#खण्डन -
#ब्रह्मा_जी_और_माँ_सरस्वती_पर_लगाया_मिथ्या_लांछन --
पीछे की पोस्ट में मैंने आपको बताया है कि , "परमपिता ब्रम्हा "को पूजा अर्चना सिर्फ पुष्कर में ही नही अन्य स्थानों पे होती आयी है ,जो निरन्तर अभी भी हो रही है तो ये कुतर्क की, ब्रम्हा को श्राप के कारण सिर्फ एक जगह (पुष्कर) में पूजा जयगा स्वतः मिथ्या सिद्ध हो जाता है ।
आज ब्रह्मा जी और माँ सरस्वती पर विधर्मियो द्वारा लगाया लांछन भी सिध्द करते है कि ये सिर्फ झूठ है जिसे सुनियोजित तरीके से सनातन को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया है --
#साहित्यिक_खण्डन -
इस खण्डन को करने से पहले कुछ चीज़ों को समझ लेते है --
1- #सरस्वती , गायत्री और सविता ये तीनो एक ही है जिसे विधर्मियो ने अलग अलग प्रचारित किया है कि सविता ब्रम्हा जी की पत्नी थी और गायत्री एक कन्या (जिसे ब्रम्हा जी ने यज्ञ के लिए पत्नी बना लिया) और सरस्वती उनकी पुत्री ।
इसको समझने के लिए निम्न श्लोक देखे -
पूर्वा भवति गायत्री, मध्यमा सावित्री, पश्चिमा स्नध्या सरस्वती ।
रक्ता गायत्री, श्वेता सावित्री, कृष्णा सरस्वती ॥ १२॥
(लक्षणं मीमांसा, अथर्ववेदो विचेष्टितं)
प्रथम में गायत्री वही बाद में सावित्री और वही सरस्वती है
पूषार्यम मरुत्वाँश्च ऋषयोऽपि मुनीश्वराः। पितरोनागयक्षाश्च् गन्धर्वाप्सरसा गणाः॥
ऋगयजु सामवेदाश्च अथर्वांिगरसानि च।
त्वमेव पञ्च भूतानि तत्वानि जगदीश्वरि॥
ब्राह्यी सरस्वती सन्ध्या तुरीया त्वं महेश्वरी।
त्वमेव सर्व शास्त्राणि त्वमेव सर्व संहिता।
पुराणानि च तंत्राणि महागम मतानि च॥
तत्सद् ब्रह्म स्वरूपा त्वं किञ्चित्सद सदात्मिका। परात्वरेशी गायत्री नमस्ते मातरम्यिके॥
-वशिष्ठ संहिता
पूषा, अर्यमा, मरुत, ऋषि, मुनीश्वर, पितर, नाग, यज्ञ, गंधर्व, अप्सरा, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, अंगिरस, पंचभूत, ब्राह्मी, सरस्वती एवं संध्या -हे महेश्वरी तुम ही हो। सर्व शास्त्र, संहिता, पुराण, तंत्र, आगम, निगम तथा और भी जो कुछ इस संसार में है सो हे ब्रह्मरूपिणी, पराशक्ति गायत्री तुम ही हो। हे माता तुम्हें प्रणाम है।
2 - #इनके जन्म के संदर्भ में जानकारी -
कुतर्की कहते है कि पद्मपुराण में इनका जन्म ब्रम्हा के मुख से है इन कुतर्कियो को कौन समझाए की वहाँ गायत्री मंत्र के उच्चारण की बात हो रही है ब्रम्हा के मुख से अब आते है जन्म पे -
देवीह्यकोऽग्र आसीत्। सैव जगदण्डमसृजत्...... तस्या एव ब्रह्मा अजीजनत्। विष्णुरजी जनत्...... सर्वमजी जनत्.....सैषा पराशक्तिः।
(वृहवृचोपनिषद)
सृष्टि के आरम्भ में वह एक ही देवी शक्ति थी। उसी ने यह ब्रह्माण्ड बनाया। उसी से ब्रह्मा उपजे। उसी ने विष्णु, रुद्र उत्पन्न किये। सब कुछ उसी से उत्पन्न हुआ। ऐसी है वह पराशक्ति।
स्वं भूमि सर्व भूतानाँ प्राणः प्राणवताँ तथा। धीः श्रीः कान्तिः क्षमा शान्ति श्रद्धा मेधा धृतिः स्मृतिः स्व मुद्गीथेऽघ्धं मात्रासि गायत्री व्याहृति स्तथा। -
(देवी. भा. 1-5)
तुम्हीं सब प्राणियों को धारण करने वाली भूमि हो। प्राणवानों में प्राण हो। तुम्हीं धी, श्री, कान्ति, क्षमा, शान्ति, श्रद्धा, मेधा, घृति, स्मृति हो तुम ही ओंकार की अर्धयात्रा उद्गीथ हो, तुम ही गायत्री व्याहृति हो।3 - अब उस मंत्र को देखते है जिसमे सरस्वती माँ को ब्रम्हा जी की पुत्री बताया गया है --
कथा भागवतमहापुराण में लिखा हुआ है कि ,
ब्रह्मा जी अपनी पुत्री सरस्वती पर कामासक्त हो गये थे –
"वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयम्भूर्हरतीं मनः।
अकामां चकमे क्षत्तः सकाम
इति नःश्रुतम्। वाचं–सरस्वती ,दुहितरं।।"
(भागवतमहापुराण)
शब्दार्थ – तन्वीं –सूक्ष्म अंग वाली थीं , अकामां कामभावशून्य, होने पर भी,मनः –मन को, हरतीं –आकर्षित करने वाली को ,स्वयम्भू – ब्रह्मा जी ने ,सकामः –कामभाव से ग्रस्त होकर, चकमे –चाहा ,क्षत्तः –हे विदुर जी ! इति –ऐसा नः -हमने ,श्रुतं
–सुना है.
#श्लोक_का_वास्तिविक_भाव -
1. सरस्वती जी ब्रह्मा जी की पुत्रीरूप से प्रकट हुईं –ऐसा कहीं उल्लेख नही है ।
2. भागवत में मानसी सृष्टि के उल्लेख में सनकादि से लेकर मरीचि आदि 10 पुत्रों का उल्लेख है पर सरस्वती जी का नहीं फिर ये ब्रह्मा जी की पुत्री कैसे हुईं ?
3. दूसरी बात यह कि चतुरानन अर्थात ब्रह्मा ने स्वयं कहा है कि "मेरी इन्द्रियां कभी भी कुमार्ग में नहीं जाती हैं –
" न मे हृषीकाणि पतन्त्यसत्पथे" – (भागवत पुराण)
यदि भगवती सरस्वती इनकी पुत्री होतीं तो उनके प्रति कामचेष्टा क्या कुमार्गगामिता नही होगी |
4. तीसरी बात यह कि , "चतुःश्लोकी भागवत" का ब्रह्मा जी को उपदेश करने के बाद स्वयं भगवान् ने इनसे कहा है कि "आप विविध कल्पों में जो भी सृष्टियां करोगे पर उसमें मोहित नहीं होगे –
"एतन्मतं समातिष्ठ परमेण समाधिना ।
भवान् कल्पविकल्पेषु न
विमुह्यति कर्हिचित् " –भागवत,3/12/36,
अतः भगवान् विष्णु और ब्रह्मा जी इन दोनों के वचनों से विरोध होने से तथा सरस्वती जी का ब्रह्मा जी पुत्रीरूप में कहीं उल्लेख न होने के कारण पूर्वोक्त "सरस्वती पुत्री को कामभाव से चाहा " ऐसा अर्थ करना सर्वथा अप्रामाणिक है । और बिना किसी प्रमाण के कुछ कहना मुर्खता होती है ।
#सरस्वती जी का ब्रह्मा जी की पत्नी होने में प्रमाण-
"इतीरीशेऽतर्क्ये–भागवत -10/13/57
इस श्लोकांश में "इरेशे "
की व्याख्या सर्वमान्य टीकाकार श्रीधर स्वामी लिखते हैं–
" इरा – सरस्वती, तस्या ईशे ब्रह्मणि ।
शब्दार्थ –इरा–सरस्वती ,तस्याः -उनके ,इशे –पति ,ब्रह्मणि –ब्रह्मा जी में अर्थात् साक्षात्स सरस्वती के स्वामी ब्रह्मा भी भगवान के विषय में मोहित हो सकते हैं तो हम जैसे तुच्छ प्राणियों की क्या बिसात ।
श्रीधर स्वामी के द्वारा किये गये "इरा –सरस्वती " इस अर्थ में महामहोपाध्याय वंशीधर जी धरणिकोष
का प्रमाण प्रसूतुत करते हैं –
"इरा सरस्वतीमद्यजलकामप्रदेषु च" ,
यहां कोषकार "इरा" शब्द के अर्थ में "सरस्वती जी का नाम सर्वप्रथम लिये गये हैँ ।
अतः सरस्वती जी सिर्फ ब्रह्मा जी की पत्नी ही हैं, पुत्री नहीँ |
पद्मपुराण में स्पष्टतया ब्रह्मा जी पत्नीरूप में सरस्वती का उल्लेख है।
◆◆भ्रान्ति के कारण ◆◆
उस श्लोक में "दुहितरं" शब्द से प्रसिद्द अर्थ "पुत्री को " लेकर यह भ्रान्ति फैली है
अतः 'दुहिता" शब्द किन किन अर्थो में प्रयुक्त होता है – यह सप्रमाण प्रस्तुत करते है –
"सुतानार्योSथ गवि दुहिता प्रोच्यते बुधै :"-वशींधरी ,
पुत्री , नारी और गौ में दुहिता शब्द का प्रयोग होता है – ऐसा विद्वान कहते है।
अब "वाचं दुहितरं तन्वी स्वयम्भूर्हर्ती मन: ।
अकामाम चकमे क्षत्त: सकाम इति न: श्रुतम ॥ – भागवत 3 /12 /28
श्लोक में आये "दुहितरं" शब्द का अर्थ "पुत्री" किया जाय या नारी (पत्नीस्वरूपा नारी ) ?
ऐसा संशय होने पर चुकी "सरस्वती जी" चतुरानन की पत्नी सप्रमाण सिद्ध हो चुकी है ।
अतः "पुत्री" अर्थ करना मात्र प्रज्ञापराध ही है ।
"पत्नीरूप नारी" अर्थ ही लेना चाहिए – इसी में पूर्वप्रदशित सभी प्रस्तुत शास्त्रो की सहमति और भगवान् विष्णु तथा ब्रह्मा जी के वचनों से अविरोध होगा |
इसी पद्धति अनुसरण "प्रजापति: स्वाम दुहितरमगमत " इस श्रुति के अर्थ में भी करना चाहिए ।
#विशेष -
सत्यता यही है की " सरस्वती जी ब्रह्मा जी की पत्नी है "
पुत्री होने का कही कोई उल्लेख नहीं है।
यह हिंदी भावार्थ करने वाले विद्वानों की गलतियां है – चूँकि पुराण बहुत ही बड़ा विषय है तो जल्दबाजी में सीधा -सीधा जो लोगो समझ में आया , वैसे ही हिंदी भाष्य कर दिया।
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आचार्य मण्डन मिश्र
एक एक्टिव लिसनिंग होती है और दूसरी होती है पैसिव लिसनिंग। एक्टिव लिसनिंग (Active listning) में आप ध्यान से सुन रहे होते हैं, जो सुना उसपर सवाल करते हैं, सहमती-असहमति जैसे विचार भी पैदा होते हैं। ऐसा पैसिव लिसनिंग (Passive listning) में नहीं होता। ये वैसा है जैसा खाना खाते वक्त मेरे घर में टीवी चल रहा हो और हम अपनी माँ से बात भी कर रहे हों। या तो मेरा ध्यान टीवी पर होगा और हम माँ की बात ध्यान से नहीं सुन रहे होंगे। या ऐसा भी हो सकता है कि मेरा ध्यान बातचीत पर हो और टीवी में क्या आया ये नजर तो आये, मगर उसपर हम कोई ध्यान न दे पायें।
अगर आपके घर में सिर्फ दुर्गा सप्तशती बज रही हो और आप साथ साथ और दूसरे काम भी कर रहे हों, तो कुछ ऐसा ही होगा। ज्यादा संभावना इसी बात की है कि संस्कृत न आने के कारण आपको उसमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा होगा। आप पैसिव लिसनिंग जैसा ही कुछ कर रहे होंगे। बेहतर है कि जितनी देर आप इसे ऑडियो में भी बजाएं, उतनी देर साथ साथ इसे किताब से पढ़ते रहें ताकि आपका ध्यान वहीँ हो। कहीं और ध्यान जाने पर आपको पता चल जाए कि आपका ध्यान, आपकी एकाग्रता कितनी जल्दी टूटती है। जहाँ तक दुर्गा सप्तशती का सवाल है, ये मेधा नाम के ऋषि सुरथ और समाधी को सुना ही रहे होते हैं।
ये कहना कि सुनने से कोई फायदा नहीं होगा, पूरी तरह सही नहीं। चूँकि मेधा ऋषि सुना ही रहे होते हैं, इसलिए सुनने का भी असर तो होगा। बस ये ध्यान रखिये कि जब मेधा ऋषि के कद के लोग सामने बैठे सुना रहे हों तो सुनने वालों के पास पैसिव लिसनिंग में जाने का विकल्प ही नहीं होता। अगर आप सुनने जा रहे हैं, तो आपको अपनी एकाग्रता का ध्यान खुद रखना होगा। साथ साथ पढ़ते रहना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। किसी भी स्थिति में कुछ भी न करने से कुछ करना बेहतर होता है। इसलिए अगर पाठ नहीं कर पा रहे सिर्फ सुन रहे हैं तो कोई फायदा नहीं हो रहा ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इससे ही मिलता जुलता सा एक सवाल आता है कि अगर कुछ भी समझ न आये तो क्या? संस्कृत नहीं आती इस वजह से बहुत थोड़े से हिस्से समझ आएं ऐसा हो सकता है। पाठ ध्यान से करने पर नजर आ जाएगा कि इस ग्रन्थ में लिखा है कि भगवान विष्णु को ये दो तिहाई समझ में आता है, ब्रह्मा इसके आधे की समझ रखते हैं और वेदव्यास इसे करीब एक चौथाई समझते हैं। इसे समझने का दावा कुछ अंगूठा चूसने वाले बच्चे कर सकते हैं। कभी कभी धूप में बाल पका बैठे कुछ लोग भी ऐसे दावे करते मिल जायेंगे। उनकी बातों पर ध्यान देने कि जरूरत है या नहीं ये समझने के लिए आपका स्वविवेक ही काफी है।
ये याद रखिये कि पेरासिटामोल जैसी दवाई को चूरन समझ कर फांक लेने से उसका असर चूरन वाला नहीं होता। वो दर्दनाशक, शरीर का तापमान कम करने जैसे असर ही दिखायेगा। बच्चे अगर तेंदुलकर, धोनी बनने के मकसद से नहीं, सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से खेल रह हों तो एक्सरसाइज, कसरत, समाज में घुलने मिलने, टीम बनाने जैसी चीजें तो सीखेंगे ही। बरसों से प्रयोग की जा रही चीज़ों में कोई साइड इफ़ेक्ट जैसा नुकसान नहीं होता ये अनुभव से देखा जा सकता है। कुछ न करने के बदले सुनने से शुरुआत करने का एक फायदा ये भी हो सकता है कि आपके घर में इसे बजते सुनने पर बच्चे पूछें कि ये है क्या और फिर उन्हें सिखाने के लिए आपको खुद सीखना पड़े।
संस्कृति और धर्म का ज्ञान एक पीढ़ी आगे बढ़ सके ये हर लिहाज से फायदेमंद ही है। आपको नुकसान नजर आते हों तो बताइये। जिसके बारे में कुछ भी पता ही न हो उसके बारे में सवाल भी कितने कर पायेंगे?
✍🏻
आनन्द कुमार
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