*🎌धन्ना और त्रिलॅचन🎌*
*धन्ना गुरु था और त्रिलोचन शिष्य था। त्रिलोचन ब्राह्मण और धन्ना जाटों के वंश में आया था। धन्ना न सोचा कि त्रिलोचन को जाति का अंहकार है। पर उसे निकालना अर्थात तारना भी अवश्य है। चलो, इसके आगे मूर्ख बन जायें। यह सोचकर एक दिन जब त्रिलोचन ठाकुरों की पूजा कर रहा था तो उससे बोला कि दादा ! पूजा है तो बडी अच्छी, क्या एक ठाकुर मुझे भी दे सकते हो? त्रिलोचन ने जबाब दिया कि हाँ ! एक दुधारु गाय ला दे। धन्ना ने कहा कि दादा ! बहुत अच्छा! घर जाकर गाय ले आया। त्रिलोचन ने यह सोचकर कि यह मूर्ख है, इसे क्या पता कि ठाकुर क्या होता है? एक दुसेरी (दो सेर का) बाट लाकर उसके आगे पटक दिया और कहा कि जा ले जा।*
*धन्ने को बाट का क्या करना था ? लाकर रख दिया। एक दिन त्रिलोचन मूर्ति के मुँह से भोग लगाकर खुद खाने लगा तो धन्ना ने कहा, "दादा, ठाकुर के साथ ठगी ?" त्रिलोचन ने कहा, "मै तेरा मतलब नही समझा।" धन्ना ने कहा, "तू ठाकुर को कुछ खिलाता नही। मेरा ठाकुर तो खाता, पीता, हल जोतता, रहट चलाता , मतलब यह कि मेरे सब काम करता है।*
*त्रिलोचन ने मज़ाक समझा। उसने पूछा कि मुझे दिखायेगा ? धन्ना ने कहा, "मेरे साथ चल, तुझे अभी दिखाता हूँ।" यह कहकर त्रिलोचन को कुएँ पर ले गया। कुएँ की रहट चल रही थी। धन्ना ने कहा, "देख, वह मेरी गाडी पर बैठा हुआ है।" त्रिलोचन के कहा, "मुझे तो नही दिखता।" अब जब डाक्टर फोडे को चीरता है तो उसकी कोशिश होती है कि जरा-सा भी मवाद बाकी न रह जायें।*
*ठीक इसी प्रकार धन्ना ने त्रिलोजन को झिडकना शुरू किया कि तुझमें यह दोष है! यह कमी है! यह नुक्स है ! उसके बाद उपदेश देना शुरू कर दिया, जैसा कि राजा जनक ने सुखदेव के साथ व्यवहार किया था। आखिर जब सब कुछ साफ हो गया, तो उसे दिखा दिया।*
*अगर जीव पाँच तत्वों वाला (मनुष्य) होकर एक तत्व वाले पत्थर को पूजें तो कितने अफसोस की बात है। एक तत्व वाला तो कुछ बोलेगा ही नही। सो सब धर्मों में कोई निकृष्ट धर्म है तो पत्थर पूजा है।*
*सोचो, जिस कारीगर ने छाती पर पैर रखकर छेनियाँ मारी, पैरों के नीचे रौदा, उसने उस कारीगर को नही मारा ! इसके विपरीत, अगर मनुष्य, मनुष्य को पूजता है तो पढे-लिखे लोग कहते है कि यह आदम-परस्ती है।*
*हुजूर महाराज जी कहते है कि देवी-देवता हमने देखे नही, गाय-भैस की बोली समझ नही आती। मनुष्य - मनुष्य की पूजा क्यों करें? जबकि आज के समय मे सबके एक जैसे हकूक है। फिर आप समझाते है कि गुरू, हमें उस परमात्मा से मिलने का रास्ता समझाते है, अपनी पूजा के लिए कभी नही कहते। शब्द को ही गुरू कहते है।*
*शब्द गुरू, सुरत धुन चेला।*
*🙏राधा स्वामी जी 🙏*
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