शाबर मंत्र क्यों बहुत जल्दी फल देते हैं।
शाबर मंत्र की उत्पत्ति गरीब तथा निचले स्तर के लोगों लिए की गई थी। जिन्हे वैष्णव मंत्र के बारे में ज्ञान नहीं था।
ये वों गरीब लोग थे अनपढ़ ,गंवार , जिनके पास शिक्षा नहीं थी , जो दीन भर खेतों में काम करते या मजदूरी करते। ये गरीब कहां से इतना पैसा लातें की वों कई दिन चलने वाली बड़ा यज्ञं तथा हवन सामग्री से हवन करें।
इस लिए शाबर मन्त्रों की उत्पत्ति हुई। जहां सिर्फ एक दिन की तपस्या में इन्हें लाभ हों। जहां एक दिन की जांप और सिर्फ लकड़ी और तेल से ही हवन करने से इच्छित फल प्राप्त हो।
शाबर मंत्र में भी वैष्णव मंत्र की तरह 7 कर्म हैं।
परंतु यहां अन्तःकर्ण की पुकार है, जीद्द हैं, कसम हैं, दुहाई हैं।
शाबर मंत्र को जाग्रीत तथा अग्णेय करतीं हैं यह शब्द।
1) दुहाई।
2) आन।
3) छाती पर पग धरें।
4) तुझे माता का दूध पिया हराम।
5) शव पे लाथ धरें।
6) मुख पर लात मारें।
7) जटा टूट के धरती पर गिरे।
8) छूं वाचांपुरी।
शाबर मंत्र का समापं शब्द ।
शब्द सांचा, पिंड कांचा,
फुरों मंत्र , इश्वरों वांचा।
1) शब्द सांचा - शब्द सच होते हैं। अमर रहते हैं।
2) पिंड कांचा - शरीर नाशवर है।
3) फुरौ मंत्र - जागों मंत्र। यहां आंज्ञा हैं।
4) इश्वरो वाचां - ये मेरें नहीं इश्वर के वचन हैं।
ये शब्द मंत्र को इतना प्रज्वालीत करतीं हैं, की देवी देवता विवश हो जाते हैं इच्छित फल देने के लिए।
इसलिए कहा गया है की शाबर मंत्र स्वयं सिद्ध मंत्र होतें हैं। क्यों की यहां वैष्णव मंत्र की तरह निवेदन नहीं है। अत्पितु आज्ञा है,
देवीता बाध्य हो जाते हैं इच्छित फल देने के लिए।
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