आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा)
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अष्टम भाव में शनि के फल।
जन्मकुंडली में फलादेश करते हुए कुंडली का आठवा भाव और शनि दोनों ही बड़े महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कुंडली में अष्टम भाव को आयु का स्थान माना जाता है (कुछ विद्वान इसे मत्यु का स्थान समझते हैं, जो कि गलत है, वास्तव में मृत्यु का स्थान 7वां है।) आठवें भाव जैसा प्रभाव शनि ग्रह का भी है, इसी लिए शनि को इस स्थान का कारक कहा गया है। आठवां स्थान और शनि दोनों ही अचानक आने वाली मुसीबत, प्राकृतिक आपदा, अग्नि, जल, वायु या किसी भी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना, कारागार, यानी जेल, बड़े संकट, शरीर कष्ट की सूचना देते हैं। आठवें स्थान को दुःख भाव या पाप भाव के रूप में देखा जाता है
शनि ग्रह जहां – कर्म, आजीविका, जनता, सेवक, नौकरी, अनुशाशन, दूरदृष्टि, प्राचीन वस्तु, लोहा, स्टील, कोयला, पेट्रोल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीन, औजार, तपस्या और अध्यात्म का कारक माना गया है। वहीं यह ग्रह हमारे पाचन–तंत्र, शिरा नाड़ी, हड्डियों के जोड़, बाल, नाखून,और दांतों को भी नियंत्रित करता है। और वातरोग, शरीर कष्ट, दु:ख का भी कारक है। जन्मकुंडली का अष्टम भाव पाप या दुःख का भाव होने से अष्टम भाव में किसी भी शुभ ग्रह का होना अच्छा नहीं माना गया है। कुंडली में कोई भी ग्रह अष्टम भाव में होने से वह ग्रह पीड़ित और कमजोर स्थिति में आ जाता है, साथ ही स्वास्थ की दृष्टि से भी बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, अब विशेष रूप से शनि की बात करें तो, शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना निश्चित रूप से अच्छा नहीं है, इससे जीवन में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, शनि के अष्टम भाव में होने को लेकर एक सकारात्मक बात यह है की कुंडली में अष्टम का शनि व्यक्ति को दीर्घायु देता है, यदि कुंडली में बहुत नकारात्मक योग न बने हुए हों तो, अष्टम भाव में स्थित शनि व्यक्ति की आयु को दीर्घ कर देता है, पर इसके अलावा शनि अष्टम में होने से बहुत सी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं।
यदि शनि कुंडली के आठवे भाव में स्थित हो तो ऐसे में व्यक्ति को पाचन तन्त्र और पेट से जुडी समस्याएं लगी ही रहती हैं, इसके अतिरिक्त जोड़ो का दर्द, दाँतों तथा नाखूनों से जुडी समस्याएं भी अक्सर परेशान करती हैं, शनि का कुंडली के अष्टम भाव में होना व्यक्ति की आजीविका या करियर को भी अक्सर बाधित करता है, करियर को लेकर कभी-कभी संघर्ष की स्थिति बनी रहती है
करियर में स्थिरता नहीं आ पाती और मेहनत करने पर भी व्यक्ति को अपनी प्रोफेशनल लाइफ में इच्छित परिणाम नहीं मिलते, जो लोग राजनैतिक क्षेत्र में आगे जान चाहते हैं, उनके लिए भी अष्टम भाव का शनि संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करता है, वैसे तो राजनीति और सत्ता का सीधा कारक सूर्य को माना गया है, परंतु शनि जनता और जनसमर्थन का कारक होता है, इस लिए राजनैतिक सफलता में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है, कुंडली में शनि अष्टम भाव में होने से व्यक्ति को जनता का अच्छा सहयोग और जनसमर्थन नहीं मिल पाता जिससे व्यक्ति सीधे चुनावी राजनीती में सफल नहीं हो पाता, अथवा बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ता है, शनि अष्टम में होने से व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए अच्छे कर्मचारी या सर्वेंट नहीं मिल पाते, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बिजनेस या व्यापार में सफलता के अच्छे योग तो हैं, पर शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो, ऐसे में लोहा, स्टील, काँच, पुर्जे, पेंट्स, केमिकल प्रोडक्ट्स, पेट्रोल आदि का कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये सभी वस्तुएं शनि के ही अंतर्गत आती हैं, और अष्टम में शनि होने पर इन कार्यक्षेत्रों में किया गया इन्वेस्टमेंट लाभदायक नहीं होता, हानि की अधिक संभावनाएं रहती हैं, यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में हो तो, ऐसे में शनि दशा स्वास्थ कष्ट और संघर्ष उत्पन्न करने वाली होती है। अष्टम में शनि होना किसी भी स्थिति में शुभ तो नहीं है, पर यदि यहाँ स्व उच्च राशि में शनि हो, या बृहस्पति से दृष्ट शनि हो तो, समस्याएं बड़ा रूप नहीं लेती, और उनका समाधान होता रहता है। यदि शनि कुंडली के अष्टम भाव में होने से ये समस्याएं उत्पन्न हो रही हों तो यह उपाय करना लाभदायक होगा :-
1. शनिवार से आरंभ करके "ॐ शं शनैश्चराय नमः।" जप किया करें।
2. शनिवार साबुत उड़द का दान किया करें।
3. शनिवार को सांय पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलायें।
4. श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।
किसी भी जातक की कुंडली का आठवां भाव उसकी आयु का प्रतिनिधित्व करता है, इसके अलावा आठवें भाव का अष्टम होने से तीसरा भाव भी आयु को ही दर्शाता है, आयु निर्धारण के लिए लग्नेश का महत्व बहुत अधिक होता है। यदि किसी जातक का लग्नेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में विराजमान है तो, यह स्वास्थ्य की दृष्टि से नकारात्मक प्रभाव डालता है।
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