।#गायत्रीसाधना_और_सिद्धि।
।। ३।।
मां गायत्री के जप के बिना द्विज को अन्य मंत्रों की सिद्धि नहीं हो सकती । अतः यदि किसी भी देवता की उपासना में सफलता चाहते हैं तो वे नित्य गायत्रीजप संध्या अवश्य करें----
#गायत्रीं_य: परित्यज्य
चान्यमंत्रमुपासते
न साफल्यमवाप्नोति
कल्पकोटिशतैरपि।
गायत्री उपासना से ही वैदिक महावाक्यों का अर्थज्ञान एवं परम तत्व का साक्षात्कार हो पाता है। गायत्री की समर्थ उपासना से ही आत्म शक्ति प्राप्त होती है--
#गायत्र्युपासनाकरणादात्मशक्तिस्तु_लभ्यते
जो गायत्री मंत्र का 12 लाख जप कर लेता है वहीं पूर्ण ब्राह्मण कहलाने योग्य है। अतः ब्राह्मणों को तो गायत्री की उपासना विशेष रूप से करनी चाहिए---
#लक्षद्वादशयुक्तस्तु_पूर्णब्राह्मण_इंङ्गितः।
तीन व्याहृतियों से युक्त गायत्री मंत्र अपने आप में परिपूर्ण है। गायत्री मंत्र में #सातव्याहृतियां #प्रणव आदि विनियोग और अन्य मंत्रों के संयोग से विविध शस्त्रास्त्र मंत्रों का निर्माण होता है। लेकिन उनका प्रयोग सर्वसाधारण के लिए उपयुक्त नहीं है।
क्योंकि मंत्र व्यक्तिगत आध्यात्मिक स्तर के अनुसार ही गुरु मुख से प्राप्त करके जप करना प्रशस्त माना गया है।
#देवीभागवत के अनुसार विभिन्न रोगों को दूर करने के लिए और विविध कामनाओं के लिए अलग-अलग सामग्री से हवन करके गायत्री मां की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष के नीचे बाएं हाथ से पीपल का स्पर्श करते हुए गायत्री का निष्ठा पूर्वक जप करता हुआ व्यक्ति समस्त भौतिक रोग और अभिचार जनित रोग से मुक्त हो जाता है---
#जपेदश्वत्थालभ्य
मंदवारे शतं द्विज:।
भूतरोगाभिचारेभ्यो
मुच्यते महतां भयात्।
गायत्री आदि समस्त मंत्रों के ऋषि देवता और छंद का ध्यान/स्मरण रखना चाहिए अन्यथा पाप लगता है--
#अविदित्वा ऋषिं छंदो
दैवतं योगमेव च।
योऽध्यापयेज्जपेद्वापि
पापीयाञ्जायते तु स:।
#परम_रहस्य---
गायत्री मंत्र के 24 वर्णों में 24 देवता, 24 ऋषि ,24 छंद ,24 शक्तियां ,24 वर्ण,और 24 तत्व माने गए हैं अतः इनका ज्ञान गुरुमुख और सद्ग्रंथों से प्राप्त करें।
जप के पूर्व की 24 मुद्राएं और जप के बाद की आठ मुद्राएं देवी को प्रसन्नता देने वाली कहीं गई हैं। मुद्राओं के ज्ञान के बिना भी जप निष्फल माना गया है।
#एता_मुद्रा: न जानाति
गायत्री निष्फला भवेत्।
अतः विशेष फल चाहिए तो इन तत्वों का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करें।
गायत्री के 24 वर्ण के द्वारा शरीर का न्यास संपन्न करके ही जप में सफलता का आधान करें।
क्योंकि न्यास के बिना भी आधा फल राक्षस ग्रहण कर लेते हैं--
#न्यासहीनं तु यत्कर्म
अर्धं गृह्णन्ति राक्षसा:।
( क्रमश:)
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