Thursday, February 7, 2019

चमत्कारी मंत्र सिद्धि का रहस्य

चमत्कारी मंत्र सिद्धि का रहस्य
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किसि भी साधना या सिद्धि को प्राप्त करने के दो उपाय है प्रथम देवता को सिद्ध कर लिया जाये या देवता के मंत्र को ! किन्तु यदी कोई ऎसी विधि आप्को मिला जाये जिससे आप सभी देवताओ का सानिध्य प्राप्त कर सके तो कैसा रहेगा ?किन्तु मार्ग कठिन है! सयंम की आवश्यक्ता होगी !! और साधना का नाम ही सयंम है !! तो शुरु करे विधि किन्तु प्रथम तो मै ये बता दु कि ये विधि का निर्माण मैने ही किया है ये मुझे स्वप्न मे प्राप्त हुई है श्री गुरु दत्तात्रेय जी आदेश द्वारा !!अब तक ये किसि किताब में प्रकाशित नही हुई है !! यदि कोई इसको अपना कह के दावा करता है या अपना नाम देने का प्रयास करता है तो वो स्व्यं जिम्मेदार होगा अपनी और भक्तो साधको की बर्बादी का !! आधा ग्यान हमेशा मात्र स्र्वनाश हि कर सकता है अब ये बाकी के लिये कितनी उपयोगी होगी इसका ग्यान नही है !!
सर्व प्रथम तो सभी मंत्र भगवान शिव ने किलन कर के रखे है यदी उतकिलन का ग्यान हो जाये तो आपको किसि भी मंत्र को सिद्ध करने की आवश्यक्ता ही नही पडेगी !!सत्य है कि वैदिक ऋषीगण शब्द को ही देवता कहते ,मानते थे उनके लिये कोई महामानव के समान कोई देवता नही होते थे जैसे लोगो ने आज कल कालप्निक देवता बना रखे है !! जिस प्रकार संगीत वाद्यो मे सरगम होती है और अलग अलग फ्रिक्वेंसी पे ट्युन कर बजाई जा सकती है उसि प्रकार हमारे भितर भी वही सात सुर है और अनके साथ अनय भी प्रिक्वेंसीस होती है !! ये मुल शब्द { ल-व-र-य-ह-उ-ऊ} ये मुख्य है !! इनके साथ के अक्षरो से आप बचपन से परिचित है !! ये 16 मात्राये है जिनहे हम षोडष मातृ्का के नाम से जानते है इनकी उपमा उस माँ के समान है जो संतान को स्तन पान कराती है भलई वो काला हो,गोरा हो,रोगी हो,अंधा हो या फिर गुंगा!
इनहे माता कहा गया है इन माताओ का कार्य है देवताओं की शक्तियों को बडाना ,चाहे वो गलत हो या सही ,ईसे ही मातृ्प्रेम कहते है! इन माताओ का नाम क्रमश:-
5.अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः  {16} है!
ये कार्य कैसे करते है उसपे चर्चा बाद मे करते है
4.क से लेकर ठ तक –कंठ तक के {12} 
अक्षर शिव जी का कंठ है ईन अक्षरो के उच्चारण मात्र से हलाहल विष का जन्म होने लगता है ! जिसे महादेव ने धारण किया है! 
3.ड से ले कर फ़ तक के {10}
अक्षर डफ़-ली (डमरु} की तरह छाति मे बजते रहते है! यही ममता,करूणा मातृ प्रेम की भावनाओ का निवास है 
2.ब से लेकर ल तक के {6} 
अक्षर बल बल एवं शक्ति बडाने वाले है जो शिव जी के लिंग स्थान पर उपस्थित हो संसार को उत्पन्न होने की गति प्रदान करते है! 
1.व से श तक के {4} 
अक्षर वश जिसके उच्चारण से वशिकरणि शक्ती पैदा होती है किन्तु यहा शिव अस्थिर अवस्था मे होते है !! यही अघोर तंत्र की शव साधना है ये जो दो शब्द है व और श यदी ईनको उलट कर दिया जाये तो ये श और व बन जाते है जो महाकाली की मुर्ती या फ़ोटो मे प्रदर्शित किया जाता है !! इन चार शब्दो मे धर्ती मे उतपन्न होने वाले सारे गुण है जैसे –धन,नाम,मान,सत्ता,क्रोध,लालच,काम(सैक्स),लोभ,मोह इत्यादि!! ईन सब भावो पे स्त्रियों का वर्चस्व होता है! इसके आगे 
7.ह से ले कर ज्ञ तक के {6} 
अक्षर है जिनका सही क्रम योग्य गुरु ही बता सकते है !! मतलब इन 6 अ़क्षरो को सिढि बनाकर ही समाधि ली जाती है !! यहाँ गुरुदेव महादेव स्व्यं सुक्ष्म रुप से विराजमान होते है,ये मस्तक का स्थान है इसे ही कैलाश पर्वत भि कहते है हिमालय भी और गुरुगद्दी भी यही है !!यहा स्व्यं की मृ्त्यु ही है !
इसी वजह से गृ्हस्त को ईन 6 अक्षरो का उच्चारण नही करना चाहिये!इन अक्षरो से शांति,मुक्ति,वैराग्य की प्राप्ती होति है !! और यदि गृ्हस्त इन अक्षरो का उच्चार करेगा तो वो शांत हो जायेगा,वैरागी हो जायेगा तो गृ्ह के लोगो का क्या,परिवार के कर्तव्यों दिये वचनो का क्या होगा!!
इन सात स्थानो को आप नंबरो से याद रखे ! ये विषय इतना बडा है की मुझे विषलेषण करने मे ये जिवन कम पड जायेगा!! अभी हमने जो 54 अ़क्षरो की चर्चा की उनमे से 38 देवता है एवं 16 देवियाँ है !! और जो जप करता है वह संतान है ! अब इनमे से 19 अक्षर आसुरीक है शैतानी हैया आप ऎसा कह सकते है कि ये असुर है ! और ये देवताओ से मित्रता नही रखते ! यदी इनका उच्चारण जिवन मे ज्यादा किया जाये तो जिवन नर्क हो जाता है आसुरिक हो जाता है ! इनमे सही देवता का चयन आवश्यक है!! 
किन्तु हमारा विषय मन्त्र साधना है हम अपने विषय पे वापस आते है!! 
!! मन्त्र साधन विधि !! 
आशा है मंत्रो से देवताओ का संबंध आप समझ चुके होगे! 16 मातृ्काये जिनकी चर्चा प्रारंभ मे हो चुकी है उनके बिना कोई भी देव अपनी उपस्थिति नही रख सकता जैसे क्+अ= क,क्+आ= का क्रमश: इसि प्रकार अन्य भि!! अब यदि मन्त्र सिद्धि करने की आप अभिलाषा रकते है तो ईसि प्रकार हर शब्द को लिखे!! 
जैसे:- क का कि की .................क:!ख खा खि खी...............ख: !
इसि प्रकार पुरे देवताओ के शब्दो को 16 मातृ्काओए से योग करे !! इनहे लिख कर करे !!
एक एक अक्षर को 1100 बार जाप भी करे !! 
कुल 54 अक्षरो को 1100 बार 54x1100=59400 ये पुर्ण संख्या है!!
एक अक्षर गुणा 16 मातृ्का=16 
इसी प्रकार 38 गुणा 16 मातृ्का=608 
इससे किसि भी मंत्र का अत्किलन हो जाता है आवश्यक्ता पडने पर संकल्प ले किसि भि साधना के पुरव एक बार पुर्ण 54 अक्षरों का गति के साथ 11 बार जाप करे !! किन्तु जाप जितने बताये गये है अतने ही करे !!! उत्किलन के बाद मंत्र सिद्ध करने की विधि अलग है !
उदां –मंत्र राज का लेते है !" ऊँ ऎं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै" !!
इसमे ऎं का सवालाख जाप,
ह्रीं का सवा लाख जाप,
क्लीं का सवा लाख जाप,
चामुण्डाय़ै का सवालाख जाप 
विच्चै का सवा लाख जाप,और अंत मे पुर्ण मंत्र 
"ऊँ ऎं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै" का सवालाख जाप करे !!! 
इतनी मेहनत करने के बाद भी मात्र अनुभुतियो का स्तर प्रारंभ होता है !!! ये वैदिक विधि है इसके विपरित साबर मंत्रो का भी चलना है जो वैदिक से भी अधिक खतरनाक है !! जो गुरु गम्य एवं तिक्ष्ण है!!!इनका प्रयोग कितावो को पढ कर बिलकुल ना करे !!क्योकी इनकी काट किताबो मे नही होती आदेश नमो नम: !! किसि दिन हम बिज मंत्रों की परिचर्चा करेदे! कि ये कैसे सिद्ध होते है और ये मारक क्षमता क्यो रखते है ?? इसविधी कोप मेने सिद्ध करने मे 14 वर्शो का समय लगाया है!!! इसिलिये चमत्कार की आशा ना रखे !! कुछ गलत लिखने की आवस्था में आप मुझे क्षमा करे ! यदि कुछ समझ मे ना आयये तो मुझ से संपर्क करे मै आपकी सहायता करने हेतु तत्पर रहुगा !
आदेश नमो नम: !!
🚩जै श्री महाकाल🚩

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