महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिये घोर तप कर रहे थे !
उन्होंने अपने शरीर को काफी कष्ट दिया ;घने वनो में कड़ी साधना की पर आत्म-ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई !एक दिन निराश हो बुद्ध सोचने लगे -मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया अब आगे क्या कर पाऊंगा ?
निराशा अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें क्षुब्ध कर दिया !कुछ ही क्षणों बाद उन्हें प्यास लगी !वे थोड़ी दूर स्थित एक झील पर पहुंचे !वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नन्ही-सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब गये है !पहले तो वह गिलहरी जड़वत बैठी रही फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई !अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी !ऐसा वह बार-बार करने लगी !
बुद्ध सोचने लगे -इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खतापूर्ण है क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी ?किंतु गिलहरी यह प्रयास लगातार जारी रहा !बुद्ध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो कि यह झील कभी खाली होगी या नही यह मैं नहीं जानती किंतु मैं अपना प्रयास नहीं छोड़ूंगी !
अंततः उस छोटी सी गिलहरी ने भगवान बुद्ध को अपने लक्ष्य-मार्ग से विचलित होने से बचा लिया !वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सुखा देने के लिये दृढ़ संकल्पित है तो मुझमें क्या कमी है ?मैं तो इससे हजार गुणा अधिक क्षमता रखता हूँ !
यह सोचकर गौतम बुद्ध पुनः अपनी साधना में लग गये और एक दिन बोधि-वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ !
यदि हम प्रयास करना न छोड़ें तो एक न एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है !
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