मित्रों आज मंगलवार है, हनुमानजी महाराज का दिन है, आज हम इन्हीं की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!!!!!
कलयुग में श्री हनुमानजी उपकारी देव हैं, सब प्रकार से जीवात्मा को समझाकर हरि चरणों में ले आना यही हनुमानजी की बड़ी खूबी है, और यहीं जीव के उपर सबसे बड़ा उपकार है, भोग-वासना में डूबा हुआ जीव भगवान् के चरणों में पहुँच जाये इससे बडा और जीव के लिये क्या उपकार हो सकता है।
इहाँ पवनसुत ह्रदय बिचारा, राम काज सुग्रीव बिसारा।
निकट जाइ चरनन्ह सिर नावा, विधि तेहि कहि समुझावा।।
पहले हमारे पास धन-वैभव आये तब तीर्थो में जायेंगे, तब संतो की सेवा करेंगे, तब मन्दिरों का दर्शन करेंगे, तब भजन, पाठ करेंगे इसी में सारा जीवन डूब जाता है, न इधर के रहते है और न उधर के, सज्जनों! राम का संग पहले मिले तो धन भी कमाया जा सकता है, और धन का सदुपयोग भी किया जा सकता है, अगर सीधे धन कमाया तो यहीं धन हमें डुबा देता है।
अर्थ ही अनर्थ कराता है, स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी बहुत अच्छा उदाहरण देते थे कि देखो भाई जगत मे रहते हो, रहना तो जगत में है जगत को छोडा तो नही जा सकता पर कैसे रहना- जैसे कटहल के साथ व्यवहार करते हो ऐसे रहना, कटहल का साग बनानेवाले थोड़ी चतुराई करते हैं, पहले हाथों मे तेल लगाते हैं फिर कटहल को काटते है।
अगर तेल नही लगाया तो इसका दूध हाथों पर चिपक जाता है और वह आसानी से छूटता भी नही और यदि तेल लगा लें तो फिर कटहल से कोई इनफेक्शन नही होता, दोस्तों! संसार कटहल की तरह है इसको काटकर हल किया जाता है, हम लोग संसार के प्रत्येक काम को चाटकर हल करना चाहते है, इसको काटकर हल करना भी चाहिये और इसका जो दूध अपने हाथों पर न चिपके इसके लिए पहले श्रद्धा का तेल लगा लगा देना चाहियें।
अगर श्रद्धा, प्रेम, स्नेह का तेल लगा लोगे तो फिर कटहल रूपी संसार का प्रभाव आएगा ही नही, पहले भगवान् से मिलिये, फिर भोगों की ओर जाइये, हम भोगों को पहले मिलते है और भगवान् की ओर बुढ़ापे में जाना चाहते हैं, यही भ्रम हमें भगवान् से दूर कर देता है, विधार्थी जीवन से रिटायर्ड जीवन तक केवल भोग का जीवन, यानी सुविधाजनक जीवन, यह मानव का लक्षण तो नहीं?
अनुज समेत देहु रघुनाथा।
निसिचर वध मैं होब सनाथा।।
सज्जनों! विश्वामित्रजी जब रामजी और लक्ष्मणजी को मांगने आये तो दशरथजी ने कहा कि मुझे ले चलो, मेरी सेना ले चलो, राम को देते नही बनता तो विश्वामित्रजी ने कहा राजन भगवान् पर मुरझाया हुआ पुष्प नही चढाया जाता, ताजा खिला हुआ पुष्प चढाया जाता है।
हमारे जीवन की रचना बदल गई, हम खिली हुई जवानी को भोगों को समर्पित करते है और मुरझायें हुए बुढापे को भगवान् की ओर ले जाते हैं, जिसने जवानी में भजन कर लिया बुढ़ापे मे वह भजन काम आता है जिसने जवानी में शक्ति अर्जित कर ली उसको बुढ़ापे में कराहना नही पडता, इसलिये पहले राम फिर आराम।
जैसी कृपा हनुमानजी ने सुग्रीव के ऊपर कर दी थी ऐसी कृपा हनुमानजी हमारे ऊपर भी करे, विभीषण बहुत दुखी धे लेकिन पवन पुत्र की कृपा पाकर धन्य हो गयें, प्रभु के चरणों की सेवा के साथ राजगद्दी भी दिलवाई, हनुमानजी से मिलने के पहले सुग्रीव और विभीषण की क्या हालत थी जो आप सभी जानते हो।
सुख और दुःख कर्म का खेल है, लेकिन श्रीहनुमानजी की कृपा हो जाये तो व्यक्ति के कर्म और किस्मत दोनों बदल जाते हैं, आज कल तो कोई बीमार व्यक्ति भी अगर कोई जा रहा है और आप अगर उससे मिले और आपने उससे पूछा कि आप कैसे हैं तो वह बोलेगा ठीक है, आनन्द ही आनन्द है, सज्जनों! भले घर में कलह है, क्लेश है, दु:ख है पर आप पूछेंगे कि घर में कैसा चल रहा है तो वह कहेगा बहुत बढ़िया सब ठीक चल रहा है।
एक सामान्य व्यक्ति भी अपने रोने का दु:खडा रोना नही रोता लेकिन विभीषण जैसा व्यक्ति हनुमानजी ने जब पूछा कि कैसे हो, विभीषण बोलते है "सुनहु पवनसुत रहनि हमारी, जिमी दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी", रोते हुयें अपनी व्यथा को बयाँ कर रहे थे, तो सज्जनों! हम हनुमानजी से अपना रोना रोकर सब प्रकार धर्ममय् कार्यों के लिये ऊर्जा और हौसला तो मांग ही सकते हो, भक्ति और शक्ति तो मांग ही सकते हो।
आज भोतिकतावादी युग में मानव को प्रभु चरणों तक ले जा सकते हैं तो वे हैं केवल हनुमानजी, इसलिये दोस्तों हम पहले ब्रह्म से मिले और फिर भोग से, ब्रह्म की ओर जाने से जीवन दिव्य बन जातi है, परोपकार और सेवा की भावना जाग्रत होती है, और पहले भोग की भागे तो जीवन नर्क बन जाता है, जहां वासना और लोभ व्यक्ति को अधोगति की ओर ले जाता है।
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