Tuesday, January 29, 2019

प्रतीकात्मक अर्द्धनारीश्वर 'पुरुष और प्रकृति' रहस्य

सृस्टि तत्व में शिव के साथ शक्ति की सम्मिलित स्वरूप है--  प्रतीकात्मक अर्द्धनारीश्वर 'पुरुष और प्रकृति' रहस्य :---
------------------------------------------- ------------
   【भावार्थ के साथ अष्टक स्तोत्र】

              शक्ति के बिना शिव 'शव' हैं। शिव और शक्ति, पुरुष और प्रकृति स्वरूप; एक दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी सफेदी । शिव में 'इ' कार ही शक्ति हैं । 'शिव' से 'इ' कार निकल जाने पर 'शव' ही रह जाता है । शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की सहायता से शिव का साक्षात्कार सम्भव नहीं होता है । शिव-शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती हैं अर्धनारीनटेश्वर स्तुति की आराधना करने से।।

               शिव महापुराण में उल्लिखित है - ''शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी।।"---- इस श्लोक की भावार्थ है– "समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता है। उन्हीं भगवान अर्द्ध नारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त हैं।।" इसलिए ज्ञानी भक्तों ने सांसारिक दुःख से मुक्त होकर सुख- सम्पद- सौभाग्य और सब से बढ़कर 'शांति' प्राप्ति के लिए नित्य शुद्ध मन मे "अर्द्धनारीश्वर अष्टक स्तोत्र" पढ़ते हैं।।

         ।।अर्द्धनारीश्वर अष्टक स्तोत्र।।
            -------------------------------

चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै   
                    कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय 
         नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।(१)

       (आधे शरीर में चम्पापुष्पों- सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकर जी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वती जी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै   
                   चितारज:पुंजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय
          नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(२)

       (पार्वती जी के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता- भस्म का पुंज लगा है। पार्वती जी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै   
               पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: 
                 शिवायै च नम: शिवाय।।(३)

        (भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर व पार्वती जी प्रदीप्त रत्नों के उज्जल कुण्डल धारण किए हुई हैं। और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वती जी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

विशालनीलोत्पललोचनायै  
                   विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय
          नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(४)

            (पार्वती जी के नेत्र प्रफुल्लित, नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। पार्वती जी के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

मन्दारमालाकलितालकायै  
                कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय
         नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(५)

            (पार्वती जी के केशपाशों में मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और शंकर जी के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है। पार्वती जी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप में सुशोभित हो हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै   
                     तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय
          नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(६)

         (पार्वती जी के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिए हुए चमकती दीखती है। पार्वती जी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै  
                  समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे
          नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(७)

           (भगवती पार्वती लास्य- नृत्य करती हैं और उससे जगत की रचना होती है। और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है। पार्वती जी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै  
                      स्फुरन्महापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय 
          नम: शिवायै च नम: शिवाय।।(८)

           (पार्वती जी प्रदीप्त रत्नों के उज्जल कुण्डल धारण कीए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वती जी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वती जी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।)

              ।।स्तुति का फल।।
               -----------------------

एतत् पठेदष्टकमिष्टदं 
                 यो भक्त्या स मान्यो
                                  भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं
                भूयात् सदा तस्य
                                  समस्तसिद्धि:।।

          (आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट सिद्धि करने वाला हैं । जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है। वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।।)

          ।। इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्द्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।

           शक्ति के साथ शिव सब कुछ करने में समर्थ हैं, लेकिन शक्ति के बिना शिव स्पन्दन भी नहीं कर सकते। अत: ब्रह्मा, विष्णु आदि सबकी आराध्या परम शिव- शक्ति को कोई भी पापी व्यक्ति प्रणाम या स्तवन नहीं कर सकता। क्यों कि बड़े पुण्य से ही शिव शक्ति की स्तुति का पुण्य संयोग मिलता है।।

        ॐ नमः शिवाय--- 
                  श्री पार्वती दिव्येयी नमः।।
        श्री हरिहर शरणम।। ॐ शांतिः।।

No comments:

Post a Comment

im writing under "Comment Form Message"