिवी-कल्प-शाखि-तल-स्थिता ।
रत्न-द्वीप-स्पुâरद्-रक्त-सिंहासन-विलासिनी ।।१११।।
षट्-चक्र-भेदन-करी परमानन्द-रूपिणी ।
सहस्र-दल - पद्यान्तश्चन्द्र - मण्डल-वर्तिनी ।।११२।।
ब्रह्म-रूप-शिव-क्रोड-नाना-सुख-विलासिनी ।
हर-विष्णु-विरंचीन्द्र-ग्रह - नायक-सेविता ।।११३।।
शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव शिव-वादिनी ।
मातंगिनी श्रीमती च तथैवानन्द-मेखला ।।११४।।
डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता ।
माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी शिव-रूपिणी ।।११५।।
अलम्बुषा वेग-वती क्रोध-रूपा सु-मेखला ।
गान्धारी हस्ति-जिह्वा च इडा चैव शुभज्र्री ।।११६।।
पिंगला ब्रह्म-सूत्री च सुषुम्णा चैव गन्धिनी ।
आत्म-योनिब्र्रह्म-योनिर्जगद-योनिरयोनिजा ।।११७।।
भग-रूपा भग-स्थात्री भगनी भग-रूपिणी ।
भगात्मिका भगाधार-रूपिणी भग-मालिनी ।।११८।।
लिंगाख्या चैव लिंगेशी त्रिपुरा-भैरवी तथा ।
लिंग-गीति: सुगीतिश्च लिंगस्था लिंग-रूप-धृव्â ।।११९।।
लिंग-माना लिंग-भवा लिंग-लिंगा च पार्वती ।
भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा ।।१२०।।
गृध्र-रूपा शिवा-रूपा चक्रिणी चक्र-रूप-धृव्â ।
लिंगाभिधायिनी लिंग-प्रिया लिंग-निवासिनी ।।१२१।।
लिंगस्था लिंगनी लिंग-रूपिणी लिंग-सुन्दरी ।
लिंग-गीतिमहा-प्रीता भग-गीतिर्महा-सुखा ।।१२२।।
लिंग-नाम-सदानंदा भग-नाम सदा-रति: ।
लिंग-माला-वंâठ-भूषा भग-माला-विभूषणा ।।१२३।।
भग-लिंगामृत-प्रीता भग-लिंगामृतात्मिका ।
भग-लिंगार्चन-प्रीता भग-लिंग-स्वरूपिणी ।।१२४।।
भग-लिंग-स्वरूपा च भग-लिंग-सुखावहा ।
स्वयम्भू-कुसुम-प्रीता स्वयम्भू-कुसुमार्चिता ।।१२५।।
स्वयम्भू-पुष्प-प्राणा स्वयम्भू-कुसुमोत्थिता ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्नाता स्वयम्भू-पुष्प-तर्पिता ।।१२६।।
स्वयम्भू-पुष्प-घटिता स्वयम्भू-पुष्प-धारिणी ।
स्वयम्भू-पुष्प-तिलका स्वयम्भू-पुष्प-चर्चिता ।।१२७।।
स्वयम्भू-पुष्प-निरता स्वयम्भू-कुसुम-ग्रहा ।
स्वयम्भू-पुष्प-यज्ञांगा स्वयम्भूकुसुमात्मिका ।।१२८।।
स्वयम्भू-पुष्प-निचिता स्वयम्भू-कुसुम-प्रिया ।
स्वयम्भू-कुसुमादान-लालसोन्मत्त - मानसा ।।१२९।।
स्वयम्भू-कुसुमानन्द-लहरी-स्निग्ध देहिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमाधारा स्वयम्भू-वुुâसुमा-कला ।।१३०।।
स्वयम्भू-पुष्प-निलया स्वयम्भू-पुष्प-वासिनी ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्निग्धा स्वयम्भू-कुसुमात्मिका ।।१३१।।
स्वयम्भू-पुष्प-कारिणी स्वयम्भू-पुष्प-पाणिका ।
स्वयम्भू-कुसुम-ध्याना स्वयम्भू-कुसुम-प्रभा ।।१३२।।
स्वयम्भू-कुसुम-ज्ञाना स्वयम्भू-पुष्प-भोगिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमोल्लास स्वयम्भू-पुष्प-वर्षिणी ।।१३३।।
स्वयम्भू-कुसुमोत्साहा स्वयम्भू-पुष्प-रूपिणी ।
स्वयम्भू-कुसुमोन्मादा स्वयम्भू पुष्प-सुन्दरी ।।१३४।।
स्वयम्भू-कुसुमाराध्या स्वयम्भू-कुसुमोद्भवा ।
स्वयम्भू-कुसुम-व्यग्रा स्वयम्भू-पुष्प-पूर्णिता ।।१३५।।
स्वयम्भू-पूजक-प्रज्ञा स्वयम्भू-होतृ-मातृका ।
स्वयम्भू-दातृ-रक्षित्री स्वयम्भू-रक्त-तारिका ।।१३६।।
स्वयम्भू-पूजक-ग्रस्ता स्वयम्भू-पूजक-प्रिया ।
स्वयम्भू-वन्दकाधारा स्वयम्भू-निन्दकान्तका ।।१३७।।
स्वयम्भू-प्रद-सर्वस्वा स्वयम्भू-प्रद-पुत्रिणी ।
स्वम्भू-प्रद-सस्मेरा स्वयम्भू-प्रद-शरीरिणी ।।१३८।।
सर्व-कालोद्भव-प्रीता सर्व-कालोद्भवात्मिका ।
सर्व-कालोद्भवोद्भावा सर्व-कालोद्भवोद्भवा ।।१३९।।
कुण्ड-पुष्प-सदा-प्रीतिर्गोल-पुष्प-सदा-रति: ।
कुण्ड-गोलोद्भव-प्राणा कुण्ड-गोलोद्भवात्मिका ।।१४०।।
स्वयम्भुवा शिवा धात्री पावनी लोक-पावनी ।
कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा शुक्र-सुन्दरी ।।१४१।।
अश्विनी कृत्तिका पुष्या तैजस्का चन्द्र-मण्डला ।
सूक्ष्माऽसूक्ष्मा वलाका च वरदा भय-नाशिनी ।।१४२।।
वरदाऽभयदा चैव मुक्ति-बन्ध-विनाशिनी ।
कामुका कामदा कान्ता कामाख्या कुल-सुन्दरी ।।१४३।।
दुःखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ-प्रकाशिनी ।
दुष्टादुष्ट-मतिश्चैव सर्व-कार्य-विनाशिनी ।।१४४।।
शुक्राधारा शुक्र-रूपा-शुक्र-सिन्धु-निवासिनी ।
शुक्रालया शुक्र-भोग्या शुक्र-पूजा-सदा-रति:।।१४५।।
शुक्र-पूज्या-शुक्र-होम-सन्तुष्टा शुक्र-वत्सला ।
शुक्र-मूत्र्ति: शुक्र-देहा शुक्र-पूजक-पुत्रिणी ।।१४६।।
शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र-संस्पृहा शुक्र-सुन्दरी ।
शुक्र-स्नाता शुक्र-करी शुक्र-सेव्याति-शुक्रिणी ।।१४७।।
महा-शुक्रा शुक्र-भवा शुक्र-वृष्टि-विधायिनी ।
शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्र-वन्दक-वन्दिता ।।१४८।।
शुक्रानन्द-करी शुक्र-सदानन्दाभिधायिका ।
शुक्रोत्सवा सदा-शुक्र-पूर्णा शुक्र-मनोरमा ।।१४९।।
शुक्र-पूजक-सर्वस्वा शुक्र-निन्दक-नाशिनी ।
शुक्रात्मिका शुक्र-सम्पत् शुक्राकर्षण-कारिणी ।।१५०।।
शारदा साधक-प्राणा साधकासक्त-रक्तपा ।
साधकानन्द-सन्तोषा साधकानन्द-कारिणी ।।१५१।।
आत्म-विद्या ब्रह्म-विद्या पर ब्रह्म स्वरूपिणी ।
सर्व-वर्ण-मयी देवी जप-माला-विधायिनी ।।
'ब्रह्मवैवर्त पुराण' (गणपति खण्ड) में परशुरामजी द्वारा शिवजी की आज्ञा से कालिका देवी को प्रसन्न करने हेतु बार-बार स्तुति करने का वर्णन मिलता है । शिवजी द्वारा प्रदत्त'कालिका सहस्रनाम' पूर्णत: सिद्ध है । इसका पाठ करने के लिए पूजन, हवन, न्यास, प्राणायाम,ध्यान, भूत-शुद्धि, जप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान सदाशिव ने परशुरामजी से इस पाठ के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पाठ को करने से साधक में प्रबल आकर्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसके कार्य स्वत: सिद्ध होते जाते हैं, उसके शत्रुगण हतबुद्धि हो जाते हैं तथा उसके सौभाग्य का उदय होता है ।
'कालिका-सहस्रनाम' का पाठ करने की अनेक गुप्त विधियाँ हैं, जो विभिन्न कामनाओं के अनुसार पृथव्â-पृथव्â हैं और गुरु-परम्परा प्राप्त हैं । इस चमत्कारी एवं स्वयंसिद्ध 'काली-पाठ'को रात्रि में दस से दो बजे के मध्य नग्न अवस्था में, बालों को बिखराकर
तथा कम्बल पर बैठकर करने का विधान है ।
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