आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा)
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#खंडन --
#शून्य_की_खोज --
की जब शून्य की खोज सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेत्ता आर्यभट्ट ने किया । तो उनके पहले से कौरव के 100 होने या रावण के 10 सर होने की गिनती कैसे की गई ।
आपका ये सवाल आपको लॉजिकल लग सकता है लेकिन मेरी भाषा मे इसे सिर्फ बेवकूफी कहेंगे । --
#आइये_आज_इसका_ही_खण्डन_करते_है ---
आर्यभट्ट के आर्यभटीय का( सङ्ख्यास्थाननिरूपणम् ) श्लोक जिसमे शुन्य का उल्लेख आता है एक बार उसे देखते है जिसमे उन्होंने कहा है-
एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम् ।
कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ २ ॥
अर्थात् "एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है।"
तो क्या सच मे आर्यभट्ट से पहले शून्य किसी को ज्ञात नही था या किसी को गणना करने को नही आया
इसका खंडन करने से पूर्व कुछ बाते जान लेते है --
#अविष्कार_और_खोज_में_अंतर --
खोज उस चीज़ का पता लगाना है जो पहले से कहीं मौजूद है यानि कोई चीज पहले से अस्तित्व में है और उसके बारे अधिक से अधिक जानकारी लेकर उसे इस्तेमाल करने लायेक बनाना जैसे ; आग की खोज की गयी थी वो पहले भी लेकिन जब तक उसका इस्तेमाल करना और उसको नियंत्रित करना न सिखा इतने उसका कोई इस्तेमाल नही था और जब से उसका इस्तेमाल शुरु हुआ तो वह एक खोज बनी ।
#जबकी
आविष्कार वह चीज़ है जो पहले से मौजूद नहीं होती है उसे बनाया गया है किसी व्यक्ति के द्वारा पहले जो चीज अस्तित्व में नही थी उसको अस्तित्व में लाया गया है कि यह आपके मस्तिष्क के काम का परिणाम है। जेम्स वॉट ने रेलवे इंजन काआविष्कार किया था कई बार तो अविष्कार किसी किसी घटना के कारण होते है जैसे कहा जाता है कि एक्सरे का आविष्कार गलती से हुआ था भौतिक विज्ञानी के रूप में विख्यात विलहम रोएंटगन ने एक्सरे का अविष्कार किया था। दरअसल, वे कैथोडिक रेज ट्यूब बनाना चाह रहे थे।
आर्यभट्ट ने शून्य का अविष्कार नही किया था बल्कि खोज की थी । शून्य वैदिक काल मे बहोत पहले से था
#सिद्ध_करने_के_लिए_कुछ_उदहारण --
1- #बक्षाली_पाण्डुलिपि_या_बख्शाली_पाण्डुलिपि -- यह ग्रन्थ कारिका के रूप में लिखा गया है और छह अध्यायों में विभाजित है। सबसे पहले अध्याय में प्रस्तावना दी गई है जो इस ग्रन्थ को लिखे जाने के उद्देश्य पर प्रकाश डालती है।
दूसरा अध्याय 'संख्याविधान' है जिसमें विभिन्न संख्याओं में मापन का उल्लेख किया गया है। इसकी शुरुआत 'यव' (जौ के बीज) से होती है। फिर 'अंगुली', वितस्ति या बालिश्त, हस्त डंडा (लट्ठा) जैसे मापों का वर्णन किया गया है। फिर कोस और योजन का उल्लेख है। इसके बाद वजन के मापों का वर्णन है, खासकर चावल के वजन करने वाले माप। सुनारों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मापों जैसे गुंजा, माशा, कर्शा और पल का भी उल्लेख किया गया है। समय की माप के बारे में काफी रूखे ढंग से वर्णन किया गया है। इसके अनुसार एक दिन में 30 मुहूर्त होते हैं, जबकि 30 दिनों से एक माह और 12 माह से एक साल बनता है।
2 - #नागार्जुन_का_शून्यवाद - सापेक्ष, फलत: अनुत्पन्न, नि:स्वभाव और स्वभाव शून्य बताते हुए शून्यता ने सिद्धांत को शास्त्रीय दृष्टि से प्रस्तुत किया। नागार्जुन ने जीवन एवं उनकी तिथि के विषय में कई प्रकार के प्रवाह और मत प्रचलित हैं। उन मतभेदों का विशद विवरण तो यहाँ सम्भव नहीं है, किन्तु उनके विषय में लंकावतारसूत्र, महामेघसूत्र, महामेरीसूत्र और मज्जुश्रीमूलकल्प में भविष्यवाणियाँ उपलब्ध होती हैं। सभी प्राणियों और परम्पराओं की समीक्षा से ज्ञात होता है कि भारतीय परम्परा में माध्यमिक दर्शन, रसेश्वर दर्शन, तन्त्र तथा आयुर्वेद से सम्बन्ध नागार्जुन नामधारी चार आचार्य हुए। इनमें प्राचीनतम बौद्ध नागार्जुन ही थे, जिनकी तिथि प्राय: ईसवी सन दूसरी शताब्दी के आस पास मानी गयी (146 – 217 ई.) है।
3 - #वैदिक_साहित्य_में_शुन्य - हिन्दुओं का सबसे प्राचीनतम और महानतम ग्रन्थ वेद है. वेद का अर्थ होता है – जानना. वैदिक संस्कृति हमारी सांस्कृतिक धाती है और वेद हमारी अतीत गाथा की उद्गाता. वेदों की संख्या चार है – ऋग्वेद, सामवेद , अथर्ववेद और यजुर्वेद. वेदों में शून्य के साथ- साथ 10^19 तक की संख्या का उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद में 10^12 तक की संख्या के बारे में बर्णन है तो यजुर्वेद में 10^19. रामायण के बाल कांड में 10^60 तक की संख्याओं के बारे में पता चलता है . कृष्ण यजुर्वेद की इस श्लोक को देखिये जिसमे 1, 2, 3, 4, ---10, 100 , 1000 ---- अनंत की बात हुई है
हे अग्नि देव आपको 1 बार, 2 बार , 3 बार --- 10 बार, 100 बार , 1000 बार --- अपरिमित बार नमस्कार है.
इतना ही नहीं वेदों में विषम संख्याओं पर भी चर्चा हुई है. विषम संख्या 2 से विभाजित नहीं होने वाली संख्या है जैसे – 1, 3, 5, 7, 9---
इस श्लोक में जो संख्या का प्रयोग हुआ है वह निश्चित ही विषम संख्या 1, 3, 5, --- 33 का एक समूह है . यही नहीं वेदों में एक ऐसा श्लोक दीखता है जो आपको सम संख्या के अलावा , समान्तर श्रेणी और 4 के गुनज के रूप में चर्ची की हुई है.
4 - #रामायण में -
यहाँ 1 (एक), 10(दश), 100(सौ), 1000(सहस्र), 10000(अयुत), 100000(नियुत),1000000(प्रयुत), 10000000(अर्बुद), 100000000(न्यर्बुद),1000000000(समुद्र), 10000000000(मध्य), 100000000000(अन्त) और 1000000000000(परार्ध) का प्रयोग किया गया है.
इसी सूचि को आगे बढ़ाते हुए यजुर्वेद के तैतरीयसंहिता में 10^12 से आगे की संख्या के नाम मिलते है – 10^13 (उसस) , 10^14(वयुष्टि), 10^15(देशयत) , 10^16(उद्धयत), 10^17(उदित), 10^18(सुबर्ग) और 10^19(लोक) का वर्णन मिलता है .
यदि वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड की बात करे तो हमें वहां 10^60 तक की संख्या का पता चलता है . श्री राम जब अपनी सेना के साथ समुद्र पर 100 योजन लम्बा और 10 योजन चौड़ा पुल निर्माण कर लंका में दाखिल हुए तो रावण इतनी बड़ी सेना को देख डर सा गया और उसने तुरन्त अपने गुप्तचर शुक को सेना की ताकत और संख्या का पता लगाने भेजा और शुक ने वापस आकर जब राम की सेना का बखान किया तो सब अचंभित हो गए .
5 - #महाभारत --
महाभारत में भी बड़ी संख्या का प्रयोग तो दीखता है पर वह इतनी बड़ी नहीं है. परार्ध संख्या से आगे महाभारत में मुझे कुछ नहीं मिला पर एक मजेदार घटना का उल्लेख मैं अवश्य करूँगा . युद्ध समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर लौटे और घृतराष्ट्र से मिलने गए तो उन्होंने युद्ध में मरे सैनिकों और बचे सैनिकों के बारे में जानकारी मांगी जिसका जवाब युधिष्ठिर ने कुछ यूँ दिया मरने वाले सैनिकों की संख्या = 1000,000,000 + 660,000,000 + 20000 = 1660020000 तथा जीवित सैनिकों की संख्या = 240165 थी .
6 - #बौद्ध_काल_मे - आपने महात्मा बुद्ध का नाम तो अवश्य सुना होगा. महाराज दण्डपाणी की पुत्री गोपा से जब उनका विवाह ठीक हुआ तो उन्हें उस समय के रीति के अनुसार परीक्षा देना पड़ा और जब बारी गणित के आई तो गुरु अर्जुन ने उनसे पूछा – राजकुमार गौतम क्या तुम कोटि से आगे की शतोत्तर गणना जानते हो ? राजकुमार का जबाब हाँ में था और उन्होंने 10^53 = तल्लक्ष्ण तक की संख्या बता दी इसके आगे भी उनहोंने अग्रसारा एक संख्या का उल्लेख किया जिसका मान आजके सबसे बड़े सख्या गुगोल (10^100) से अधिक है .
1अग्रासारा = 10^421.
#विशेष -
हमारे धर्मशास्त्रो में अनंत की असीम कल्पना की गयी है – हरि अनंत हरी कथा अनंता द्वारा ईश्वर की अनन्त होने की कल्पना दिखती है. ईशोपनिषद् में एक श्लोक आता है
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
जिसका अर्थ है – यदि हम पूर्ण में पूर्ण को घटाए तो शेष भी पूर्ण ही रहता है. इसी बात की पुष्टि हमारे ग्रन्थ श्रीमद भगवद्गीता में भी मिलता है.
इसके अलावा आचार्य पिंगल ने अपनी पुस्तक छंदशास्त्र में इसा पूर्व 200 सदी में शून्य को गायत्री मन्त्र से जोड़ दिया. गायत्री मन्त्र में 4 पद हैं और इसमें प्रत्येक पद में 6 अक्षर है . यदि इसे आधा कर इसमें 1 घटा दिया जाये और फिर इसे आधा कर पुनः इसमें 1 घटा दिया जाये तो हमें शून्य प्राप्त होता हैं .
जो सिद्ध करते है कि आर्यभट्ट ने शुन्य की बस खोज की थी जभकी शुन्य की जानकारी सबको थी ही नही बल्कि उस्का प्रयोग भी लोग पहले से करते थे।।
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