*यज्ञानां जपयज्ञओअस्मि,,*
आध्यात्मिक विषय पर इससे गहरा जाया ही नहीं जा सकता है,, भगवान कृष्ण जहाँ पहुंचे हैं ये हर किसी के बस की बात नहीं है,,ये विषय सामने बैठे व्यक्ति को कुछ हद तक बोलकर समझाया जा सकता है,, बाकी उससे करवाकर,,
लिखकर बताना तो दुरूह है फिर भी कोशिश करता हूँ,,
जैसे कर्म तीन तरह से करने योग्य हैं,, कायिक, वाचिक, मानसिक,, जो शरीर से किए जाएं वो *#कायिक* कर्म हैं, ये सबसे ऊपरी सतह है मोटे तौर पर,,
जो वाणी से किए जाएं वो *#वाचिक* ये थोड़े गहरे कर्म हैं शरीर की अपेक्षा से,,
जो चिंतन या विचार से किए जाएं वो,
*#मानसिक* ,,से सबसे गहरी अवस्था है कर्मों की,,
लेकिन जो कृष्ण कह रहे हैं वो बड़ी गूढ़ रहस्य वाली बात है,, यहाँ जप में एकदम उल्टा है,,जप में सबसे पहले वाचिक जप होता है,, आप वाणी से राम राम, या ॐ ॐ का तेज बोलकर जाप करते हैं,, जो आवाज बाहर सुनाई दे,,
इसको आप इतनी ताकत से बोलें जिंतनी आपमें ताकत है,, और बिना बीच में रुके प्रतिदिन एक घंटा तीन महीने तक वाचिक जप करते रहें,,
फिर *#दूसरी* स्टेज पर अगले तीन महीने ॐ ॐ का जाप सिर्फ होठों से करें,, सिर्फ होंठ हिलें आवाज न सुनाई दे,,लगातार बिना किसी बाधा के ये चलना चाहिए,,
फिर *#तीसरी* स्टेज है,, तीन महीने तक शांत बैठ जाएं एक आसन में और मन मन में ॐ का उच्चारण करते रहें,, ॐ का उच्चारण लगातार सतत चलता रहे,,
तीनों जाप के कुल मिलाकर 9 महीने होते हैं,, और फिर जैसे 9 महीने में जन्म होता है एक छोटे से शिशु का,,ठीक ऐसे ही जन्मेगा आपके भीतर से राम या ॐ का अनहद नाद,,
आप उठें, बैठें, खाएं पिएं, सोएं जागे,, आपके रोम रोम,आपकी त्वचा, आपकी पूरी देह,, आपके अंग अंग से राम राम या ॐ ॐ सुनाई देगा,,जो मंत्र आपने लगातार 9 महीने जपा होगा,,
कबीर ने जिसे अनहद *#बाजा* कहा है,,
जिसकी बात यहाँ गीता में कृष्ण कर रहे हैं,,वे पहली तीन अवस्था की बात नहीं कर रहे हैं,, बल्कि वे इस चौथी अवस्था के बारे में कह रहे हैं कि यज्ञ में मैं *#जप यज्ञ हूँ,,*
अपनी संस्कृति, अपना गौरव,,
जय जय श्री कृष्ण,,
No comments:
Post a Comment
im writing under "Comment Form Message"