Tuesday, January 29, 2019

माघ माहात्म्य नवाँ एवं दसवां अध्याय

माघ माहात्म्य नवाँ एवं दसवां अध्याय
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
यमदूत कहने लगे मध्यान्ह के समय आया अतिथि, मूर्ख, पंडित, वेदपाठी या पापी कोई भी हो ब्रह्म के समान है. जो रात्रि के थके हुए भूखे ब्राह्मण को अन्न-जल देता है, मध्यान्ह के समय जिसके घर आता हुआ अतिथि निराश नहीं जाता वह स्वर्ग का वासी होता है. अतिथि बराबर कोई धन-सम्पत्ति तथा हित नहीं है. बहुत से राजा और मुनि अतिथि सत्कार से ब्रह्म लोक को प्राप्त हुए हैं।

जो एक समय आलस्य से भी अतिथि को भोजन करा दे वह यमद्वार नहीं देखता. केशरी ध्वज से वैवस्वत देव ने कहा था कि जो कोई इस कर्मभूमि मृत्युलोक से स्वर्गलोक जाने की इच्छा रखता हो वह अन्न का दान करे. दूत कहता है कि यमराज कहते हैं अन्न के बराबर दूसरा ओर कोई दान नहीं है. जो गर्मियों में जल, सर्दी में ईंधन और सदैव अन्न का दान करते हैं वह कभी यम के दुख नहीं उठाते. जो अपने किए हुए पापों का प्रायश्चित करता है वह नर्क को नहीं देखता और प्रायश्चित न करने वाला मनुष्य नरक में जाता है. जो काया, वाचा और मन से किए हुए पापों का प्रायश्चित करता है वह देव और गंधर्वों से शोभित स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

जो नित्य ही व्रत, तप, तीर्थ करते हैं और जितेन्द्रिय हैं वह भयंकर यम को नही देखते हैं. नित्य धर्म करने वाला दूसरे का अन्न, भोजन और दान त्याग दे. नित्य स्नान करने से बड़े-बड़े पाप नाश होकर यम को नहीं देखता. बिना स्नान पवित्रता कैसे हो सकती है? जो मनुष्य पर्व के समय चलते जल में स्नान करते हैं वह बुरी योनि नहीं पाते, न ही नरक में जाते हैं।

माघ मास में प्रात: स्नान करने वाले मनुष्यों को नियमपूर्वक तिल, पात्र और तिल कमल का दान करना चाहिए. यमदूत कहते हैं कि हे विकुंडल! पृथ्वी, सोना, गौ आदि परम दान करने वाला स्वर्ग से नहीं लौटता. बुद्धिमान, पुण्य तिथियों, व्यतिपात, संक्रांति आदि को थोड़ा-सा दान करके भी बुरी गति को नहीं प्राप्त होता. सत्यवादी, मौन रहने वाला, मीठा बोलने वाला, क्षमाशील, नीतिवान, किसी की निंदा न करने वाला, सब प्राणियों पर दया करने वाला, पराये धन को तृण के समान समझने वाला मनुष्य कभी नर्क को नहीं भोगता।

माघ माहात्म्य (दसवाँ अध्याय)
🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔸
यमदूत कहने लगे कि हे वैश्य! एक बार भी गंगाजी में स्नान करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर अत्यंत शुद्ध हो जाता है. जो मनुष्य गंगाजी को दूसरे तीर्थों के समान समझता है वह अवश्य नर्क में जाता है. भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई गंगाजी के पवित्र जल को श्रीशिवजी अपने मस्तक में धारण करते हैं. वह ब्रह्मा जो संदेहरहित प्रकृति से अलग और निर्गुण हैं ब्रह्माण्ड में उसकी समानता किससे हो सकती है. गंगाजी का नाम हजारों योजन दूर से ही लेने वाला नर्क में नहीं जाता इसलिए मनुष्य को अवश्यमेव गंगाजी में स्नान करना चाहिए।

हे वैश्य! जो ब्राह्मण दान लेने का अधिकारी होकर भी दान नहीं लेता वह आकाश के नक्षत्रों में चंद्रमा के समान है. जो कीचड़ से गौ को निकालता है, जो रोगी की रक्षा करता है या जो गौशाला में मरता है वह आकाश में तारा होता है. प्राणायाम करने वाले मनुष्य सदैव उत्तम गति को प्राप्त होते हैं। प्रात: समय स्नान के पश्चात जो सोलह प्राणायाम करते हैं वह घोर पापों से बच जाते हैं. जो पराई स्त्री को माता समान मानते हैं वह यम की यातना को नहीं भोगते।

जो मन से भी कभी पर-स्त्री का चिंतन नहीं करता वह दोनों लोकों को अपने आधीन करता है. जो पराये धन को मिट्टी के समान समझता है वह स्वर्ग में जाता है. जिसने क्रोध को जीत लिया मानो उसने स्वर्ग को ही जीत लिया. जो माता-पिता की सेवा देवता तुल्य करता है वह यमद्वार नहीं देखता और जो गुरु की सेवा करते हैं वह ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं. शील की रक्षा करने वाली स्त्री धन्य है। शील भंग करने वाली स्त्री यमलोक जाती है. जो वेदों और शास्त्रों को पढ़ते हैं या पुराण और संहिता पढ़ते और सुनते हैं तथा जो स्मृति का व्याख्यान और धर्मशास्त्र समझते हैं या जो वेदांत में लीन रहते हैं वह पापरहित होकर ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं।

जो अज्ञानियों को वेदशास्त्र का ज्ञान देते हैं वे देवताओं से भी पूजित होते हैं. यमदूत ने कहा कि वैश्य श्रेष्ठ यमराज ने हमको वही आज्ञा दे रखी है कि तुम किसी वैष्णव को मेरे पास मत लाओ. हे वैश्य्! पापी लोगों को इस संसार रुपी नर्क को पार करने के लिए भगवान की भक्ति के सिवाय दूसरा ओर कोई उपाय नहीं। भगवान की भक्ति न करने वाले मनुष्य को चांडाल के समान समझना चाहिए।

भगवान के भक्त अपने माता-पिता दोनों के कुलों को तार देते हैं और उनको नर्क में नहीं रहने देते और जो मनुष्य वैष्णव का भोजन करते हैं वे भी भगवान की कृपा से श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं। बुद्धिमान को सदैव वैष्णव का अन्न खाना चाहिए. इससे बुद्धि पवित्र होकर मनुष्य पाप नहीं करता।

"गोविंदाय नम:" इस मंत्र का जाप करता हुआ जो मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है वह परम धाम को प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है. जो "ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय: मनमोनारायण" इस द्वादशाक्षर मंत्र या ऊँ अष्टाक्षर मंत्र का जाप करता है उसके ब्रह्म इत्यादि बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं ।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

No comments:

Post a Comment

im writing under "Comment Form Message"