*#पतितान्नभक्षणम्->*
(१)वेद का परित्याग करनेवाला(वेदाध्ययन रहित) को नग्न या कुष्ठी तथा (२)तीन पैढी़ से जिन्हे उपनयन संस्कार प्राप्त न हुआ हो अथवा (ब्राह्मण का १६, क्षत्रिय का २२, वैश्य का २४ वर्ष की अन्त्यावधितक उपनयन संस्कार न हुआ हो) वह व्रात्य(पतितसावित्रिक)अथवा मातृ(श्रृति वा गायत्री)घातक या दुश्चर्म्मा कहा हैं |
इनके अन्न खाने पर चान्द्रायण से शुद्धि होती हैं ...
अतः वेदज्ञ विशुद्ध द्विज(दंपती),विधवा, ब्रह्मचारी तथा यति(संन्यासीओं)को भी ऐसे पतितों का अन्न भक्षण नहीं करना चाहिये,और विशेष कर्मकांडीयों को अपने यजमान उपरोक्त दोष में आते हैं कि नहीं यह विचार करना चाहिये...
हमने ७५℅ निःसंतानो को परान्नभक्षण और बाजारु-भोजन-खाना-नास्ता सम्पूर्ण बंध कराकर कुछ ही महिनों में सफलता मिलती दैखी भी हैं, क्योंकि पतित-परान्न के स्वामी का पाप अन्न में होने से गर्भठहरने में अवरोध होता हैं...
-------> चतुर्वर्गचिंतामणौ प्रायश्चित्त खंडे - हेमाद्रौ देवल,पाराशर,मरिचिणां कथनम्
*#व्रात्यन्नं_यदि_कुष्ठान्नं_भुंक्ते_विप्र_क्षुधातुरः |#कवले_कवले_चान्द्रं_कृत्वा_शुद्धि_मवाप्नुयात् || देवल ||*
*#दुश्चर्म्मणश्च_व्रात्यस्य_अन्नं_भुङ्क्ते_द्विजः_सकृत् | *#तस्य_देह_विशुद्ध्यर्थं_चान्द्रमुक्तं_मुनिश्वरैः||पाराशर||*
*#नग्नो_वेदपरित्यागो_व्रात्यो_गायत्रिनाशकः | #कुष्ठी_तत्र_विज्ञेयो_दुश्चर्म्मा_मातृघातकः || #तयोरन्नं_द्विजो_भुङ्क्त्वा_शुद्धौ_चान्द्रायणं_चरेत् ||मरिचि ||*
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