प्रत्येक स्त्री का स्वप्न होता है - 'माँ ' बनना ! गर्भधारण करने के पश्चात तो स्त्री में यह जिज्ञासा ओर भी प्रबल हो जाती है कि पुत्र होगा अथवा पुत्री ! यों तो गर्भ में पुत्र/पुत्री जानने हेतु डाॅक्टरी उपकरण(अल्ट्रा साऊंड आदि) की सहायता ली जाती है !
किंतु हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों अथवा विद्वानों ने ऐसी विधियाँ खोज निकाली थीं, कुछ ऐसे लक्ष्ण खोज निताले, जिन्हें देखकर, क्षण मात्र प्रत्येक स्त्री यह जान सकती है, कि गर्भ में लड़का है अथवा पुत्र ! मैं यहाँ कुछ सरल तथ्य प्रस्तुत कर रहा हुँ, जो कि लाभदायक सिद्ध होंगें -
* यदि पेट का झुकाव अथवा फैलाव दायीं ओर है, तो पुत्र उत्पन्न होने का संकेत है ! यदि बाँयी ओर फैलाव अथवा झुकाव है, तो पुत्री होने का संकेत है ! इसे यों भी समझ सकते हैं, दाँयाँ भाग पुरूष का माना गया है तथा बाँया भाग स्त्री का माना गया है !
* यदि बाँयी ओर सोना आरामदायक लगता हो, तो स्त्री के पुत्र उत्पन्न होगा ओर यदि दाँयी ओर सोना आरामदायक लगता हो, तो पुत्री उत्पन्न होगी !
* यदि गर्भवती महिला को नींद अधिक आती है, तो पुत्री उत्पन्न होगी ओर यदि कम नींद आती है, तो पुत्र उत्पन्न होगा !
* गर्भ धारण के पश्चात गर्भवती महिला का चेहरा अधिक चमक उठे अथवा अत्यधिक सुंदर या आकर्षक हो जाये, तो पुत्री उत्पन्न होती है ! यदि चेहरा पहले की उपेक्षा रूखा हो जाये या चेहरे का रंग फीका पड़ जाये, तो पुत्र उत्पन्न होता है !
* यदि दायें स्तन का आकार बाँये स्तन से बड़ा हो जाये, तो पुत्र अन्यथा पुत्री उत्पन्न होती है !
* गर्भावस्था में प्राय: सम्पुर्ण शरीर का वजन भी बढ़ने लगता है ! किंतु शरीर का वजन न बढ़े, किंतु पेट अधिक बढ़ जाये या बढ़ा हो, तो पुत्र अन्यथा पुत्री उत्पन्न होती है !
* हाथ सूखे-सूखे रहते हों ओर पांव ठंडे ठंडे रहते हों, तो पुत्र अन्यथा पुत्री उत्पन्न होती है !
* यदि स्वभाव चिढ़चिढ़ा या क्रोधित हो जाये, तो पुत्र की सम्भावना अन्यथा पुत्री उत्पन्न होगी !
* अधिक खट्टा खाने को मन करता है, तो पुत्र अन्यथा पुत्री उत्पन्न होगी !
* बार-बार उल्टियाँ हो रही हों, तो पुत्र अन्यथा पुत्री उत्पन्न होगी !
सावधान -
गर्भ धारण करते ही अथवा गर्भावस्था में महिलाओं अत्यंत सावधान एवं चौकन्ना रहने की परमावश्यकता है ! क्योंकि यह गर्भ धारण का 9 माह का समय बहुत नाजुक होता है, यही वह समय होता है, जिसमें गर्भवती स्त्री पर तांत्रिक क्रिया बहुत शीघ्र प्रभावी होती है, अत: इस संदर्भ में विशेष सावधानी रखने की परमावश्यकता है, अत: किसी भी प्रकार की लापरवाही न करते हुये निम्न नियमों का पालन गर्भवती स्त्री एवं उसकी संतान के लिए अति आवश्यक है -
* भूलकर भी अपने अंदरूनी एवं मासिक के वस्त्रों को लापरवाहीवश यहाँ-वहाँ मत फैंकिये, क्योंकि ईर्ष्याद्वेष से ग्रस्त व्यक्ति, विशेषकर, नि:संतान स्त्रियाँ इसी वस्त्र को प्राप्त करने की ताक(मौका) में रहती हैं, ओर यदि ये वस्त्र उनके हाथ लग जाता है, तो गर्भवती स्त्री के लिए बहुत परेशानियाँ उत्पन्न गो सकती हैं, ये परेशानियाँ अथवा बाधायें पिरत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी भी प्रकार की हो सकती हैं ! अत: सावधान किया जाता है !
* गर्भवती स्त्री अपने हाथ-पैरों के नाखूनो को गुप्त रूप से ही काटे एवं गुप्त रूप से ही किसी अज्ञात अथवा गुप्त स्थान (जहाँ से इन्हें कोई प्राप्त न कर सके) पर फैंके ! फैंकने का अर्थ यह नहीं कि नाखूनों को एक साथ अथवा इक्ट्ठा ही एक ही स्थान पर फैंक दें ! कुछ एक-दो नाखून कहीं ओर 2-3 नाखून किसी ओर स्थान पर, इस तरह से फैंके, जिससे कोई इन्हें प्राप्त न कर सके !
* किसी के द्वारा विशेषकर अज्ञात या संदिग्ध व्यक्ति(स्त्री/पुरूष) द्वारा खाने वाली कोई भी वस्तु विशेषकर सफेद वस्तु और पान, सुपारी, ईलायची, फल एवं लौंग(लौंग को विशेषकर चायादि में ही डालकर दिया जाता है, जिससे कि शक न हो) आदि भूलकर भी ग्रहण न करें !
* अपने बालों तथा रूमाल आदि का विशेष ध्यान रखिये, इनके प्रति भी लापरवाही मत कीजिए, क्योंकि स्त्री के अंदरूनी एवं मासिक के वस्त्र तथा रूमाल एवं बालों द्वारा तांत्रिक क्रिया करके करके, कोई भी मनचाह कार्य आपसे करवा सकता है, अत: सावधान रहें !
* भूलकर भी मुख्य द्वार की चौखट पर न बैठें, विशेषकर संध्या समय ओर भूलकर भी किसी भी चौराहे पर न खड़ी रहें, यदि चौराहा पार करना ही पड़े, तो एक दम बगल या किनारे से ही पार करें, जैसे मान लीजिए तौराहे को दोनो ओर पटरी है, तो आप दायें या बांयें कुछ कदम चलकर, पटरी के ऊपर से ही चौराह पार करें, अन्यथा आप तांंत्रिक अथवा ऊपरी बाधा का शिकार हो सकती हैं !
* रात में गर्भावस्था में भूलकर भी अकेले न आयें-जायें, विशेषकर अत्यधिक सुनसान, अधिक वृक्षों आदि से युक्त स्थान अथवा संजिग्ध स्थान, अन्यथा ततिकाल आप ऊपरी बाधा का शिकार हो सकती हैं ! इसलिए यदि कहीं आना जाना ही पड़े, तो कुसी को साथ लेकर चलें ओर भीडडभाड़ अर्थात चगल-पहल वाले स्थान से ही आयें-जायें !
* एक ओर विशेष सावधानी ! जब भी स्नान तरें, तो कमसेकम एक वस्त्र शरीलर पर अवशिय ही होना चाहिए, अन्यथा एक काला धागा तो कमर में अवश्य ही बंधा हहोना चाहिए, अन्यथा आप अज्ञात बाधा का शिकार हो सकती हैं !
* भूलकर भी केश(बाल) खुले न रखें, विशेषकर सोते समय, अन्यथा अज्ञात बाधा की पकड़ में आ सकती हैं आप !
* यदि आप शाकाहारी हैं एवं प्याज-लहसुन तथा अंडा आदि भी नहीं खाती हैं, तो दले में एक रूद्राक्ष अथवा अपन् आराध्य का लाॅकेट आदि धारण कर लीजिए, किंतु इन्हें धारण करते समय ब्रह्मचर्यादि का पालन विशेष रूप से अपिरहार्य है,अन्यथा विपरीत प्रभाव होता हा, यह नियम प्रत्येक स्त्री/पुरूष हेतु विशेष हेतु पालनीय है ! इनके धारण करने से कुसी भी प्रकार की बाधाादि त्रस्त नहीं कर पाती है !
* गर्भवती स्त्री के लिए "पन्ना" धारण करना अती कल्याणकारी है ! क्योंकि यह रत्न स्त्री के लिए अमोघ कवच है, क्योंकि यह गर्भवती स्त्री की टोने-टोटके तथा तांत्रिक बाधा से रक्षा करता है ओर प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा से राहत प्रदान करता है !
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