भगवान कृष्ण के ऊखल बंधन कथा,,,,
कार्तिक मास और शुभ दीपावली का दिन है। माँ यशोदा सुबह सोकर उठी है। और मन में विचार करती है की अपने हाथो से माखन(दधि-मंथन) निकालू। क्योकि घर में इतने सेवक और सेविकाएं है की माँ को काम नही करने देते थे।
माँ माखन निकल रही है और मन, करम, वचन तीनो से परमात्मा को याद कर रही है। जब कोई भगवान को मन, करम और वचन से याद करते है तो परमात्मा सोते नहीं है जाग जाते है।
"एकदा गृहदासीषु यशोदा नंदगेहिनी .
कर्मान्तरनियुक्तासु निर्ममंथ स्वयं दधि ..
थोड़ा ध्यान से- अगर हम मन से भगवान को याद करते है तो करम और वचन से और कहीं होते है। यदि करम प्रभु के लिए हो रहा है तो मन और वाणी ओर कहीं होते है। और यदि वाणी से भगवान को याद कर रहे होते है तो मन और करम किसी दूसरे काम में लगा होता है। यदि तीनो से भगवान को याद करो तो वो जाग जाते है।
बालकृष्ण भी सोये हुए है। माँ का मन भगवान में है। कर्म भी कृष्ण के लिए हो रहा है और वाणी भी उसी के गुण गए रही है। तो बालकृष्ण जाग गए है। पलंग से उतर कर माँ के पास गए और बोले की भूख लगी है। माँ दूध पिलाने लगी। लेकिन रसोईघर में दूध उबाल खा कर नीचे गिर रहा था। माँ के सोचा की मेरे लाला की आयु कम ना हो जाये। क्योंकि ऐसी मान्यता है अगर घर में गोदी का बालक हो और गाय का दूध अग्नि में जले तो बच्चे की आयु काम होती है।
माँ ने कृष्ण को गोदी से उतारा और दूध के पात्र को उतरने के लिए गई। उधर दूध उफन रहा था यहाँ पूत उफनने लगा।
भगवान बोले- माँ को पूत से ज्यादा दूध प्यारो है। मोको छोड़ के चली गई। भगवान मन में बोले की मुझे लीला में क्रोध है। अगर सच में क्रोध आये तो ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाये। चलो ब्रह्माण्ड नही तो इस भांड को ही नष्ट कर दूँ।
भगवान ने पत्थर उठा कर माखन की मटकी पर दे मारा और मटकी फोड़ दी। जब माँ ने आकर देखा की लाला ने मटकी फोड़ दी है पहले तो हंसने लगी। लेकिन फिर सोचा की लाला ज्यादा बिगड़ गयो है इसे मारूंगी। भगवान आज डंडी लेके भगवान को मारने के लिए दौड़ी। आज कृष्ण आगे-आगे भाग रहे है और माँ पीछे पीछे दौड़ लगा रही है।
बड़े बड़े योगी योग में बैठकर जिन्हे पकड़ नही पाते । आज माँ उसे पकड़ने के लिए दौड़ी है। ब्रजरानी यशोदा कहती है लाला आज में तोकू सीधो कर दूंगी। लाला बोले की मैया पहले पकड़ तो ले। क्योकि मोटी तगड़ी यशोदा है और हलके फुल्के कान्हा है।
सब गोपियाँ आ गई और बोली अरी यशोदा आज सुबह से लाला के पीछे दौड़ कैसे लगा रही है। मैया बोली की आज लाला ने घर में माखन की मटकी फोड़ दी है।
गोपियाँ कहती है ये कौनसा नया काम किया है? हमारे घर में तो रोज ही फोड़ कर आवे है।
जब हमारे घर में फोड़ के आवे है तब तुम कुछ नही कहती आज तुम्हारे घर में फोड़ दी तो तुम मारने चली हो।
यशोदा कहती है गोपियों तुमने ही मेरे लाला की आदत खराब कर रखी है। आज मैं लाला को सीधा कर दूंगी।
भगवान दूर खड़े मुस्करा रहे है। भगवान के परम मित्र मनसुखा आ गए। माँ कहती है मनसुखा तू आज लाला को पकड़ के ले आ। मैं तुझे माखन खाने को दूंगी। मनसुखा जब कन्हैया को पकड़ने भागे तो कन्हैया बोले- क्यों रे ब्राह्मण तू आज माखन के लोभ में मैया से मार लगवायगो। मैं तुझे रोज चोरी कर कर के माखन खाने के लिए देता हु मैया तो तुझे सिर्फ आज माखन खाने को देगी। अगर तूने आज मुझे पकड़ा और मैया से मार लगवाई तो अपनी पार्टी से बायकॉट कर दुंगो।
मनसुखा बोले मैया का क्या है? 2 चपत तेरे गाल पर लगाएगी और मेरा भला हो जायेगा। हमे माखन खाने के लिए मिल जायेगा।
भगवान बोले अच्छा मेरी होए पिटाई और तेरी होय चराई। वाह मनसुखा! वाह
भगवान सुन्दर लीला कर रहे है। मनसुखा के लोभ में मनसुखा ने कृष्ण को पकड़ लिया। और जोर से आवाज लगाई। माँ दौड़ कर आई। जैसे ही माँ कान्हा के पास पहुंची मनसुखा ने छोड़ दिया। मनसुखा बोले मैया मैंने इतनी देर पकड़ कर रखो पर तू नही आई तो कन्हैया हाथ छुड़वा कर भाग गयो।
मैया एक तरीका बताऊ पकड़ने का। तू इसे भक्तन की सौगंध खवा।
मैया बोली या चोर को कौन भक्त बनेगो। फिर भी माँ कन्हैया को सौगंध ख्वाती है। कन्हैया तुझे तेरे भक्तन की सौगंध है जो मेरी गोद में ना आये।
भगवान बोले 'अहम भक्ता पराधीन'! मैं तो भक्त के आधीन हूँ। और भाग कर मैया के पास चले गए। मैया से बोले की अब मैया या मार या छोड़ मैं तेरे हाथ में हूँ ।
मैया बोली लाला ना मारूंगी और ना छोडूंगी, हाँ तुझे बांधूंगी जरूर। मैया रेशम के डोरे से ऊखल से कृष्णा को पेट से बाँध रही है।
भगवान बोले मैया मेरे हाथ को बांधे तो बंध जाऊ। पैर से बांधे बंद जाऊ। पेट से बाँध रही है। और मेरे पेट में तो पूरा ब्रह्माण्ड समाया है। बार बार में बांध रही है लेकिन डोरी 2 अंगुल छोटी पड़ जाती है। एक अंगुल प्रेम है दूसरा है कृपा। भगवान कहते है जब व्यक्ति प्रेम में आ जाता है तो मैं उस पर कृपा अपने आप कर देता हूँ।
आज मैया जब थक गई और प्रेम में आ गई। तो प्रभु ने माँ पर कृपा कर दी। अब मैया ने कान्हा को बाँध दिया है और भगवान का नाम पड़ा है दामोदर।
बोलिए दामोदर भगवान की जय!!
संस्कृत में डोरी को दाम कहते है। और उदर कहते है पेट को। भगवान को रस्सी से पेट से बाँधा तो नाम पड़ा दामोदर।
इस प्रकार से भगवान को बाँध कर माँ अंदर चली गई। भगवान बोले की मैं खुद तो बंध गया हूँ लेकिन मेरे अंदर इतनी शक्ति है की दूसरों के बंधन खोल सकता हूँ।।
वहां बगीचे में एक यमलार्जुन का वृक्ष था। जिसकी जड़ एक थी और तना भाग दो थे। भगवान ने उन दोनों वृक्षों के मध्य में ऊखल ले जाकर फंसा दिया और जोर से झटका दिया। उसमे से 2 तेजस्वी पुरुष निकले। दोनों ने भगवान की स्तुति की है।
ये दोनों यक्षराज कुबेर के पुत्र है। नलकुंवर और मणिग्रीव। एक बार ये दोनों नदी में स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे। वहां से नारद जी निकले। नारद जी ने इन्हे देख लिया। और इन्होने नारद जी को।
नारदजी को देख कर स्त्रियों ने तो वस्त्र पहन लिए लेकिन इन्होने नही पहने। तब नारद जी को क्रोध आ गया। और बोले हे कुबेर के बेटों, तुम्हे अपनी पिता की संपत्ति का इतना घमंड। की तुमने मेरा आदर नही किया और नग्न खड़े हो। जाओ तो तुम ऐसे ही रूप में वृक्ष बन जाओ।
जब इन्हे ज्ञात हुआ अपनी भूल का तो क्षमा मांगी है। और कहा की नारद जी हमे माफ़ कर दो। नारद जी बोले की अब तो तुम्हे वृक्ष बनना ही पड़ेगा लेकिन तुम्हारा उद्धार स्वयं भगवान श्री कृष्ण करेंगे। इसलिए ये नन्द भवन में आकर पेड़ बने है। और भगवान ने इनका उद्धार किया है।
बोलिए दामोदर भगवान की जय !!
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