हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
जाने वेदों में रत्ती भर भी मिलावट क्यों नही हो सकी ? जब कोई सनातनी ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी किसी ने मिलावट की होगी....परन्तु ऐसा नही हैं क्यों नही हैं जानते हैं..वेदों को सुरक्षित रखने के लिए उनकी अनुपुर्वी, एक-एक शब्द और एक एक अक्षर को अपने मूल रूप में बनाये रखने के लिए जो उपाय किये गए उन्हें आज कल की गणित की भाषा में 'Permutation and combination' (क्रमपरिवर्तन और संयोजन)
कहा जा सकता हैं.. वेद मन्त्र को स्मरण रखने और उनमे एक मात्रा का भी लोप या विपर्यास ना होने पाए इसके लिए उसे 13 प्रकार से याद किया जाता था.... याद करने के इस उपाय को दो भागों में बांटा जा सकता हैं.... प्रकृति-पाठ और विकृति-पाठ.... प्रकृति पाठ का अर्थ हैं मन्त्र को जैसा वह है वैसा ही याद करना.... विकृति- पाठ का अर्थ हैं उसे तोड़ तोड़ कर पदों को आगे पीछे दोहरा-दोहरा कर भिन्न-भिन्न प्रकार से याद करना.... याद करने के इन उपायों के 13 प्रकार निश्चित किये गए थे--- संहिता-पाठ, पद-पाठ, कर्म-पाठ, जटा-पाठ, पुष्पमाला-पाठ, कर्ममाला-पाठ, शिखा-पाठ, रेखा-पाठ, दण्ड-पाठ, रथ-पाठ, ध्वज-पाठ, धन-पाठ और त्रिपद धन-पाठ.... पाठों के इन नियमों को विकृति वल्ली नमक ग्रन्थ में विस्तार से दिया गया हैं.... परिमाणत: श्रोतिय ब्राह्मणों (जिन्हें मैक्समूलर ने जीवित पुस्तकालय नाम से अभिहित किया हैं) के मुख से वेद आज भी उसी रूप में सुरक्षित हैं जिस रूप में कभी आदि ऋषिओं ने उनका उच्चारण किया होगा... विश्व के इस अदभुत आश्चर्य को देख कर एक पाश्चात्य विद्वान् ने आत्मविभोर होकर कहा था की यदि वेद की सभी मुद्रित प्रतियाँ नष्ट हो जाएँ तो भी इन ब्राह्मणों के मुख से वेद को पुनः प्राप्त किया जा सकता हैं.... मैक्समूलर ने 'India-What can it teach us' (प्रष्ठ 195) में लिखा हैं ---- आज भी यदि वेद की रचना को कम से कम पाच हजार वर्ष (मैक्समूलर के अनुसार) हो गए हैं... भारत में ऐसे श्रोतिय मिल सकते हैं जिन्हें समूचा वैदिक साहित्य कंठस्थ हैं .... स्वयं अपने ही निवास पर मुझे ऐसे छात्रों से मिलने का सोभाग्य मिला हैं जो न केवल समूचे वेद को मौखिक पाठ कर सकते हैं वरन उनका पाठ सन्निहित सभी आरोहावरोह से पूर्ण होता हैं.... उन लोगो ने जब भी मेरे द्वारा सम्पादित संस्करणों को देखा और जहाँ कही भी उन्हें अशुद्धि मिली उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के उन अशुद्धियों की और मेरा ध्यान आकर्षित किया....
मुझे आश्चर्य होता है उनके इस आत्मविश्वास पर जिसके बल पर वे सहज ही उन असुधियों को ध्यान में ला देते थे जो हमारे संस्करणों में जहाँ-तहाँ रह जाती थी.... वेदों की रक्षा के लिए किये गए इन प्रयत्नों की सराहना करते हुए मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ 'Origin of Religion' (धर्म की स्थापना) के प्रष्ठ 131 पर लिखा हैं।
"वेदों का पाठ हमें इस तरह की सटीकता के साथ सौंप दिया गया है कि काम की उचित समझ में शायद ही कभी पढ़ा जा रहा है या पूरे ऋग्वेद में अनिश्चित पहलू भी है।"
Regeda Vol. I भाग XXV में मैक्समूलर ने पुनः लिखा (जहां तक हम निर्णय लेने में सक्षम हैं, हम शब्द की सामान्य अर्थ में वैदिक भजनों में विभिन्न रीडिंगों की शायद ही कभी बात कर सकते हैं। संग्रह पांडुलिपियों से इकट्ठा होने के लिए विभिन्न रीडिंग, अब हमारे लिए सुलभ हैं। ")
वेदों को शुद्धरूप में सुरक्षा का इतना प्रबंध आरम्भ से ही कर लिया गया था की उनमे प्रक्षेप करना संभव नही था....
इन उपायों के उद्देश्य के सम्बंध में सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ.भंडारकर ने अपने 'India Antiquary' के सन् 1874 के अंक में लिखा था।
"The object of there different arrangements is simply he most accurate preservation of the sacred text of the Vedas.
( "उनकी विभिन्न व्यवस्थाओं का उद्देश्य वेदों के पवित्र पाठ का सबसे सटीक संरक्षण है।)
वेदों के पाठ को ज्यों का त्यों सुरक्षित रखने के लिए जो दूसरा उपाय किया गया था वह यह था की वेदों की छंद- संख्या, पद-संख्या, तथा मंत्रानुक्र्म से छंद, ऋषि, देवता को बताने के लिए उनके अनुक्रमणियां तैयार की गई जो अब भी शौनकानुक्रमणी, अनुवाकानुक्रमणी, सुक्तानुक्रमणी, आर्षानुक्रमणी, छंदोंनुक्रमणी, देवतानुक्रमणी, कात्यायनीयानुक्रमणी, सर्वानुक्रमणी, ऋग्विधान, ब्रहद्देवता, मंत्रार्षार्ध्याय, कात्यायनीय, सर्वानुक्रमणी, प्रातिशाख्यसूत्रादि, के नामों से पाई जाती हैं,साथ ही समस्त शिक्षा ग्रन्थ
....इन अनुक्रमणीयों पर विचार करते हुए मैक्समूलर ने `Ancient Sanskrit Literature' के प्रष्ठ 117 पर लिखा है की ऋग्वेद की अनुक्रमणी से हम उनके सूक्तों और पदों की पड़ताल करके निर्भीकता से कह सकते हैं की अब भी ऋग्वेद के मन्त्रों शब्दों और पदों की वही संख्या हैं जो कभी कात्यायन के समय में थी।
इस विषय में प्रो. मैकडानल ने भी स्पष्ट लिखा हैं की आर्यों ने अति प्राचीन कल से वैदिक पाठ की शुद्धता रखने और उसे परिवर्तन अथवा नाश से बचाने के लिए असाधारण सावधानता का उपयोग किया हैं.... इसका परिणाम यह हुआ की इसे ऐसी शुद्धता के साथ रखा गया है जो साहित्य के इतिहास में भी अनुपम हैं।📚🖍🙏🙌
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
No comments:
Post a Comment
im writing under "Comment Form Message"