श्री एम ने कहा -
स्वयं से परिचय की शुरुआत केवल लोगों के बीच ही हो सकती है, एकान्त में नहीं। अकेले होने पर, मैं यह नहीं देख पाता कि मैं कैसा हूँ। सर्वप्रथम यह जानना ज़रूरी है कि मैं कौन हूँ और मेरा बूता क्या है। स्वयं को जानने का अर्थ है, अपने आप को उस तरह जान पाना, जैसा आप वास्तव में हैं; केवल, 'मैं ब्रह्मन् हूँ' की रट लगाने से ऐसा ना हो पायेगा। क्रोध, ईर्ष्या, संकीर्णता से भरे रहते हुए, मैं ब्रह्मन् नहीं हो सकता।
: श्री एम ने कहा -
स्वयं से परिचय की शुरुआत केवल लोगों के बीच ही हो सकती है, एकान्त में नहीं। अकेले होने पर, मैं यह नहीं देख पाता कि मैं कैसा हूँ। सर्वप्रथम यह जानना ज़रूरी है कि मैं कौन हूँ और मेरा बूता क्या है। स्वयं को जानने का अर्थ है, अपने आप को उस तरह जान पाना, जैसा आप वास्तव में हैं; केवल, 'मैं ब्रह्मन् हूँ' की रट लगाने से ऐसा ना हो पायेगा। क्रोध, ईर्ष्या, संकीर्णता से भरे रहते हुए, मैं ब्रह्मन् नहीं हो सकता।
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