Thursday, March 7, 2019

वेदों का परिमाण तथा स्वरूप

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~:
वेदों का परिमाण तथा स्वरूप

वैदिक सनातन धर्म का मूल स्रोत वेद है। इस वैदिक सनातन धर्म से समस्त जगत् के अनेक सम्प्रदाय (मत-मतान्तर) हुए हैं अर्थात् वर्तमान काल में जितने सम्प्रदाय हैं वह सनातन धर्म रूपी वृक्ष की शाखाएं-प्रशाखाएँ हैं।
सनातन धर्म का लक्षण आचार्यों ने इस प्रकार किया है~~ "श्रुति स्मृति पुराणप्रतिपादित: धर्म: सनातनधर्म:"  श्रुति-स्मृति तथा पुराण प्रतिपादित धर्म सनातन धर्म है। सनातन धर्म को जन्म देने वाले निर्गुण, निराकार ब्रह्म है। ब्रह्म अनादि, जन्म रहित है, सनातन धर्म भी अनादि है।
सनातन धर्म तथा वेदों का प्रादुर्भाव परमात्मा से हुआ। वेद ब्रह्म का श्वास रूप है।
ईश्वर रचित वेद में मनुष्य रचित ग्रन्थों के समान भ्रम-प्रमाद-संशय-भय-विप्रलिप्सा (लोभ) तथा यथार्थ बात न कहना आदि दोष नहीं है, अतः वेद स्वतः प्रमाण है। वेदानुसारी ही आस्तिक दर्शन, स्मृतियां, श्रौतसूत्र, धर्मसूत्र,   पुराण, रामायण, महाभारत तथा तन्त्रग्रन्थ प्रमाण माने गये है।
"अज्ञात ज्ञापकं प्रमाणं" अज्ञात का ज्ञान कराने वाले ग्रँथ (वेद) प्रमाण है। यथा~ "प्रमाया: करणमिति प्रमाणम्"  प्रमा का साधन प्रमाण है।

ऋग्वेद का प्रमाण~  इसकी इक्कीस मंत्र संहिताएं हैं। ऋग्वेद के आठ स्थान है~~
१- चर्चा
२- श्रावक
३- चर्चक
४-श्रवणीय पार
५-क्रमपार
६- क्रमचट्ट
७- क्रमजट
८- क्रमदण्ड

इसके चार परायणों की पांच शाखाएं हैं~~ शाकला, बाष्कला, अश्वलायना, शांखायना, मांडूकायना।

इनके अध्ययन, अध्याय ६४ है, मण्डल १० है।
एकर्च, एक वर्ग, एकश्च नवक। दो दोवर्ग, दो-दो ऋचाएं। कुल मिलाकर ३०० ऋचाएं हैं।

ऋग्वेद का स्वरूप~~ "ऋग्वेद पद्मपत्राक्ष: ग्रीव: , कुंचित केश: श्मश्रु:, श्वेतवर्ण:, प्रमाप पंच वितस्ति मितम्।"
ऋग्वेद के कमल के समान नेत्र, सुंदर गर्दन, घुंघराले केश, दाढ़ी-मूंछ से युक्त श्वेतवर्ण, पांच बालिस्त लम्बा शरीर है।

यजुर्वेद का स्वरूप~~  "पिंगाक्ष:, कृशमध्य:, स्थूलगलकपोलस्ताम्रवर्ण:, कृष्णवर्णा:, प्रादेशषट् दीर्घ:।"
यजुर्वेद के पीले नेत्र, पतली कमर, मोटा गला, तांबे के रंग के गाल, काला वर्ण, छः बालिस्त शरीर है।

सामवेद का स्वरूप~~ "नित्य स्त्रग्वी, सुप्रीत:, शुचि:, शुचौवासी, शमी, दांतो, चर्मी, बृह्च्छरीर:-काञ्चननयन:, नवरत्निमात्र:।"
सामवेद नित्य माला धारण किये हुए, पवित्र मुस्कान, पवित्र स्थान के निवासी, संयतेन्द्रिय, मृगचर्मधारी, बड़ा शरीर, सुनहरे नेत्र, सूर्य के समान रंग, नवरत्नि लम्बाई है।

अथर्ववेद का स्वरूप ~~ "तीक्ष्ण प्रचंड कामरूपी, विश्वात्मा, विश्वकर्ता, क्षुद्रकर्मा, स्वशाखाध्यायी, प्राज्ञो, महाहनु:, नीलोत्पल वर्ण:, स्वदारसंतुष्ट:, दशरत्निमात्र:।"
अथर्ववेद तीक्ष्ण, प्रचंड, इच्छानुसार रूपधारी, विश्वात्मा, विश्वकर्ता, क्षुद्रकर्मा, अपनी शाखा का पाठ करने वाला, बुद्धिमान्, बड़ी ठोड़ी, नीलकमल के समान रंग, अपनी पत्नी में संतुष्ट, दशरत्नि लम्बाई है।

ऋग्वेद का आत्रेयगोत्र, चन्द्रमा देवता, गायत्री छन्द है।
यजुर्वेद का कश्यप गोत्र, इन्द्र देवता, त्रिष्टुप छन्द है।
सामवेद का भारद्वाज गोत्र, इन्द्र देवता, जगती छन्द है।
अथर्ववेद का वैखानस गोत्र, ब्रह्मा देवता, अनुष्टुप छन्द है।

य: एषां वेदानां नाम, रूप, गोत्र:, प्रमाण,छन्दो, देवता, वर्णादीनि वर्णयति, स सर्व विद्यो भवति, जातिस्मरो जायते, जन्मजन्मानि वेद पारगो भवति, अव्रतीव्रतीभवति, अब्रह्मचारी ब्रह्मचारी भवति य इदं चरणव्यूहं गर्भिणी शृणुयात् स पुत्रान् लभते, इदंश्राद्ध पठेत् स अक्षय श्राद्धं पितृणां समर्पयति , य: इदं पठेत् स पंक्तिपावनो भवति। य इदं पर्व पर्वषु पठेत् स विधूतपाप्मा भवति ! ब्रह्मभूयाय गच्छति।

【श्रीमद्भागवत पुराण के प्रथम श्लोक में तर्कशास्त्र के पक्ष में श्री वंशीधर जी के व्याख्या के आधार पर】

चतुर्वेद = वेद चार हैं ऋग्वेद-यजुर्वेद-सामवेद-अथर्ववेद। प्रत्येक वेद के चार भाग हैं।
पहला मंत्र भाग जिसे संहिता भी कहते हैं। दूसरा ब्राह्मण, तीसरा आरण्यक और चौथा उपनिषद् ।
महाभाष्यकार पतञ्जलि ने ऋग्वेद की २१, यजुर्वेद की १०१, सामवेद की १००० , अथर्ववेद की  ९ संहिताएँ कही है। सब मिलाकर  ११३१ है, किन्तु वर्तमान कल्प की संहिताओं के विषय में सीतोपनिषद् में ऋग्वेद की २१, यजुर्वेद की १०९ , सामवेद की १०००, अथर्ववेद की ५० संहिताएँ कही है, यह सब मिलाकर ११८० संहिताएँ हैं। इतने ही ब्राह्मण-आरण्यक-उपनिषद्, धर्मसूत्र, श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र है। इन सब को मिलाकर चारों वेद पूर्ण होते हैं। महर्षि पतंजलि के समय मे उपर्युक्त संहिता प्रभृति मिलते थे, किन्तु वर्तमान में बहुत कम उपलब्ध हैं।
                                     ~~ पूज्य गुरुदेव भगवान् प्रणीत गुरुवंश पुराण के सत्ययुग खण्ड के दूसरे अध्याय के आधार पर

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