*प्रभु भक्त अधीन :- भगवान श्रीकृष्ण और संत, किरात की कथा*
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एक बार श्रीमद्भागवत कथा सुनते समय गुरुदेव के मुख से एक कथा सुनी वो आपके लिए यहाँ पर लिख रहा हूँ। यह कथा सुनकर आपके हृदय में भगवान के लिए प्रेम अवश्य जागेगा।
एक बार की बात है। एक संत जंगल में कुटिया बना कर रहते थे और भगवान श्रीकृष्ण का भजन करते थे। संत को विश्वास था कि एक ना एक दिन मेरे भगवान श्रीकृष्ण मुझे साक्षात् दर्शन अवश्य देंगे।
उसी जंगल में एक किरात आया। उस किरात ने संत की कुटिया देखी। वह कुटिया में गया और उसने संत को प्रणाम किया और पूछा कि, "आप कौन हैं और आप यहाँ क्या कर रहे हैं।"
संत ने सोचा, यदि मैं इससे कहूंगा कि भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए बांट देखते हुए में बैठा हूँ। उनका दर्शन मुझे किसी प्रकार से हो जाये। तो कदाचित इसको ये बात समझ में नहीं आएगी। संत ने दूसरा उपाय सोचा।
संत ने किरात (शिकारी) से पूछा- "भैया! पहले आप बताओ कि आप कौन हो और यहाँ किसलिए आते हो?"
उस किरात (शिकारी) ने कहा कि, "मैं एक शिकारी हूँ और यहाँ शिकार के लिए आया हूँ।"
संत ने तुरंत उसी की भाषा में कहा, "मैं भी एक शिकारी हूँ और अपने शिकार के लिए यहाँ आया हूँ।"
किरात ने पूछा- "अच्छा संतजी, आप ये बताइये कि आपका शिकार दिखता कैसे है? आपके शिकार का नाम क्या है? हो सकता है कि मैं आपकी सहायता कर दूँ?"
संत ने सोचा इसे कैसे बताऊं? फिर भी संत ने कहा- "मेरे शिकार का नाम श्रीकृष्ण है। वो दिखने में बहुत ही सुंदर है। सांवरा सलोना है। उसके सिर पर मोर मुकुट है। हाथों में बंसी है। ऐसा कहकर संतजी रोने लगे।
किरात बोला- "बाबा रोते क्यों हो? मैं आपके शिकार को जब तक ना पकड़ लूँ, तब तक पानी भी नहीं पियूँगा और आपके पास नहीं आऊंगा।"
अब वह किरात घने जंगल के अंदर गया और जाल बिछा कर एक पेड़ पर बैठ गया। यहाँ पर प्रतीक्षा करने लगा। भूखा प्यासा बैठा हुआ है। एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन। भूखे प्यासे किरात को नींद भी आने लगी।
भगवान बांके बिहारी को उन पर दया आ गई। भगवान उसके भाव पर रीझ गए। भगवान मंद मंद स्वर से बांसुरी बजाते आये और उस जाल में स्वयं फंस गए।
जैसे ही किरात को फंसे हुए शिकार का अनुभव हुआ हुआ तो तुरंत नींद से उठा और उस सुंदर सांवरे भगवान को देखा। ऐसा सुंदर रूप देखकर उसका मन आनंद से भर गया।
जैसा संत ने बताया था उनका रूप हूबहू वैसा ही था। वह अब जोर जोर से चिल्लाने लगा, "मिल गया, मिल गया, शिकार मिल गया।"
किरात ने उस "शिकार" को जाल समेत कंधे पर बिठा लिया। और किरात कहता हुआ जा रहा है, "आज तीन दिन के बाद मिले हो, खूब भूखा प्यासा रखा। अब तुम्हे मैं छोड़नेवाला नहीं हूँ।"
किरात धीरे धीरे कुटिया की ओर बढ़ रहा था। जैसे ही संत की कुटिया आई तो किरात ने आवाज लगाई- "बाबा! बाबा!"
संत ने तुरंत दरवाजा खोला। और संत उस किरात के कंधे पर भगवान श्रीकृष्ण को जाल में फंसा देख रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण जाल में फंसे हुए सुंदर मंद मंद हंस रहे हैं।
किरात ने कहा- "आपका शिकार लाया हूँ। कठिनता से मिले हैं।
संत की आज सुध उड़ गई। संत किरात के चरणों में गिर पड़े। संत आज फुट फुट कर रोने लगे।
संत कहते हैं- "मैंने आज तक आपको पाने के लिए अनेक प्रयास किये प्रभु! लेकिन आज आप मुझे इस किरात के कारण मिले हो।"
भगवान बोले- "इस किरात का भाव तुम्हारे भाव से ज्यादा है। इसका विश्वास तुम्हारे विश्वास से ज्यादा है। इसलिए आज जब तीन दिन बीत गए तो मैं आये बिना नहीं रह पाया। मैं तो अपने भक्तों के अधीन हूँ।
और आपकी भक्ति भी कम नहीं है संत जी। आपके दर्शनों के फल से मैं इसे तीन ही दिन में प्राप्त हो गया।"
इस प्रकार से भगवान ने दर्शन देकर दोनों पर कृपा की और फिर वहां से भगवान अंतर्धान हो गए।
*🌞- समीरा के प्रभु कृष्ण राधावर*
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