*#साधना_और_सिद्धिरहस्य*
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दो प्रकार की साधना विश्व में प्रचलित है प्रथम ईश्वर कोटि के देवों की साधना दूसरी तामसिक भूत प्रेत आदि की साधना।
ईश्वर कोटि के देवों की साधना साधना माता पिता की प्रसन्नता के समान है। और भूत प्रेत आदि की साधना दुकानदारी के समान है।
ईश्वर कोटि में भगवान त्रिदेव उनके अवतार और पंच वैदिक देव आते हैं। इनको अपने शील,स्वभाव,कार्यों और सद्गुणों से पूजा मंत्र जप तप यज्ञ आदि से प्रसन्न किया जा सकता है । अर्थात् इनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है ।
इन को वश में नहीं किया जा सकता यह वशीभूत होते हैं तो केवल और केवल प्रेम से।
हम इनकी पूजा जप तप करके यदि किसी गलत चीज की इच्छा प्रकट करेंगे तो यह हमारे कान पर प्यारा सा तमाचा भी लगा सकते हैं। जो देखने में तो हमें बुरा लगेगा लेकिन उसका परिणाम हमारे लिए ही हितकारक रहेगा।
यह ईश्वर कोटि के देव लोकान्तर में हमें सद्गति और मोक्ष प्रदान करते हैं।
दूसरे जो तामसिक देव है वह व्यापारी वर्ग है उनको हम पूजा आदि सामग्री चढ़ाएंगे तो वह हमारी कामना पूरी करेंगे।
कामना चाहे अच्छी हो या बुरी, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। उसका परिणाम अच्छा हो या बुरा।#पैसा दो और सौदा लो ,यह उनका व्यापार है।वे मात्र व्यापारी हैं। इसमें साधक को दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ सकता है।
अतः इस भूत-प्रेत की साधना से दूर ही रहें तो अच्छा है। क्योंकि भगवान गीता में कहते हैं कि भूतों को पूजने वाले भूतों में ही मिल जायेंगे। बदमाशों का ग्रुप ज्वाइन करने के बाद भला कोई सुख शांति पूर्वक कैसे जी सकता है?
अतः सात्त्विक देवों की उपासना करें। इसमें सामान भी कम लगता है।
दो चीजें मात्र चाहिएंगी-#सच्चा_मन_और_सच्चा_मंत्र।
क्रमशः
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