Tuesday, September 3, 2019

केतु का स्वभाव एवं प्रभाव

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) 
--------------------------------------------------------------
केतु का स्वभाव एवं प्रभाव
केतु ग्रह को लम्बा, हस्ट पुष्ट व् धुम्रवर्ण छाया ग्रह
कहा गया है! केतु ग्रह के सिर नहीं है, सिर्फ धड
है!
इनकी क्रियाएं तांत्रिक हैं, इसलिए केतु ग्रह अन्य
ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक
रहस्यवादी हैं! केतु गहरे ध्यान में बैठने
की सामर्थ्य रखतें हैं! केतु आत्मवादी,
सहिष्णु और धैर्यशाली हैं! केतु
व्यक्ति को विश्वासघाती, हृदयहीन एवं
कृतघ्न बना देतें हैं! केतु ग्रह अचानक बहुत कुछ देतें हैं
तो अनायास ले भी लेतें हैं! ये व्यवधान व् रूकावट
लाना अपना कर्तव्य समझतें हैं! केतु गृह
की प्रकृति में अचानक उन्नति या अवनति, मान, अपमान,
दुर्घटना, पदच्युति, घबडाहट, उलझन, आर्थिक
तंगी और उत्साहहीन करना है !
केतु का मंगल के साथ सम्बन्ध
हो तो व्यक्ति क्रोधी,कपटी,चंचल, कठोर,
सहनशील, एवं भोग भीरु होता है ! चन्द्र
से सम्बन्ध हो तो अस्थिर मन, क्लेश, माता को कष्ट और
पिता या मित्र से दुःख होता है!
बुध से सम्बन्ध हो तो क्रूर वाद विवाद करने वाला, गैस्ट्रिक रोग से
ग्रस्त होता है! गुरु ग्रह से सम्बन्ध हो तो पूजा पाठ योग ध्यान
आदि में रूचि उत्पन्न होती है! शुक्र ग्रह से
सम्बन्ध हो तो व्यक्ति आलसी, वाचाल,
निरुत्साही, व कुटुंब विरोधी होता है!
शनि ग्रह से सम्बन्ध हो तो व्यक्ति पराक्रमी,
परिश्रमी, विद्वान् व् कुशल वक्ता होता है, लेकिन
आर्थिक तंगी व् उदार रोगों का सामना करना पड़ सकता है!
केतु ग्रह की रूचि तंत्र मंत्र
रहस्यमयी विद्याओं और आध्यात्मिक कार्यों में
होती है! केतु ग्रह से प्रभावित
व्यक्ति रहस्यमयी कार्यों को करने में तत्पर रहते हैं
और जासूस, ओझा,भविष्यवक्ता , धर्मगुरु, उपदेशक, पर्यटक, संचार
विभाग आविष्कारक आदि होते हैं!
केतु ग्रह सर्वाधिक बलि होने पर व्यक्ति के जीवन पर
४८ से ५४ वें वर्ष में विशेष प्रभाव डालतें हैं! यदि इस अवधि में
दशा व् अन्य गृह भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक
उन्नति होती है!
केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति शारीरिक रूप से दुर्बल
होतें है! कार्य की अधिकता से घबरा जाते हैं और इनके
व्यव्हार में चिड चिड़ापन आ जाता है! इनकी पाचन
शक्ति कमज़ोर होती है! प्रायः ये चर्म रोग, श्वेत
कुष्ट , गर्भस्त्राव, मसूरिका, जलोदर, विषरोग, खांसी,
सर्दी जुखाम, गुप्तरोग, गठिया,रक्तविकार
,पथरी, कैंसर, वात पित जनित रोग, एवं स्नायविक
दुर्बलता से शारीरिक कष्ट उठाते हैं! स्वास्थ्य हेतु
संतुलित सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए एवं यदि धुम्रपान
आदि नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं
तो उन्हें त्याग देना चाहिए!

No comments:

Post a Comment

im writing under "Comment Form Message"