आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र (प्रशासनिक सेवा) वेदाचार्य ज्योतिषाचार्य आयुर्वेदरत्न:
विश्वभर में चल रहे वर्ग विद्वेष का शमन करना केवल सनातन धर्म के ही बस कि बात है :-
अनन्त श्री विभूषित श्री ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य भगवान के अमृतवचन :-
विश्व भर में चल रहे वर्ग विद्वेष का शमन सनातन धर्म के बस कि ही बात है कि इन सब विसंगतियों को दूर कर सके क्योंकि शिक्षा,रक्षा,अर्थ,सेवा के प्रकल्प इतने सुदृढ़ हैं सनातन धर्म में यहां तक कि पेड़ पौधे के साथ भी हम न्याय बरतते हैं । ऐसी स्थिति में वर्ग विद्वेष आदि को दूर करने के लिये सनातन वैदिक आर्य मनीषियों ने जो
" वसुधैव कुटुम्बकम "
" सर्वे भवन्तु सुखिन: "
" सर्वेषां मंगलम भूयात "
" स्वस्त्यस्तु विश्वस्य "
" सर्वं खल्विदं ब्रह्म "
इत्यादि जो उद्दात्त सिद्धान्त दिया उसको मानने पर ये वर्ग विद्वेष इत्यादी का शमन हो सकता है कम से कम सज्जन उत्पीड़ित होने से बच सकते हैं और सज्जन दुर्जनता कि ओर भागने के लिये बाध्य नहीं हो सकते। और दुर्जनों पर भी नियंत्रण करने का बल और वेग सज्जनों में आ सकता है। दुर्जनों के भी कल्याण का मार्ग सनातन धर्म के अनुसार सिद्धान्त के अनुसार ही संभव है।
" आत्मन: प्रतिकूलानी परेषां न समाचरेत "
यह पद्म पुराण का वचन है साथ ही साथ भगवदगीता के छठे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण चन्द्र का कथन है
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुना:।
सुखं वा यदि वा दुखं स योगी परमो मत:।।
मानवाधिकार कि सीमा में यह तथ्य समझने कि आवश्यकता है दूसरों से जैसा व्यवहार हम अपने प्रति हम चाहते हैं हमारी बुद्धि कि बलिहारी है दूसरों के प्रति हम वैसा व्यवहार करें।
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